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भारत व पाक की जरूरत

भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनावों के बीच पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अगर दोनों देशों को परस्पर प्रतिद्वंद्विता करनी है, तो गरीबी, बेरोजगारी और बीमारी के विरुद्ध करनी चाहिए. आजादी के सात दशकों में भारत ने कई विकास मानकों पर उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं, जबकि पाकिस्तान कई सूचकांकों […]

भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनावों के बीच पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अगर दोनों देशों को परस्पर प्रतिद्वंद्विता करनी है, तो गरीबी, बेरोजगारी और बीमारी के विरुद्ध करनी चाहिए. आजादी के सात दशकों में भारत ने कई विकास मानकों पर उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं, जबकि पाकिस्तान कई सूचकांकों में पीछे छूटता जा रहा है.

इसके बावजूद दोनों देशों की जनता के सामने समस्याओं का अंबार है और इनका समाधान आतंक और युद्ध के रास्ते कतई संभव नहीं है. निर्धनता और विषमता पर विश्व बैंक की ताजा वैश्विक रिपोर्ट के निष्कर्ष दोनों देशों को अपने पिछड़ेपन से बाहर निकलने के लिए होड़ करने के प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान को प्रासंगिक ठहराते हैं.

महिला साक्षरता और जीवन प्रत्याशा में भारत पाकिस्तान से आगे है, लेकिन गरीबी निवारण की दिशा में दोनों देशों को अभी बहुत कुछ करना है. पाक में निर्धनतम लोगों की बेहतरी की दर उसके चार प्रतिशत के राष्ट्रीय वृद्धि दर से अधिक है. आठ प्रतिशत से अधिक की दर के साथ चीन इस श्रेणी में पूरे विश्व में सबसे आगे है. वहीं भारत उन देशों की सूची में शामिल है, जहां निर्धनतम लोगों की आय में बढ़त की दर औसत से नीचे है. विश्व बैंक ने बताया है कि 2016 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत और अगले साल 7.7 प्रतिशत के स्तर पर बनी रहेगी, जो दुनिया के वर्तमान आर्थिक माहौल में एक ठोस प्रदर्शन है.

लेकिन, गरीबी दूर करने, समावेशी नीतियों को फलीभूत करने और मानव विकास के विभिन्न तत्वों को बहुसंख्यक आबादी तक पहुंचाने की चुनौतियां भारत के सामने हैं. आंकड़ों के मुताबिक 21.25 प्रतिशत भारतीय विश्व बैंक द्वारा निर्धारित 1.90 डॉलर प्रतिदिन से कम पर गुजर करते हैं, जबकि पाकिस्तान में यह 8.3 प्रतिशत है. ऐसे में उच्च विकास दर का लाभ गरीब और वंचित तबकों तक पहुंचाने के लिए समुचित नीतिगत पहलों की जरूरत बढ़ जाती है. भारत में समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएं और कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, जिन्हें सफल बनाया जाना चाहिए.

शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार को प्राथमिकता देकर ही विकास और समृद्धि की आकांक्षाओं को अमली जामा पहनाया जा सकता है. अच्छा होगा कि भारत इस ताजा अध्ययन की रोशनी में अपनी खामियों को दुरुस्त कर विकास की रफ्तार लंबे समय तक बनाये रखे, जबकि पाकिस्तान भी दक्षिण एशिया को अशांत करने की अपनी नीति को त्याग कर अपने सर्वांगीण विकास की सुध ले.

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