शोध का निष्कर्ष है कि बीते चार सालों में देश से हर दिन औसतन 550 नौकरियां खत्म हुई हैं और यही स्थिति रही तो 2050 तक 70 लाख नौकरियां खत्म हो जायेंगी. उधर, विश्वबैंक के ताजा आकलन के मुताबिक उत्पादन और वितरण के अधिकाधिक मशीनीकृत होते जाने के कारण भारत में करीब 69 फीसदी नौकरियों के खत्म होने का खतरा है. इस स्थिति को लेबर ब्यूरो के आंकड़ों से मिला कर देखा जाना चाहिए, जो बताते हैं कि 15 साल या इससे ज्यादा उम्र के मौजूदा कार्यबल में बेरोजगारी दर 5 फीसदी पर पहुंच गयी है और कार्यबल के करीब एक तिहाई (35 फीसदी) हिस्से को साल में कुछ महीने ही रोजगार मिलता है.
जनगणना के मुताबिक, देश में 15 साल या इससे ज्यादा उम्र के 45 करोड़ लोग हैं. यानी जीविका तलाशते करीब 2.3 करोड़ लोग रोजगार के किसी भी अवसर से वंचित हैं और 16 करोड़ के पास पूरे साल चलनेवाला स्थायी रोजगार नहीं है. ध्यान रहे कि देश के श्रमबल का 47 फीसदी हिस्सा स्वरोजगार पर निर्भर है, जहां नियमित आय की गारंटी नहीं है.
ऐसे में अचरज नहीं कि देश के 68 फीसदी परिवारों की सभी स्रोतों से कुल आय 10 हजार से ज्यादा नहीं हो रही. गांवों की दशा तो और भी बुरी है, जहां लेबर ब्यूरो के नये आंकड़ों के मुताबिक 42 फीसदी श्रमबल को साल के कुछ ही महीने का रोजगार मिल रहा है और 77 फीसदी ग्रामीण परिवार महीने में 10 हजार भी नहीं कमा पा रहे. बेशक देश की आर्थिक वृद्धि दर ऊंची है और जीडीपी का आकार बढ़ रहा है, लेकिन अर्थव्यवस्था ‘रोजगारहीन विकास’ भविष्य के बड़े संकट का कारक बन सकता है. देश में श्रमबल के बढ़ते आकार और रोजगार की मांग को देखते हुए जल्द कारगर कदम उठाना जरूरी है.