पाक पर ‘सर्जिकल’ प्रहार

पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक ‘गॉडफादर ऑफ पाक इंटेलिजेंस’ के नाम से मशहूर हमीद गुल को सुपुर्द-ए-खाक हुए साल भर से ऊपर हो चुके हैं. 15 अगस्त, 2015 को आइएसआइ के पूर्व प्रमुख हमीद गुल को पाकिस्तान से हमेशा के लिए ‘आजादी’ मिल गयी थी. किसी जमाने में कश्मीरी गुट तैयार करने में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 22, 2016 6:21 AM
पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
‘गॉडफादर ऑफ पाक इंटेलिजेंस’ के नाम से मशहूर हमीद गुल को सुपुर्द-ए-खाक हुए साल भर से ऊपर हो चुके हैं. 15 अगस्त, 2015 को आइएसआइ के पूर्व प्रमुख हमीद गुल को पाकिस्तान से हमेशा के लिए ‘आजादी’ मिल गयी थी. किसी जमाने में कश्मीरी गुट तैयार करने में गुल की बड़ी भूमिका रही थी. फिर भी वी रमन ने माना कि आखिरी वक्त तक हमीद गुल की सलाहियत थी कि कश्मीर में पाक और अफगान मिशनरियों को घुसपैठ के लिए शह न दें, ऐसा किया तो पाकिस्तान, भारत के हाथों खेलेगा. रॉ के वरिष्ठ अधिकारी वी रमन भी अब इस दुनिया में नहीं हैं, मगर उनकी धारणा थी कि खालिस्तानी घुसपैठ और पंजाब में आतंकवाद के पटकथा लेखक हमीद गुल ही थे. उस व्यूह को रॉ और मिलिटरी इंटेलिजेंस ने मिल कर कैसे तोड़ा, उसकी कहानी फिर कभी. पाकिस्तान में इस समय चिंता का सबब भारत का ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ (सशस्त्र प्रहार) है.
इसलामाबाद स्थित ‘सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज’ के प्रमुख इम्तियाज गुल ने 26 नवंबर, 2008 के मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान में क्या हुआ, उसे याद करते हुए लिखा- ‘उन दिनों सेना के वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे बताया था कि 26/11 हमले के बाद, दिसंबर के पहले हफ्ते की एक शाम तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी और आर्मी चीफ जनरल अशफाक कियानी को बुलाया तथा भारत में गुस्से की लहर व उसके द्वारा घोषित ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ को कैसे झेलना है, उस पर बात की. राष्ट्रपति ने सवाल किया कि यदि हम ‘पीओके’ के किसी हिस्से में दिखावे के लिए भारत को एकाध कैंप नष्ट करने की अनुमति दे दें, तो क्या संभव है कि उनका गुस्सा ठंडा पड़ जाये? गिलानी ने कहा, यह राजनीतिक रूप से सही नहीं होगा. जनरल कियानी का जवाब था, ‘मिस्टर प्रेसिडेंट, सीमा पर गोली के जवाब में यदि हम चुप लगा जायें, तो लोग हमें घसीट कर मार डालेंगे. सांकेतिक सर्जिकल स्ट्राइक से तो आग लग जायेगी.’ और बात वहीं खत्म हो गयी.
12 अक्तूबर, 2015 को मुंबई का वाकया शायद कुछ लोगों को याद हो, जब पूर्व पाक विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की पुस्तक ‘नीदर ए हॉक, नॉर ए डोव’ की लांचिंग हुई थी. उस विवादास्पद समारोह में सुधींद्र कुलकर्णी पर शिवसैनिकों ने कालिख पोत दी थी. उस पुस्तक के पेज 428 और 429 में इसकी चर्चा है कि अमेरिका, लाहौर के पास मुरीदके में लश्करे-तैयबा और जमातुल-दावा के कैंपों पर भारत द्वारा हवाई हमले के वास्ते पाकिस्तान पर दबाव बना रहा था. उस समय अमेरिकी सीनेटर जॉन मैकेन और लिंडसे ग्राहम को राष्ट्रपति बुश ने बातचीत के लिए भेजा था.
निजाम दोनों तरफ बदल चुके हैं. भारत में एक ऐसा निजाम आया है, जो ‘एक दांत के बदले पूरा जबड़ा’ निकाल देने का हुंकार भर रहा है. 15 जनवरी, 2013 को सुषमा स्वराज ने शहीद हेमराज के वास्ते 10 पाकिस्तानियों के सिर काट लाने का संकल्प किया था. अब यही सुषमा स्वराज 26 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा में बोलेंगी. उनके अभिभाषण से ही अंदाजा लग जायेगा कि भारत को किस रणनीति पर आगे बढ़ना है.
मगर, इस बार ऐसा क्या हुआ कि मोदी सरकार को दो जूनियर मंत्रियों को आगे कर कहलवाना पड़ा कि घोषणा करके कार्रवाई नहीं करनी चाहिए. गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू बार-बार बयान देने से बचने की बात क्यों कर रहे थे? विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह भी उसी सुर में नसीहत देते रहे कि भावना में नहीं बहना चाहिए. ऐसे बयानों से सरकार की ‘टीआरपी’ घटी है. एक तीसरे मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो 56 नहीं, 66 इंच का सीना कर लेंगे. मतलब, सरकार में ही दो धाराएं हैं, जिसमें एक धड़ा हमले के लिए उतावला हुआ जा रहा है.
क्या इसका अर्थ यह नहीं कि ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के सिलसिले में मदद की जो अपेक्षा इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा से थी, वह पूरी नहीं हो पायी? इराक, अफगानिस्तान पर हमले के दौरान अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय कानून, और संयुक्त राष्ट्र की परवाह नहीं की. पाक-अफगान सीमा पर ड्रोन हमले, और एबटाबाद में ओसामा का वध करने में भी ओबामा के रास्ते कोई अंतरराष्ट्रीय कानून आड़े नहीं आया. ऐसी दोहरी सोच वाले अमेरिका से क्या रूस एक बार फिर बेहतर साबित होगा? कहना मुश्किल है.
वैसे तो रूस ने उड़ी हमले की निंदा की है. मगर, पहली बार होनेवाला रूस-पाक सैन्य अभ्यास, जिसे ‘फ्रेंडशिप-2016’ नाम दिया गया है, वह स्थगित हुआ है या नहीं, इसकी आधिकारिक घोषणा अब तक मास्को से नहीं हुई है. न ही रूसी विदेश मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान को बेचे जानेवाले चार ‘एमआइ-35 अटैक हेलीकॉप्टर’ रद्द किये गये हैं. रूस इस इलाके में भू-सामरिक स्थिति बदलने के वास्ते जिस तरह से आगे बढ़ा था, उड़ी हमले की वजह से क्या उसमें कोई तब्दीली आयेगी? यह भी मंथन का एक विषय है!

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