नये ध्रुवीकरण की ओर
लाओस की राजधानी वियंतियाने में आसियान-भारत और पूर्व एशिया फोरम की बैठकें ‘एक्ट इस्ट’ की भारतीय नीति के मद्देनजर महत्वपूर्ण हैं. जी-20 शिखर सम्मेलन में चीन जाने से पहले वियतनाम का दौरा और म्यांमार के राष्ट्रपति की मेजबानी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेकोंग उप-क्षेत्र (कंबोडिया, लाओस, म्यांमार और वियतनाम) पर ध्यान केंद्रित करने की […]
लाओस की राजधानी वियंतियाने में आसियान-भारत और पूर्व एशिया फोरम की बैठकें ‘एक्ट इस्ट’ की भारतीय नीति के मद्देनजर महत्वपूर्ण हैं. जी-20 शिखर सम्मेलन में चीन जाने से पहले वियतनाम का दौरा और म्यांमार के राष्ट्रपति की मेजबानी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेकोंग उप-क्षेत्र (कंबोडिया, लाओस, म्यांमार और वियतनाम) पर ध्यान केंद्रित करने की अपनी कूटनीतिक प्राथमिकता को स्पष्ट कर दिया है. यह इलाका बंगाल की खाड़ी और साउथ चाइना सी को जोड़ता है.
साउथ चाइना सी में चीन के हस्तक्षेप पर कई पूर्वी एशियाई देशों और अमेरिका की चिंता से भारत सहमत है. इस रास्ते से भारत का 50 फीसदी व्यापार संचालित होता है और पांच ट्रिलियन डॉलर वार्षिक अंतरराष्ट्रीय व्यापार का मार्ग भी यही है. मोदी कंबोडिया के अलावा मेकोंग क्षेत्र के सभी देशों की यात्रा कर चुके हैं.
वे आसियान की बैठक में तीसरी बार भाग ले रहे हैं. आसियान के दस सदस्य देशों- म्यांमार, सिंगापुर, मलयेशिया, लाओस, वियतनाम, कंबोडिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई, फिलीपींस और थाईलैंड- का संयुक्त सकल घरेलू उत्पादन 2.5 ट्रिलियन डॉलर तथा आर्थिक वृद्धि दर 4.6 फीसदी है. भारत और आसियान देशों के बीच बीते वित्त वर्ष में 65.04 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था, जो भारत के कुल वैश्विक व्यापार का 10.12 फीसदी है. वर्ष 2012 के बाद से इस संबंध में सामरिक आयाम भी जुड़ा है, जिसमें सामुद्रिक सुरक्षा, आतंकवाद निरोध और साइबर सुरक्षा शामिल हैं. इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे के कारण अनेक आसियान देश भारत को एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में देखने लगे हैं.
आसियान की तरह ही ‘पूर्वी एशिया फोरम’ के एजेंडे में भी व्यापार और व्यापारिक मार्ग का मसला मुख्य है. भारत इस फोरम का सह-संस्थापक है. इसमें भारत और आसियान देशों के अलावा चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, रूस और अमेरिका शामिल हैं. दुनिया की आबादी और जीडीपी का 55 फीसदी इस फोरम के हिस्से में है.
ऐसे बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की मजबूत मौजूदगी का संकेत न सिर्फ आसियान देशों के सकारात्मक रवैये से मिलता है, बल्कि अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे प्रभावशाली देश भी भारतीय रुख के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने लाओस में फिर कहा है कि भारत-आसियान संबंध इस क्षेत्र में संतुलन और सहभागिता का एक स्रोत हैं तथा यह उत्तरोत्तर सघन होता जा रहा है. पूर्वी एशिया में भारत की बढ़ती सक्रियता अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति में एक नये ध्रुवीकरण का प्रारंभ है. आशा है कि लाओस के आयोजनों से इस प्रक्रिया को तीव्रता मिलेगी.