15वीं लोकसभा से आखिरी उम्मीद
पंद्रहवीं लोकसभा की अवसान-वेला के आखिरी सत्र से सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों की अलग-अलग अपेक्षाएं जुड़ी हैं. यूपीए सरकार चाहेगी कि इस सत्र का इस्तेमाल अपने चुनावी एजेंडे के रूप में करे. भ्रष्टाचार व महंगाई की पोषक करार दी गयी सरकार चाहेगी कि भ्रष्टाचार निरोधी छह बिलों को पास करा ले, ताकि मतदाताओं के सामने […]
पंद्रहवीं लोकसभा की अवसान-वेला के आखिरी सत्र से सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों की अलग-अलग अपेक्षाएं जुड़ी हैं. यूपीए सरकार चाहेगी कि इस सत्र का इस्तेमाल अपने चुनावी एजेंडे के रूप में करे. भ्रष्टाचार व महंगाई की पोषक करार दी गयी सरकार चाहेगी कि भ्रष्टाचार निरोधी छह बिलों को पास करा ले, ताकि मतदाताओं के सामने अपनी सफाई में कहने और विपक्ष के हमलावर तेवर को कुंद करने के लिए उसके पास कुछ न कुछ पूंजी रहे.
इस मंशा से यूपीए सरकार महिला आरक्षण बिल और रेहड़ी पटरी वालों के हक में बना बिल भी पास कराने की कोशिश करेगी. दूसरी तरफ विपक्ष चाहेगा कि यह सत्र टीवी के परदे के माध्यम से यूपीए-2 की नाकामियों के उजागर करने का मौका साबित हो. इसके लिए तेलंगाना का मुद्दा पहले से उसके हाथ में है. सत्तापक्ष और विपक्ष की अपनी-अपनी अपेक्षाओं के बीच कुछ बातें एकदम से अनकही रह जायेंगी, जिनसे लोकतंत्र का गहरा नाता है. कामकाज के लिहाज से 15वीं लोकसभा के सत्र अब तक के सर्वाधिक निठल्ले सत्रों में शामिल रहे हैं.
बीते पांच साल में 165 बिल पास हुए हैं, जबकि लोकसभा (72) व राज्यसभा (54) में कुल 126 बिल लंबित पड़े हैं. 15वीं लोकसभा की समाप्ति के साथ लोकसभा में पेश न हो पाये बिल अपना अस्तित्व खो देंगे. बात बिलों को पास करने भर तक सीमित नहीं है. बीते दो दशकों से संसद में बिल पर बहस की परंपरा कमजोर हुई है और बहस की अवधि भी घटी है. जिस सीमा तक लोकतंत्र में संसद सर्वोच्च है, उसी सीमा तक संसदीय बहस भी जनता की उम्मीदों की अभिव्यक्ति करनेवाली होनी चाहिए. लेकिन, हाल का चलन यह बना है कि सत्तापक्ष की पार्टियां (और कभी-कभी विपक्षी भी) किसी बिल पर गुपचुप सहमति बना लेती हैं और इसके आधार पर बिल बिना बहस के पास हो जाता है.
इसका एक उदाहरण स्पेशल इकोनॉमिक जोन (सेज) से संबंधित बिल है. संसद में बैठे लोगों की गुपचुप सहमति वह रास्ता तैयार करती है, जिस पर चल कर लोकतंत्र जनता के लिए लाचारगी का सबब बन जाता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि 15वीं लोकसभा का यह आखिरी सत्र अपनी कार्यवाहियों से स्वस्थ बहस को जन्म देगा और जन-आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति का प्रयास करेगा.