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आप की दुकान पर एक आम सी सुबह

सत्य प्रकाश चौधरी प्रभात खबर, रांची सुबह का वक्त है. ’आप’ की दुकान में लगे केजरीवाल के कट-आउट पर धूल जमी हुई है. वहीं निर्मल बाबा की मढ़ी हुई तसवीर का कांच ताजा चमकाया हुआ लग रहा है. पप्पू पनवाड़ी आम आदमी मार्का टोपी पहने बैठे हैं. जिसके एक तरफ ‘मैं हूं पान दुकानदार’ और […]

सत्य प्रकाश चौधरी

प्रभात खबर, रांची

सुबह का वक्त है. ’आप’ की दुकान में लगे केजरीवाल के कट-आउट पर धूल जमी हुई है. वहीं निर्मल बाबा की मढ़ी हुई तसवीर का कांच ताजा चमकाया हुआ लग रहा है. पप्पू पनवाड़ी आम आदमी मार्का टोपी पहने बैठे हैं. जिसके एक तरफ ‘मैं हूं पान दुकानदार’ और दूसरी तरफ ‘नकदवाले डिस्को, उधारवाले खिसको’ लिखा है.

मुझे दुकान पर पहुंचे मुश्किल से 15-20 मिनट हुए हैं और इस दौरान वह उधारवालों को खिसकाने के दो नमूने पेश कर चुके हैं. बिखरे बाल, आंख में कीचड़ लिये एक बंदा पहुंचा और उबासी लेते हुए सिगरेट की तलब जाहिर की. दरअसल, हाजत रफा करने के लिए पहले हाजत महसूस करना जरूरी है और इसके लिए उसे सिगरेट चाहिए. लगता है, पप्पू उससे अच्छे से वाकिफ हैं इसलिए पहले पैसे मांगे.

उसने कहा, बाद में दे देंगे. पप्पू ने कहा, ‘‘पान खाओ तो अभी खिला दें, पर सिगरेट उधार नहीं देंगे, इसमें पूंजी ज्यादा लगती है और मुनाफा समझो कुछ नहीं है.’’ बेचारे ने पान नहीं खाने की बात कह कर अपना रास्ता लिया. फिर एक दूसरा बंदा आया. उसकी भी जरूरत पहले बंदे जैसी ही. बस फर्क यह है कि उसे सिगरेट की जगह पान चाहिए. पप्पू ने उसे भी पहले बंदे वाले फारमूले से टरका दिया. यकीनन, यह चतुराई चौराहे पर दुकान चला कर ही सीखी जा सकती है, किसी बिजनेस स्कूल से नहीं. तभी रुसवा साहब पहुंचे.

उनका हाल क्या बयान करूं, कम लफ्जों में कहूं तो गुजरात के 11 रुपये वाले ‘सरकारी अमीर’ लग रहे हैं. लगता है, बेचारे बीपीएल बनने का सपना लिये हुए ही इस दुनिया से फना हो जायेंगे. पहले मनमोहन-मोंटेक ने बीपीएल नहीं बनने दिया, क्योंकि वह रोज 28 रुपये से ज्यादा कमाते हैं. उम्मीद थी कि मोदी जी आयेंगे तो कुछ करेंगे, पर शायद उनके राज में बीपीएल बनने के लिए तन का कुरता भी उतारना पड़ेगा.

खैर, रुसवा साहब ने पप्पू को ‘कटिंग चाय’ की तर्ज पर ‘कटिंग पान’ लगाने का हुक्म दिया. पप्पू ने बंगला पान के पत्तों के छोटे-छोटे टुकड़े किये और दो पुड़िया के पत्ते-मसाले में चार पुड़िया पान लगा दिया. शाम तक का कोटा लेकर रुसवा साहब आगे बढ़ने वाले थे कि उनकी निगाह घड़ी पर पड़ी. 10.30 बज रहे थे. नगर निगम में जन्म प्रमाणपत्र बनानेवाले सिन्हा जी किसी से गप कर रहे हैं.

दोनों के मुंह पीक से भरे हुए हैं. उनके मुंह से निकल रहे ओं..गों.. जैसे शब्द दूसरे ग्रह की भाषा जान पड़ रहे हैं. पर एक खग दूसरे खग की भाषा समझ रहा है. स्टार्ट स्कूटर का क्लच सिन्हा जी अब छोड़ेंगे, अब छोड़ेंगे, यह इंतजार करते जब काफी देर हो गयी, तो रुसवा साहब ने टोक दिया- आधा घंटा से ऊपर लेट तो यहीं हो गये हैं, कहीं हाजिरी न कट जाये. सिन्हा जी ने इतनी नफरत से पीक थूकी मानो किसी ने भरे बाजार में गाली दे दी हो. फिर एक ऐसा इशारा किया जिसका शराफत की भाषा में अर्थ है जिसे जो करना हो कर ले. खैर, सिन्हा जी ने क्लच छोड़ा और ‘आम आदमी’ को उसकी औकात बताते हुए निकल गये.

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