भूख की नींव पर विकास

जीने के लिए हवा और पानी की तरह भोजन भी जरूरी है, लेकिन भारत की आबादी का 15.2 फीसदी हिस्सा गंभीर कुपोषण से त्रस्त है. बच्चों में यह संख्या 38.7 फीसदी है. इन्हें सामान्य स्वास्थ्य के लिए वांछित भोजन भी उपलब्ध नहीं है. वाशिंगटन स्थित इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा जारी ‘वैश्विक भूख सूचकांक’ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 14, 2016 12:15 AM
जीने के लिए हवा और पानी की तरह भोजन भी जरूरी है, लेकिन भारत की आबादी का 15.2 फीसदी हिस्सा गंभीर कुपोषण से त्रस्त है. बच्चों में यह संख्या 38.7 फीसदी है. इन्हें सामान्य स्वास्थ्य के लिए वांछित भोजन भी उपलब्ध नहीं है. वाशिंगटन स्थित इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा जारी ‘वैश्विक भूख सूचकांक’ में 118 विकासशील देशों की सूची में भारत 97वें पायदान पर है. पाकिस्तान (107) को छोड़ कर हमारे सभी पड़ोसी देश- चीन (29), नेपाल (72), म्यांमार (75), श्रीलंका (84) और बांग्लादेश (90)- हमसे बेहतर स्थिति में हैं.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 1992 के बाद से जिस दर से भुखमरी की हालत में सुधार हुआ है, उसे बरकरार रखने पर भी भारत, पाकिस्तान, हैती, यमन और अफगानिस्तान जैसे 45 से अधिक देशों में यह समस्या बनी रहेगी. इसका अर्थ यह है कि 2030 तक दुनिया को भूख की त्रासदी से मुक्त करने के लक्ष्य को पाना लगभग असंभव है. भारत के लिए यह बड़ी चिंता की बात इसलिए है कि बड़ी आबादी के कारण भूख से बेहाल लोगों की संख्या सूची में शामिल देशों से बहुत अधिक है.
सूचकांक के चार पैमानों- आबादी में कुपोषण, शिशु मृत्यु दर, बाल विकास में बाधाएं तथा बच्चों में कुपोषण का स्तर- पर निर्धारित 100 अंकों के लिहाज से भारत का स्कोर 28.5 है, जो 21.3 के विकासशील देशों के औसत से कहीं अधिक है, जबकि ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे देशों में यह स्कोर पांच से भी नीचे है. सामाजिक-आर्थिक विषमता और पिछड़ेपन के अन्य सूचकों के साथ भोजन न मिल पाने की मुश्किल को रखें, तो यह हमारे भविष्य के लिए बुरी खबर है. हम इस बात से संतोष भले कर लें कि बच्चों के कुपोषण का आंकड़ा 1990 के दशक के 60 फीसदी से अधिक के स्तर से गिर कर 40 फीसदी से नीचे आ गया है, लेकिन संख्या के लिहाज से भयावहता में कमी नहीं आयी है.
भारत की आबादी में युवाओं की सर्वाधिक संख्या है, जो आगामी कई वर्षों तक बनी रहेगी. कुपोषित बचपन की नींव पर हम विकास और समृद्धि की आकांक्षाओं को वास्तविकता का रूप तो नहीं दे सकेंगे. ऐसे में यह जरूरी है कि देश के सर्वाधिक वंचित तबकों तक विकास और कल्याणकारी योजनाओं का समुचित लाभ तुरंत पहुंचाने के ठोस प्रयास किये जायें.

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