भारत-पाक रिश्तों पर युवा की सोच

संदीप मानुधने विचारक, उद्यमी एवं शिक्षाविद् लगभग सात दशकों से शांतिप्रिय भारत और आतंक की नर्सरी पाकिस्तान दाेनों देश दुश्मनी और खूनी शत्रुता के बीच के पथ पर चल रहे हैं. भारत की ओर से तमाम मित्रवत प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान न तो भारत की बात को समझ पाता है और न कोई सकारात्मक प्रयास […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 6, 2016 6:33 AM
संदीप मानुधने
विचारक, उद्यमी एवं शिक्षाविद्
लगभग सात दशकों से शांतिप्रिय भारत और आतंक की नर्सरी पाकिस्तान दाेनों देश दुश्मनी और खूनी शत्रुता के बीच के पथ पर चल रहे हैं. भारत की ओर से तमाम मित्रवत प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान न तो भारत की बात को समझ पाता है और न कोई सकारात्मक प्रयास कर पाता है, जिससे यह यकीन हो कि मित्रता का एक नया अध्याय प्रारंभ हो सकेगा. हर कुछ वर्षों में एक उबाल आता है और सारा राष्ट्रीय संवाद भारत-पाक रिश्तों के इर्द-गिर्द सिमट कर रह जाता है. पाकिस्तान का तो शायद ज्यादा नहीं, किंतु भारत का इसमें बहुत नुकसान हो रहा है.
यह देखना बेहद रोचक है कि इस सब पर भारत और पाकिस्तान का युवा वर्ग क्या राय रखता है. जाहिर है, सैन्य निर्णय लेनेवाले तो वरिष्ठ राजनेता और सैन्य अधिकारी ही होते हैं, और युवा तो केवल मीडिया से छन-छन कर आ रही खबरों पर ही अपनी राय बना पाता है.
भारत और पाकिस्तान दोनों ही बेहद युवा देश हैं. भारत की वर्तमान 130 करोड़ जनसंख्या का 46 प्रतिशत हिस्सा 24 वर्ष की उम्र से भी कम है और पाकिस्तान में तो यह संख्या 50 प्रतिशत से भी ज्यादा है. यदि आधी आबादी इतनी युवा है, तो उनकी सोच और प्रतिक्रिया को समझना बेहद महत्वपूर्ण होगा. न केवल इसलिए कि वे कल के नीति-निर्माता होंगे, वरन इसलिए भी कि उनकी सोच से हम कल का रुख समझ सकेंगे! और अगर आप भी एक युवा हैं, तो आपकी स्व-विश्लेषण प्रक्रिया में यह बेहद मददगार साबित होगा.
कई वर्षों से युवाओं से सोशल मीडिया एवं प्रत्यक्ष संवाद कर मैंने इस वर्गीकरण को समझने का प्रयास किया है. इस विषय पर भारत के युवाओं को हम तीन हिस्सों में बांट सकते हैं- (1) बेहद देशभक्त और उत्तेजित, (2) ऐसा देशभक्त, जो राजनीतिक या किसी अन्य सोच से प्रभावित है और बड़ी गहराई से सोचता है, और (3) उदासीन. इन तीनों ही वर्गों में आपको अलग-अलग तीव्रता के युवा मिलेंगे.
सबसे पहले बात करें पहले वर्ग की, अर्थात बेहद देशभक्त और उत्तेजित युवा वर्ग की. इसमें ऐसे युवा मिलेंगे, जिन्हें आर-पार की बातें करना बेहद पसंद है. इनकी तथ्यों में अथवा इतिहास की बारीकियों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती और न ही वे इतना प्रयास कर पाते हैं कि मुफ्त में इंटरनेट पर उपलब्ध अनेकों भरोसेमंद साइट्स पर लेखों को पढ़ कर एक समझदार राय बना सकें. ऐसे में इनकी स्व-स्फूर्त प्रतिक्रिया होती है कि सोशल मीडिया पर या किसी भी अन्य मंच पर अपने विचार तुरंत व्यक्त कर दिये जायें. ये विचार अक्सर अतिरेकी होते हैं और इन विचारों में अधिक-से-अधिक लोगों से प्रशंसा भी पाने के प्रयास होते हैं. कुछ प्रतिभाशाली व्यक्ति तो चित्र या इमेज बना कर सोशल मीडिया पर जबरदस्त वाहवाही लूट लेते हैं. किंतु जैसे ही घटना की गर्माहट कम हुई, वे न केवल उसे भुला देते हैं, वरन सामान्य जीवन में पाकिस्तानी कलाकारों के गाने आदि सुन कर मदमस्त भी होते रहते हैं. ऐसे अनेक युवा हमारी राजनीतिक पार्टियों के लिए ‘आइडियल हंटिंग ग्राउंड’ का कार्य करते हैं.
दूसरे वर्ग के युवा वे हैं, जिन्हें पढ़ने की भूख है और वे लगातार अखबार या विकीपीडिया का संदर्भ लेकर, अपने मत और तर्कों को तथ्यों से सुसज्जित कर पेश करना जानते हैं. उन्हें पता है कि किसी भी भावनात्मक मुद्दे पर यदि अपनी बात को वजनदार तरीके से अगले तक पहुंचाना है, तो थोड़ी गहराई तक जाना ही होगा. मुद्दे को दोनों तरफ से समझना होगा और ऐतिहासिक तथ्यों की मदद से अपने मत को इतना मजबूत करना होगा कि उसे तोड़ पाना मुश्किल हो जाये. ऐसे अनेक युवा वर्षों से अपनी सोच और लेखन शैली को सुधारते हुए एक अच्छे वक्ता या लेखक भी बन जाते हैं. जब वे प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठते हैं, तो उनके उत्तरों में एक गहराई और सोच साफ दिखाई पड़ती है. उनका एप्रोच अतिरेकी न होते हुए, बेहद समझदारी भरा होता है और इसलिए लंबे समय तक वे रेस में बने रहते हैं. ऐसे युवा, जब वरिष्ठ बन कर अधिकारी या राजनेता बनते हैं, तो वे देश को उच्चतम स्तर पर लाभ पहुंचा पाते हैं.
और तीसरे वर्ग के युवा सबसे समझदार और खुशनसीब होते हैं- क्योंकि वे पूर्णतः उदासीन होते हैं! उन्हें कोई मतलब नहीं कि कौन भारत का दुश्मन है, कौन कहां शहीद हुआ और विश्व में हमारी स्थिति क्या बन रही है. अगर उन्हें मतलब है, तो बस एक चीज से- अपनी दाल-रोटी मस्त चलती रहे! उन्हें न तो पढ़ने का कोई शौक है, न किसी विषय को गहराई से समझने का जज्बा है. बस अपनी दुनिया, अपना जीवन. इसमें देखा जाये, तो कोई बुराई नहीं है, किंतु जब ऐसा कोई व्यक्ति सरकार की बुराई करने लगे, या बड़ी परीक्षाओं को पास करने का सपना देखने लगे, तो अचरज होता है.
मेरा यह विश्लेषण हजारों छात्रों को समझने से हुआ है. सोशल मीडिया पर अनेक पाकिस्तानी युवा भी जुड़ते हैं, जो तब तक तो पूरी तरह से अनुशासित होते हैं और सम्मान देते हैं, जब तक सीमा पर कोई संघर्ष न चल रहा हो. हाल ही में भारत की सेना के पैने हमलों (सर्जिकल स्ट्राइक्स) के बाद जब मैंने बधाई संदेश फेसबुक पर डाला, तब अनेकों पाकिस्तानी युवा मुझ पर ज्ञान और सभ्यता के पाठ की वर्षा करने लगे. कुछ ने तो बेहद इनोवेटिव गालियों से मेरा स्वागत कर डाला! तो विश्लेषण सरल है- वर्ग एक (बेहद देशभक्त और उत्तेजित) वाले पाकिस्तानी युवाओं का प्रतिशत काफी बड़ा दिखता है. हालांकि, कुछ सोशल मीडिया में (जैसे कोरा- Quora आदि) बेहद गंभीर पाकिस्तानी युवा भी दिखते हैं, लेकिन ऐसा कम ही होता है.
अंत में, एक बात तो साफ है. भारत में जिस स्वतंत्रता से विविध मत देखने-सुनने-पढ़ने को मिल जाते हैं, वह हमारी लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक परंपरा का एक प्रमाण है. वहीं इसके ठीक उलट, पाकिस्तानी व्यवस्था शायद यह सुनिश्चित करने में लगी है कि भारत से लड़ाई जारी रखने और भारत की छवि को गलत पेश करने से ही उनका देश एकजुट रह पायेगा. ये संकेत बिल्कुल अच्छे नहीं हैं.

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