शहरों में बढ़ता अपराध
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो द्वारा कुछ दिन पहले जारी 2015 के आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं. शहरीकरण और शहरों की आर्थिक समृद्धि बढ़ने के साथ अपराध भी तेजी से बढ़ रहे हैं. दस लाख की आबादी से अधिक के 53 बड़े शहरों में घटित अपराधों की बात करें, तो अकेले देश की राजधानी दिल्ली में 25 […]
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो द्वारा कुछ दिन पहले जारी 2015 के आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं. शहरीकरण और शहरों की आर्थिक समृद्धि बढ़ने के साथ अपराध भी तेजी से बढ़ रहे हैं. दस लाख की आबादी से अधिक के 53 बड़े शहरों में घटित अपराधों की बात करें, तो अकेले देश की राजधानी दिल्ली में 25 फीसदी अपराध दर्ज हुए. यह संख्या 1.73 लाख है. इसके बाद मुंबई (42,940), बेंगलुरु (35,576), कोलकाता (23,990) तथा हैदराबाद (16,965) का स्थान है. चेन्नई महानगरों में सबसे सुरक्षित है, जहां 13,422 घटनाएं संज्ञान में आयी थीं.
उल्लेखनीय है कि ये आंकड़े दर्ज मामलों के हैं. यह सर्वविदित है कि हमारे देश में अनेक आपराधिक मामलों को पुलिस या तो दर्ज ही नहीं करती है, या फिर लोग दबाव में या कानूनी पचड़े के डर से पुलिस के पास गुहार लगाने नहीं जाते हैं. ये आंकड़े भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दर्ज किये गये मामलों के हैं और अगर इनमें विशेष स्थानीय कानूनों के तहत पंजीकृत मामलों को जोड़ दें, तो यह संख्या और बढ़ जाती है. सबसे असुरक्षित शहरों की सूची में बिहार का पटना, राजस्थान का जोधपुर और केरल का कोल्लम भी शामिल हैं. हत्या के मामलों में दिल्ली (464), पटना (232) और बेंगलुरु (188) अव्वल शहर हैं.
दहेज विरोधी कानून के तहत सबसे अधिक मामले बेंगलुरु, जमशेदपुर और पटना में दर्ज हुए. ब्यूरो की रिपोर्ट यह भी बताती है कि महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध, घरेलू हिंसा और सड़क पर मारपीट के मामले बढ़ रहे हैं. पुलिस प्रशासन का दावा अपनी जगह सही हो सकता है कि शहरों में अपराध के मामलों को दर्ज करने की सक्षमता के कारण संख्याएं अधिक हैं, पर ये आंकड़े प्रशासनिक कमजोरी और सामाजिक अव्यवस्था की ओर भी संकेत करते हैं. शहरों का लगातार असुरक्षित होते जाना इस बात को भी रेखांकित करता है कि नागरिकों को भयमुक्त वातावरण देने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे.
पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाना और उन्हें समुचित प्रशिक्षण एवं संसाधन देना, अपराधों की जांच एवं कानून-व्यवस्था कायम रखने की जिम्मेवारी को अलग-अलग करना, समाज में जागरूकता और आपसी सहयोग का माहौल बनाना जैसी पहलों पर ध्यान दिये बगैर अपराधों पर अंकुश लगा पाना संभव नहीं है.
अपराधों की समयबद्ध जांच और मुकदमों का त्वरित निबटारा भी बहुत जरूरी है. प्रशासनिक भ्रष्टाचार और अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण भी बड़े अवरोध हैं. अपराधों पर लगाम हमारी सरकारों की प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए.