साक्षात देवियों का उत्सव
क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार शक्ति की उपासना, देवी के स्वागत की तैयारियां यानी नवरात्रि का उत्सव इन दिनों जोर-शोर से चल रहा है. इस उत्सव को अगर आज की लड़की से जोड़ कर देखा जाये, तो लगता है कि सचमुच उसने अपने-अपने हिस्से की शक्ति को अपने दम पर पिछली सदी और इस सदी में […]
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
शक्ति की उपासना, देवी के स्वागत की तैयारियां यानी नवरात्रि का उत्सव इन दिनों जोर-शोर से चल रहा है. इस उत्सव को अगर आज की लड़की से जोड़ कर देखा जाये, तो लगता है कि सचमुच उसने अपने-अपने हिस्से की शक्ति को अपने दम पर पिछली सदी और इस सदी में अर्जित करने की कोशिश की है और ज्यादातर लड़कियों ने उसे पाया भी है. खास तौर से फिल्म इंडस्ट्री और ग्लैमर की दुनिया में, जहां कई दशक पहले उसका प्रवेश तक वर्जित माना जाता था.
एक समय तो जो लोग फिल्मी दुनिया से जुड़े थे, वे भी अपने घर की स्त्रियों को फिल्मों में काम नहीं करने देते थे. राजकपूर जैसे बड़े अभिनेता के यहां का नियम था कि उनके घर की महिलाएं फिल्मों में काम नहीं करेंगी. इसीलिए जब मशहूर अभिनेत्री बबीता और नीतू सिंह ने उनके दोनों पुत्र रणधीर कपूर और ऋषि कपूर से विवाह किया, तो उन्होंने फिल्मों को अलविदा कह दिया. हालांकि, बाद में रणधीर कपूर की दोनों बेटियों- करिश्मा और करीना ने फिल्मों में काम किया. धर्मेंद्र ने भी अपनी घर की स्त्रियों को फिल्मी चकाचौंध से दूर रखा. यह बात अलग है कि उनकी दूसरी पत्नी हेमा मालिनी आज तक काम कर रही हैं और उन्होंने अपनी बेटी एशा को भी अभिनेत्री बनाया. अमिताभ से विवाह के बाद जया भी फिल्मों से दूर चली गयी थीं. तब कहा जाता था कि चाहे अभिनय ही क्यों न हो, अपनी पत्नी को किसी दूसरे पुरुष की बांहों में कोई पति नहीं देखना चाहता.
अब समय बदल गया है. अब विवाह के बाद चाहे ऐश्वर्या राय हों, माधुरी दीक्षित हों, करीना कपूर हों या लारा दत्ता हों, सभी फिल्मों में काम करती हैं. अब उन्हें परिवार रोकता नहीं है, बल्कि परिवार का पूरा समर्थन मिलता है. विवाह के कारण महिलाओं को अपनी प्रतिभा को दरकिनार कर घर में नहीं बैठना पड़ता. शादी या बच्चे अब उनके काम में कोई रुकावट नहीं बनते. वरना तो शादी के बाद अकसर सफल से सफल अभिनेत्री तक फिल्मों को अलविदा कह देती थीं. गुजरे जमाने की सफलतम अभिनेत्री मुमताज ने एक बार इस बात पर दुख भी प्रकट किया था कि शादी के बाद उन्हें अपने चमकते कैरियर को छोड़ना पड़ा था.
और आज तो हर अभिनेता-अभिनेत्री अपनी बेटियों को फिल्म स्टार बनाना चाहता है. फिल्मी दुनिया की इन्हीं सफल अभिनेत्रियों को लड़कियों का रोल माॅडल बताया-बनाया जाता है, क्योंकि इनके पास नाम, दाम, ग्लैमर तथा हर वह शक्ति है, जो लड़कियों के पास कभी नहीं रही और तब जिसे पाने के वे सपने देखा करती थीं.
अब लड़कियाें को उनके कपड़ों से मापने के मानक भी बदल रहे हैं. हाल ही में अमिताभ बच्चन ने अपनी नातिन नव्या और पोती आराध्या के लिए एक पत्र लिखा था. इसमें उन्होंने कहा था कि तुम्हारी स्कर्ट की ऊंचाई तुम्हारे चरित्र को तय नहीं करती. किसी बुजुर्ग के द्वारा इस तरह का संदेश देना न केवल अच्छी बात है, बल्कि यह स्थिति लड़कियों के पक्ष में बहनेवाली बदली हुई हवा के रुख को भी बता रही है. जबकि, एक समय रहा है कि दादा-दादी, नाना-नानी लड़कियों को पहनने, ओढ़ने, चलने, बात करने पर काफी बंदिशें लगाते रहे हैं.
सचमुच औरतों के संदर्भ में बनायी गयी सारी पुरानी अवधारणाएं, जो अकसर उनके विपक्ष में थीं, अब टूट रही हैं. यह एक स्वागतयोग्य कदम है. यह नवरात्रि का उत्सव उन हजारों-लाखों देवियों की शक्ति को पहचानने और उसे सही दिशा में राह दिखाने का उत्सव है. यही तो है देवी और साक्षात देवियों की सच्ची आराधना.