गरीबी व बेरोजगारी से जंग
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के माहौल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान की जनता को सीधे संबोधित कर एक सकारात्मक पहल की है. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि आतंकी सरगनाओं के लिखे भाषण पढ़नेवाले पड़ोसी देश के नेतृत्व से उन्हें कोई अपेक्षा नहीं है. बीते कुछ महीनों में पाकिस्तान से […]
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के माहौल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान की जनता को सीधे संबोधित कर एक सकारात्मक पहल की है. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि आतंकी सरगनाओं के लिखे भाषण पढ़नेवाले पड़ोसी देश के नेतृत्व से उन्हें कोई अपेक्षा नहीं है. बीते कुछ महीनों में पाकिस्तान से बेहतर संबंध स्थापित करने की भारत की कोशिशों का जवाब सीमा पार से लगातार आतंकी हमलों तथा कश्मीर में अलगाववादी भावनाएं भड़काने के रूप में मिला है. पठानकोट से लेकर उड़ी तक का सिलसिला इसी बात को रेखांकित करता है कि पाकिस्तान की दिलचस्पी दक्षिण एशिया को अशांत और अस्थिर बनाने में है.
कोझिकोड के भाषण और अपने नियमित रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में आतंकियों के मंसूबे को ध्वस्त करनेवाले हमारे सुरक्षाबलों के पराक्रम और बलिदान का अभिनंदन करते हुए प्रधानमंत्री ने कूटनीतिक तरीकों से पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने के प्रयासों का भी उल्लेख किया है. लेकिन पाकिस्तानी जनता को सीधे संबोधित कर उन्होंने जिन सवालों को सामने रखा है, वे बेहद प्रासंगिक हैं.
वर्ष 1947 से एक साथ शुरू हुई दोनों देशों की यात्रा के विभिन्न मोड़ों और पड़ावों पर नजर डालें, तो साफ जाहिर होता है कि उपलब्धियों के पैमाने पर दोनों देश अलग-अलग छोर पर खड़े हैं. प्रधानमंत्री ने इस अंतर को भारत द्वारा सॉफ्टवेयर के निर्यात और पाकिस्तान द्वारा आतंक के निर्यात के जरिये प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त किया है. कुछ दशकों पहले तक विकास सूचकांकों में कई बिंदुओं पर पाकिस्तान भारत से ऊपर होता था, पर आज न सिर्फ भारत, बल्कि दक्षिण एशिया के कुछ अन्य छोटे देश उससे काफी आगे निकल चुके हैं.
पाकिस्तान की सरकारों, सेना और चरमपंथी गुटों ने जिस आतंक को पनाह और शह दिया है, आज उसकी चपेट में खुद पाकिस्तान की जनता है. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि वहां की अवाम से सीधे बातचीत कर उन सवालों की चर्चा की जाये, जिनका हल निकालना बहुत जरूरी हो गया है. पाकिस्तान के स्कूल, मसजिद, मजार और बाजार तक दहशतगर्दी और चरमपंथ के खूनी चंगुल में जकड़े हुए हैं.
गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और बीमारी से जनता बेहाल और बेदम है. पर पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठानों पर काबिज लोग भारत, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों और दुनिया में अन्यत्र खून-खराबे की खतरनाक सियासत में व्यस्त हैं. निश्चित रूप से अपने नेताओं की कारस्तानियों पर लगाम लगाने की जरूरी जिम्मेवारी पाकिस्तान की अवाम को उठानी होगी. कश्मीर की रट लगानेवाले पाकिस्तान के सियासी, सैनिक और मजहबी नेता यह भूल जाते हैं कि उनके कब्जेवाले कश्मीर और गिलगिट के हालात किस कदर खराब हैं, बलोचिस्तान में आजादी के नारे क्यों लग रहे हैं, सिंध और पेशावर में भयावह हिंसा का आलम क्यों है? प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तानी जनता के साथ बातचीत की जो पहल की है, उसे लगातार जारी रखने की जरूरत है ताकि उन्हें उस फांस का एहसास हो, जिसकी डोर उनके नेताओं के हाथों में है.
दक्षिण एशिया में अमन-चैन बहाल करने के लिए यह आवश्यक है कि पाकिस्तान की जनता अपने शातिर नेताओं को कटघरे में खड़ा कर उनसे जवाब-तलब कर सके. हमारे देश के भीतर भी एक समझपूर्ण माहौल बनाने की जरूरत है जिसकी बड़ी जिम्मेवारी विपक्ष के कंधे पर है. प्रधानमंत्री के भाषण पर जिस तरह की प्रतिक्रिया कांग्रेस की ओर से आयी है, वह बेहद निराशाजनक है. विपक्षी पार्टी होने के नाते सरकार की आलोचना करने का पूरा अधिकार कांग्रेस को है, पर यह बेवजह और बेबुनियाद नहीं होना चाहिए. प्रधानमंत्री के बयान पर टिप्पणी करते हुए कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा है कि प्रधानमंत्री हवाई बातें कर अपनी असफलताओं को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं. कांग्रेस के पास ठोस आलोचना के लिए अगर कुछ नहीं है, तो बेहतर है कि वह चुप रहे अन्यथा उसके राजनीतिक पतन का सिलसिला ऐसे ही कायम रहेगा. इतने लंबे समय तक केंद्र में सत्तारुढ़ रही पार्टी को सुरक्षा और कूटनीतिक मामलों पर सोच-समझकर राय देनी चाहिए.
यदि उसे लगता है कि सरकार समुचित कदम नहीं उठा रही है, तो उसे इस संबंध में एक समुचित कार्य-योजना प्रस्तुत करनी चाहिए, न कि देश को भ्रमित करने का प्रयास करना चाहिए. कांग्रेस को स्वार्थपूर्ण राजनीतिक लाभ उठाने की परिपाटी से परहेज करना चाहिए. सरकार मौजूदा संकट की स्थिति से निबटने के लिए सामरिक और रणनीतिक स्तर पर कार्रवाई कर रही है. प्रधानमंत्री ने बार-बार देश को भरोसा दिलाया है कि भारत की अखंडता को चुनौती देनेवाली ताकतों से कठोरता से निबटा जायेगा.
ऐसे में देश को थोड़ा इंतजार करना चाहिए क्योंकि इन कोशिशों के नतीजे कुछ देर से हमारे सामने होंगे. युद्धोन्माद, बेमानी आलोचना, गैरजिम्मेवाराना बयानबाजी जैसी हरकतें देश के दुश्मनों के इरादों के लिए मददगार होंगी, देश की सुरक्षा के लिए नहीं. आतंक के विरुद्ध लड़ाई एक लंबी लड़ाई है और इसमें दोनों देशों की अवाम की अहम भूमिका है.