छोटी-छोटी बातों पर हिंसा चिंताजनक
सरस्वती प्रतिमा के विसजर्न के दौरान रामगढ़ और कांके (रांची) में दो गुट आपस में भिड़ गये. रामगढ़ में पुलिस जीप जला दी गयी. स्थिति बिगड़ने पर पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा. मूर्ति विसजर्न के दौरान हिंसा-झड़प की छिटपुट घटनाएं परिपाटी बनती जा रही हैं. दरअसल, समाज में सहिष्णुता खत्म हो रही है. हर […]
सरस्वती प्रतिमा के विसजर्न के दौरान रामगढ़ और कांके (रांची) में दो गुट आपस में भिड़ गये. रामगढ़ में पुलिस जीप जला दी गयी. स्थिति बिगड़ने पर पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा. मूर्ति विसजर्न के दौरान हिंसा-झड़प की छिटपुट घटनाएं परिपाटी बनती जा रही हैं. दरअसल, समाज में सहिष्णुता खत्म हो रही है.
हर समुदाय में ऐसे तत्व हैं जो मौका मिलते ही समाज को अशांत करने में लग जाते हैं. रामगढ़ की ही बात करें, तो वहां सड़क चौड़ीकरण को लेकर कई माह से अंदर-अंदर आग सुलग रही थी. प्रशासन यह जानता था. लेकिन मसले का हल निकालने में काफी विलंब किया गया. प्रशासन पर राजनीतिक दबाव होता है, इसलिए वह फैसला लेने से बचता है.
‘वेट एंड वाच’ की नीति कभी-कभी भारी पड़ती है. जिसने या जिस समुदाय ने कानून का उल्लंघन किया, अगर पुलिस व प्रशासन सख्ती से और बिना भेदभाव के कार्रवाई करने लगे, तो हिंसा फैलानेवालों को दस बार सोचना पड़ेगा. चुनाव नजदीक है. राजनीतिज्ञ अपनी रोटी सेंकने में लगे रहेंगे. ऐसे मौके पर थोड़ी सी भी लापरवाही झारखंड को जला सकती है. हो सकता है कि राजनीतिक दल ध्रुवीकरण के लिए ऐसी घटनाओं को हवा दें. इस स्थिति में पुलिस के साथ-साथ हर समुदाय के शांतिप्रिय लोगों, बुद्धिजीवियों और बड़े-बुजुर्गो की जिम्मेवारी बढ़ जाती है. इस बात को समझना होगा कि दुनिया अब आगे बढ़ चुकी है.
हिंसा से किसी समस्या का निदान नहीं होने वाला. युवा हुड़दंग और भावनात्मक मुद्दों को छोड़ समय का उपयोग कैरियर बनाने में करें, तो वे अपना और अपने परिवार का जीवन सुधार सकते हैं. कैसे उनके परिवार में समृद्धि आये, कैसे पैसे आयें, कैसे बेहतर नागरिक बन कर देश की सेवा करें, सारा ध्यान इन बातों पर लगाना चाहिए न कि सड़क पर पत्थरबाजी कर. जब-जब देश-राज्य ऐसी हिंसा की चपेट में आया है, विकास में वह दस साल पीछे चला गया है. इसलिए पहले की गलतियों से सीख लेने की जरूरत है. बेहतर समाज गढ़ करके ही मजबूत राष्ट्र बनाया जा सकता है.
इसमें हर व्यक्ति का योगदान चाहिए. इसके बावजूद अगर कोई कानून हाथ में लेने के लिए अड़ा हो, तो उसके लिए शासन-प्रशासन है और उसे अपना दायित्व बिना राजनीतिक नफा-नुकसान देखे निभाना चाहिए.