गरीबी अपराध की जननी है
मनुष्य का जब पेट नहीं भरता, शरीर ढकने के लिए कपड़े नहीं होते, रहने के लिए झोपड़ी भी नसीब नहीं होती और उसे अपमान ङोलना पड़ता है तब उसके मन में विद्रोह भड़कता है. और इस विद्रोह के रूप में वह अपराध की ओर उन्मुख होता है. एक भूखे व्यक्ति का पहला लक्ष्य अपनी भूख […]
मनुष्य का जब पेट नहीं भरता, शरीर ढकने के लिए कपड़े नहीं होते, रहने के लिए झोपड़ी भी नसीब नहीं होती और उसे अपमान ङोलना पड़ता है तब उसके मन में विद्रोह भड़कता है. और इस विद्रोह के रूप में वह अपराध की ओर उन्मुख होता है. एक भूखे व्यक्ति का पहला लक्ष्य अपनी भूख मिटाना ही होता है. उसे अच्छे-बुरे का भान नहीं होता. ज्यादातर अपराधियों की पृष्ठभूमि गरीबी ही होती है.
मनुष्य के साथ सबसे बड़ी विडंबना यह है कि चाहे वह कितना ही प्रतिभाशाली, तेज-तर्रार और कर्मठ क्यों न हो, अगर वह दुर्भाग्यवश गरीब है तो उसकी प्रतिभा, तेज और कर्मठता धूमिल पड़ती जायेगी. पग-पग पर उसके स्वाभिमान को चोट लगती है, उसका अपमान और शोषण होता है. ऐसे में असंतोष और विद्रोह उत्पन्न होता स्वाभाविक है. लेकिन हर गरीब का अपराधी बन जाना भी सही नहीं है.
अरुण कुमार, हेठबरगा, रामगढ़