नाभि बची, सिर भी सलामत
अनिल रघुराज संपादक, अर्थकाम.काॅम रामलीला खत्म होने को है, लेकिन रावणलीला जारी है. सदियों से हम बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते आ रहे हैं. लेकिन, हर दशहरे पर पुतला जलने के बावजूद रावण अट्टहास करता रहता है. यहां दो बातें गौरतलब हैं. एक, रावण सत्ताजनित अहंकार का प्रतीक है. परम ज्ञानी, परम […]
अनिल रघुराज
संपादक, अर्थकाम.काॅम
रामलीला खत्म होने को है, लेकिन रावणलीला जारी है. सदियों से हम बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते आ रहे हैं. लेकिन, हर दशहरे पर पुतला जलने के बावजूद रावण अट्टहास करता रहता है. यहां दो बातें गौरतलब हैं. एक, रावण सत्ताजनित अहंकार का प्रतीक है. परम ज्ञानी, परम शक्तिशाली, परम धनवान. लेकिन अहंकार ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा. दो, नाभि पर चोट न की जाये, तो साक्षात भगवान भी रावण काे नहीं मार सकते. सत्ताजनित अहंकार झूठ व अतिरंजना का सहारा लेता है, जबकि विरोधी पक्ष भ्रमित होने के कारण अपनी शक्तियों का अपव्यय कर रहा है. रावण के सिर काटते-काटते थक जाता है. मगर, नाभि का रहस्य नहीं पता, इसलिए रावण का कुछ नहीं बिगड़ता.
सरकार और विरोधी पक्ष का तमाशा जारी है और जनता टुकुर-टुकुर देख रही है. संदर्भ किसी सीमापार सर्जिकल स्ट्राइक का नहीं, बल्कि स्वेच्छा से काला धन घोषित करने की स्कीम का है, जो पहली जून से चार महीने खुली रहने के बाद 30 सितंबर को बंद हुई. इसके अगले ही दिन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संवाददाता सम्मेलन में इसे सफलतम स्कीम घोषित कर दिया.
बताया कि इसमें 64,275 लोगों ने 65,250 करोड़ रुपये का काला धन घोषित किया है. अंतिम आंकड़ा ज्यादा ही रहेगा. फिलहाल घोषित रकम पर 45 प्रतिशत की दर से केंद्र सरकार को 29,362 करोड़ रुपये का टैक्स मिलेगा.
वित्त मंत्री और उनके अफसरों ने स्कीम की कामयाबी का डंका बेहद जोर-शोर से बजाया. लेकिन, 28-29 सितंबर की रात में पाक-अधिकृत कश्मीर में भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के धमाके में इस ‘ऐतिहासिक कामयाबी’ को तवज्जो नहीं मिली. जेटलीजी 2 अक्तूबर को विदेश यात्रा पर निकल गये. तीन दिन कनाडा रहने के बाद अमेरिका चले गये और वहां आइएमएफ व विश्व बैंक की बैठकें निबटाने के बाद लौटे.
सवाल उठता है कि क्या काला धन घोषित करने की स्कीम वाकई इतनी कामयाब रही है?
वित्त मंत्रालय इसकी तुलना 1997 की स्कीम से कर रहा है. उसका कहना है कि तब टैक्स की दर 30 प्रतिशत थी. फिर भी कुल 33,000 करोड़ रुपये का ही काला धन घोषित किया गया था और सरकार को करीब 10,000 करोड़ रुपये का टैक्स मिला. तब काला धन घोषित करनेवालों की संख्या 4.7 लाख थी. इस बार जहां औसतन प्रति व्यक्ति एक करोड़ रुपये का काला धन घोषित किया गया है, वहीं तब यह औसत 7 लाख रुपये रहा था. कुल मिला कर इस बार सरकार को तब की तुलना में तीन गुना टैक्स मिल रहा है.
इस तुलना में वित्त मंत्रालय उसी तरह की चालाकी कर रहा है, जैसी वित्तीय जगत में जनता को उल्लू बनानेवालेधंधेबाज किया करते हैं. 1997 और 2016 के बीच 19 साल का अंतर है.
इसलिए धन का समय-मूल्य निकाल कर ही इन स्कीमों की तुलना की जा सकती है. दूसरे, इसमें मिली रकम की तुलना सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के संदर्भ में की जानी चाहिए. 1996-97 में हमारा जीडीपी 13.02 लाख करोड़ रुपये था, जिसका 0.77 प्रतिशत हिस्सा सरकार को उस स्कीम से बतौर टैक्स मिला था. 2015-16 में जीडीपी 135.76 लाख करोड़ रुपये है, जबकि इस बार मिला टैक्स उसका 0.22 प्रतिशत ही है. जब जीडीपी 10.4 गुना हो गया हो, तब प्राप्त टैक्स के मात्र तीन गुना होने को कैसे सफलतम माना जा सकता है!
सबसे ज्यादा चौंकानेवाली बात यह है कि इस बार जिन 64,275 लोगों ने काला धन घोषित किया है, उसमें से बमुश्किल 15 प्रतिशत लोगों से स्वेच्छा से यह घूंट पीया है. बाकी 85 प्रतिशत को आयकर विभाग ने दौड़ा-दौड़ा कर लाइन में खड़ा किया. विभाग ने 20 सितंबर तक देश के सभी 18 टैक्स सर्किलों में 200 सर्वे किये और उसके आधार पर 7 लाख लोगों को पत्र भेजे. इनमें से करीब एक लाख छोटे व्यापारी, स्वर्णकार, रिटेलर व वेंडर थे. खुद केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की चेयरमैन रानी सिंह नैयर ने स्वीकार किया है कि विभाग की तरफ से सिक्योरिटीज और कमोडिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स के आंकड़े खंगाले गये. यही नहीं, बेहद गिरे हुए भावों के शेयरों या पेन्नी स्टॉक्स के निवेशकों की सूची निकाली गयी. फिर संभावित काला धन रखनेवालों को कहा गया है कि 45 प्रतिशत टैक्स देकर मुक्त हो जाओ. नहीं तो लेने के देने पड़ेंगे.
वैसे तो सीबीडीटी ने कहा है कि इस स्कीम में घोषणा करनेवालों की पहचान गोपनीय रखी जायेगी. राज्यवार या क्षेत्रवार भी जानकारी नहीं दी जायेगी. लेकिन, आयकर विभाग के सूत्रों से सामने आ चुका है कि सबसे ज्यादा काला धन आंध्र प्रदेश व तेलंगाना सर्किल से आया है, जबकि सबसे कम बिहार व झारखंड से. दिलचस्प है कि 4,200 करोड़ रुपये का काला धन जमा करनेवाले गुजरात के सूरत शहर के व्यवसायियों ने अपने दफ्तरों के आगे पोस्टर लगा कर घोषित किया कि उन्होंने इस स्कीम में काला धन जमा कराया है. बाद में आयकर विभाग की डपट के बाद उन्हें पोस्टर हटाने पड़े. इससे लगा कि काला धन घोषित करना उनके लिए हंसी-मजाक के खेल जैसा था.
यह बड़ी गंभीर समस्या है. एक अनुमान के मुताबिक, देश के भीतर इस समय जीडीपी का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा काले धन के रूप में मौजूद है. यह धन करीब 28 लाख करोड़ रुपये का बनता है.
इसमें से 62,250 करोड़ रुपये मात्र 2.33 प्रतिशत है. इस पर किसी भी जिम्मेवार सरकार को ढोल नहीं बजाना चाहिए. विदेश में रखे भारतीयों के जिस 20-25 लाख करोड़ रुपये के काले धन की बात की जा रही थी, उसमें से केंद्र सरकार द्वारा 3 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट में दिये गये हलफनामे के अनुसार अभी तक कुल 8,186 करोड़ रुपये देश में लाये गये हैं. क्या इसे जश्न मनाने जैसी कामयाबी मानी जा सकती है?
काला धन वह धन है जिस पर सरकार को टैक्स नहीं दिया जाता. कोई कह सकता है कि धार्मिक संस्थानों से लेकर तमाम कल्याणकारी ट्रस्ट करोड़ों के नोट और सोना रखने के बावजूद कोई टैक्स नहीं देते. बहुत से किसान सरकारी सब्सिडी पर हर साल लाखों कमाते हैं, लेकिन एक ढेला टैक्स नहीं देते. फिर सबसे बड़ी बात कि काला धन का मूल स्रोत तो राजनीति व अफसरशाही का भ्रष्टाचार है. क्या काले धन की इस नाभि पर हमला किये बगैर उसका नाश किया जा सकता है?