औरतें हैं तो हम हैं, हमारा वजूद है
मैंने प्रभात खबर में 28 जनवरी के पाठक मत में वीरभूम के सामूहिक बलात्कार की प्रतिक्रिया पढ़ी. मैं यह पढ़ कर स्तब्ध थी कि कैसे कोई समाज किसी औरत के साथ ऐसा कर सकता है. आज हमारे देश में औरतों के मान-सम्मान और सुरक्षा की इतनी बातें होती हैं, औरत को देवी के रूप में […]
मैंने प्रभात खबर में 28 जनवरी के पाठक मत में वीरभूम के सामूहिक बलात्कार की प्रतिक्रिया पढ़ी. मैं यह पढ़ कर स्तब्ध थी कि कैसे कोई समाज किसी औरत के साथ ऐसा कर सकता है. आज हमारे देश में औरतों के मान-सम्मान और सुरक्षा की इतनी बातें होती हैं, औरत को देवी के रूप में पूजा जाता है और उसी देश में सरेआम एक युवती की अस्मत को तार-तार किया जाता है.
हमारा समाज पुरुष प्रधान है और इसी समाज में पुरुष अपनी उत्कंठा या तो घर की औरतों पर निकालते हैं या बाहर की औरतों पर. क्योंकि उन्हें लगता है कि औरत सिर्फ दबा कर रखनेवाली चीज होती हैं और उनका कोई वजूद ही नहीं. हमारे समाज की बुनियाद में ही औरतों को नीचे रखा गया है, उनके सम्मान, इच्छा और सपनों को हमेशा दूसरे दरजे का समझा जाता है. औरतों को सम्मान दें क्योंकि औरतें हैं तो हम हैं, हमारा वजूद है.
संजू कुमारी सिंह, रामगढ़