गलती प्रशासन की है
उत्तर प्रदेश के बनारस में भगदड़ से हुई कम-से-कम 24 लोगों की मौत ने उन आयोजनों के प्रबंधन से जुड़े सवालों को फिर रेखांकित किया है जिनमें बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं. न तो ऐसा हादसा पहली बार हुआ है और न ही यह पहला अवसर है जब प्रशासन इसकी सीधे जिम्मेवारी लेने से […]
उत्तर प्रदेश के बनारस में भगदड़ से हुई कम-से-कम 24 लोगों की मौत ने उन आयोजनों के प्रबंधन से जुड़े सवालों को फिर रेखांकित किया है जिनमें बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं.
न तो ऐसा हादसा पहली बार हुआ है और न ही यह पहला अवसर है जब प्रशासन इसकी सीधे जिम्मेवारी लेने से कतरा रहा है. इसी साल 10 अप्रैल को केरल के एक एक मंदिर में आतिशबाजी से लगी आग और भगदड़ में 100 से अधिक जानें गयी थीं और सैकड़ों लोग घायल हुए थे.
पांच मई को सिंहस्थ के कुंभ मेले में भारी बारिश से मची अफरा-तफरी में सात लोग मारे गये थे और करीब सौ लोग घायल हुए थे. पिछले साल आंध्र प्रदेश में तथा 2014 में पटना और मुंबई में भगदड़ की ऐसी घटनाएं हुई थीं. वर्ष 2013 में इलाहाबाद में कुंभ से लौट रहे करीब 36 यात्रियों को एक रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में जान से हाथ धोना पड़ा था, तो मध्य प्रदेश के एक मंदिर में 115 से अधिक लोग मारे गये थे. ऐसी घटनाओं की सूची बहुत लंबी है और कुछ गिने-चुने राज्यों को छोड़ दें, तो हाल के वर्षों में हर राज्य में ऐसे हादसे हुए हैं. भीड़-भाड़ की स्थिति में व्यवस्था बनाये रखने तथा किसी आपात स्थिति से निबटने की जिम्मेवारी तो प्रशासन की ही होती है.
यदि बनारस के आयोजन के बारे में प्रशासन को कम लोगों के आने की जानकारी दी गयी, तो प्रशासन अपने तंत्र के जरिये सही आकलन कर पाने में असफल क्यों रहा? रिपोर्टों की मानें, तो हादसे की स्थिति में मदद मांगने के लिए बनाये गये हेल्पलाइन के फोन नंबर काम नहीं कर रहे थे.
इस घटना से यही बात साबित होती है कि प्रशासन ने पूर्ववर्ती हादसों की उपेक्षा करते हुए बेहद लापरवाह रवैया अपनाया है. ऐसे आयोजनों में आतंकी हमले की आशंका भी रहती है तथा इन्हें बहुत संवेदनशील भी माना जाता है. यदि इस हादसे के बाद भी उत्तर प्रदेश समेत अन्य सभी राज्यों की सरकारों ने सबक नहीं लिया, तो हमारे पास अगले हादसे की आशंका में दिल थाम कर बैठने के अलावा कोई उपाय नहीं है.