झारखंड राज्य को अलग हुए वर्षो हो गये. यह राज्य जब बनाया जा रहा था, तब यहां का प्रत्येक वासी चाहे वह मूलवासी हो या आदिवासी या फिर वर्षो से निवासरत दूसरे राज्य के वासी, सभी प्रसन्न थे कि चलो अब हम विकास की नयी गाथा लिखेंगे. हमारा सोचना भी गलत नहीं था, हमारे पास पर्याप्त संसाधन थे, शायद ही देश का दूसरा कोई राज्य होगा जहां इतने खनिज संसाधन मौजूद हों.
परंतु वर्तमान में ऐसा लगता है कि झारखंड का जैसे विकास कहीं रुक गया है. मूलवासी और बाहरी के चक्कर में हमारा राज्य फंसता जा रहा है या यूं कहें फंसाया जा रहा है. हम तो अब तक यही जानते आये हैं कि पूरा भारत एक है, भारत का नागरिक कहीं भी पूरे देश में समान अधिकार पाने का हकदार है. फिर यह बाहरी-भीतरी के नाम पर राजनीति आखिर कब तक चलेगी? विकास की ओर हमारा ध्यान क्यों नहीं जा रहा है? झारखंड में रोजगार के लिए उद्योग-धंधे क्यों नहीं लगाये जा रहे हैं? जब राज्य की जनता भूखी रहेगी, युवा रोजगार के लिए भटकेंगे तो विकास कहां से हो पायेगा?
मेरा मानना है कि सारी समस्याओं की जड़ बेरोजगारी ही है. अगर लोगों को रोजगार मिलता है तो उसके घर का चूल्हा जलेगा, तब वह विकास के लिए सोचेगा. मुख्यमंत्री जी, जरा सोचिए एक छोटा-सा ही कल-कारखाना लगाने में मुश्किल से दो-तीन करोड़ का खर्च आता होगा, इतना तो राजनीतिक दल अपने अधिवेशनों में खर्च कर देते हैं, सिर्फ एक दिन या एक हफ्ते में, अगर इसी पैसे का इस्तेमाल पार्टियां अपने कैडरों के रोजगार के लिए करें, तो फायदा जनता का भी और राजनीतिक पार्टियों का भी. युवा, कर्मठ और बुद्धिमान मुख्यमंत्री जी से आग्रह है कि यह शुरुआत आप ही की पार्टी से हो, ताकि बाकी इससे प्रेरणा लें.
राजा कर्मकार, घाटशिला, पूर्वी सिंहभूम