अपनी-अपनी सर्जिकल स्ट्राइक

डॉ सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार यह विजयादशमी कुछ खास रही, प्रधानमंत्री ने बताया. हालांकि, इतनी खास भी नहीं रही, खासकर आम आदमी के लिए. वह बेचारा तो महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी से पहले की तरह ही परेशान रहा. उसकी प्लेट से तो मिठाई का एक टुकड़ा और कम हो गया. उसके बच्चों के तो तीर-कमान, गदा-तलवारें […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 14, 2016 12:14 AM

डॉ सुरेश कांत

वरिष्ठ व्यंग्यकार

यह विजयादशमी कुछ खास रही, प्रधानमंत्री ने बताया. हालांकि, इतनी खास भी नहीं रही, खासकर आम आदमी के लिए. वह बेचारा तो महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी से पहले की तरह ही परेशान रहा. उसकी प्लेट से तो मिठाई का एक टुकड़ा और कम हो गया. उसके बच्चों के तो तीर-कमान, गदा-तलवारें पहले से और छोटी हो गयीं.

उसके त्योहार का तो ‘त्यो’ ही पता नहीं कहां खो गया, सिर्फ ‘हार’ बचा रह गया, जिसे गले में डाल कर घूमते हुए उसने यह जताने में कसर नहीं छोड़ी कि यह हार, हार नहीं, जीत है.

आम आदमी ही क्या, इस बार तो रावण भी महंगाई से पीड़ित नजर आया. सोशल मीडिया पर एक कार्टून वायरल रहा, जिसमें पिचके पेट और उभरी हड्डियों वाला एक रावण खुद को हक्का-बक्का होकर देख रहे पत्रकार से कहता दिखाई देता है कि ‘का देख रहे हैं…

हम भ्रष्टाचार, सूखा और महंगाई से पीड़ित रावण हैं.’ ठीक भी है, जैसा आदमी, वैसा उसका रावण. आखिर आदमी से ही राम भी है और रावण भी. राम चाहे न भी हो, रावण तो पक्का आदमी से ही है. अकबर इलाहाबादी ने जो कुछ खुदा के संबंध में कहा था, वह रावण के संबंध में कहीं ज्यादा विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है- हर जर्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से, हर सांस ये कहती है, हम हैं तो दशानन है.

अन्य बहुत-से मामलों में भी यह विजयादशमी पहले जैसी ही रही. इस बार भी राम आये, रावण को मारा, दोनों ने आयोजक से अपनी-अपनी फीस ली और लौट गये अगले वर्ष फिर से मरने-मारने की तैयारी करने के लिए. जहां कहीं आयोजक ने फीस देने में आनाकानी की, वहां रावण ने फीस मिलने तक मरने से इनकार भी कर दिया बताते हैं. रावण की फीस वैसे भी राम से ज्यादा होती है, पता ही होगा आपको.

बीकानेर में कहीं संजीवनी बूटी लाने गये ‘हनुमान’ जी की द्रोणागिरि पर्वत से गिर कर मौत भी हो गयी. कहीं किसी जेल में आयोजित रामलीला में हनुमान की भूमिका निभा रहा एक कैदी संजीवनी बूटी लेने गया, तो फिर लौट कर ही नहीं आया.

जेलर बेचारा अभी तक सदमे में है और समझ नहीं पा रहा कि उस कैदी को द्रोणागिरी पर्वत नहीं मिला या वह उसे उठा नहीं पाया? अब कुछ चरित्रवान कैदी स्वयं को उस लापता कैदी को ढूंढ़ने जाने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं, तो कुछ अन्य कैदी अगले वर्ष रामलीला में हनुमान बनने का अवसर खुद को दिये जाने की मांग कर रहे हैं.

राम का रावण से गंठबंधन हुआ लगता है इस बात को लेकर, कि राम के मारने पर वह मरता दिखेगा तो अवश्य, पर मरेगा नहीं, ताकि वे अगले वर्ष उसे फिर मार सकें. वैसे भी रावण को मारने की बात साल में एक ही दिन उठती है, चुनाव के दिनों में राममंदिर बनाये जाने की तरह.

फिर भी प्रधानमंत्री ने इस विजयादशमी को खास बताया, तो शायद दसेक दिन पहले भारतीय सेना द्वारा की गयी सर्जिकल स्ट्राइक के कारण, जिसे भक्तों ने ‘ऐसा पहली बार हुआ है 61-62 सालों में’ जैसा कुछ गाते हुए पहली सर्जिकल स्ट्राइक बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

वर्ष 2011 के ‘ऑपरेशन जिंजर’ को भक्तों ने न सर्जिकल माना, न स्ट्राइक, बावजूद इसके कि उसमें हमारी सेना शत्रु-सैनिकों के सिर भी काट कर ले आयी थी. तब की सरकार ने उसे इसलिए छिपाया, क्योंकि वह एक खास तबके को नाराज नहीं करना चाहती थी, अब की सरकार इसे इसलिए प्रचारित कर रही है, क्योंकि वह एक खास तबके को खुश करना चाहती है. जनता का फर्ज हर हालत में नेताओं द्वारा अपने वोटों पर सर्जिकल स्ट्राइक करवाने के लिए तैयार रहना है.

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