चीन को भी साधें
शनिवार को चीन के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संदेश में दोनों देशों के सदियों पुराने संबंधों का हवाला देते हुए परस्पर सहयोग को मजबूत करने की जरूरत पर जोर दिया है. उन्होंने यह भी कहा है कि द्विपक्षीय संबंधों के सभी आयामों पर हाल के दिनों में ध्यान दिया […]
शनिवार को चीन के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संदेश में दोनों देशों के सदियों पुराने संबंधों का हवाला देते हुए परस्पर सहयोग को मजबूत करने की जरूरत पर जोर दिया है.
उन्होंने यह भी कहा है कि द्विपक्षीय संबंधों के सभी आयामों पर हाल के दिनों में ध्यान दिया गया है और आपसी भरोसे को बेहतर करने की पूरी कोशिश की जा रही है. लेकिन बीते दो दिनों में चीन की ओर से दो ऐसे कदम उठाये गये हैं, जो भारत के राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध हैं. संयुक्त राष्ट्र में आतंकी गिरोह जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव को चीन ने ‘तकनीकी कारणों’ के बहाने फिर से रोक दिया है.
उसने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी पर बांध बनाने के लिए उसका बहाव रोकने की घोषणा भी की है. उड़ी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने में बड़ी कामयाबी हासिल की है. इस सिलसिले में चीन भी पाकिस्तान के साथ खड़ा नहीं है, जबकि उसके पाकिस्तान के साथ गहरे व्यावसायिक और सामरिक रिश्ते हैं. लेकिन, पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने और दक्षिणी एशिया में स्थिरता बहाल करने के लिए चीन का साथ जरूरी है.
इस बात को प्रधानमंत्री मोदी ने भी रेखांकित किया है. दोनों देशों के बीच ठोस वाणिज्यिक संबंध हैं तथा जी-20, ब्रिक्स, आसियान और बिम्सटेक समूहों के जरिये बहुपक्षीय और द्विपक्षीय रिश्तों में बेहतरी के सकारात्मक संकेत हैं. जरूरत यह है कि भारत का कूटनीतिक तंत्र निरंतर प्रयासों से वैश्विक और क्षेत्रीय हितों के मद्देनजर द्विपक्षीय संबंधों को नयी ऊंचाई दे. चीन को यह ध्यान दिलाना होगा कि परस्पर चिंताओं को प्राथमिकता दिये बिना आपसी रिश्ते स्थायी नहीं हो सकते हैं. ऐसे में आर्थिक विकास और शांति के लिए दोनों देशों के बीच सहयोग बहुत महत्वपूर्ण है. आतंक को प्रश्रय देने की पाकिस्तानी नीति पूरे दक्षिणी और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए खतरनाक है.
जिस तरह से अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ पाकिस्तान से घनिष्ठता रखनेवाले अरब देशों को भी भारत अपने पक्ष में लाने में सफल रहा है, उसी तरह से चीन को भी आतंक के विरुद्ध लामबंद किया जा सकता है. भारत को चीन और पाकिस्तान के आपसी संबंधों से गुरेज नहीं है, हमारी चिंता का कारण आतंकवाद को शह देने की पाकिस्तानी नीति है. राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर चीन को इस चिंता की गंभीरता का एहसास कराया जाना चाहिए.