”बरखा विगत शरद रितु आई”
किसानी करते हुए मौसम के अनुसार हम मन और खेत को सजाने लग जाते हैं. मन की क्यारी में सुंदर फसल के लिए बीज बोने लगते हैं. यही वजह है कि खेती-किसानी करते हुए हम हर मौसम में उत्सव की प्याली में चाय की चुस्की लेते हैं. जीवन की आपाधापी में हम फसलों से काफी-कुछ […]
किसानी करते हुए मौसम के अनुसार हम मन और खेत को सजाने लग जाते हैं. मन की क्यारी में सुंदर फसल के लिए बीज बोने लगते हैं. यही वजह है कि खेती-किसानी करते हुए हम हर मौसम में उत्सव की प्याली में चाय की चुस्की लेते हैं. जीवन की आपाधापी में हम फसलों से काफी-कुछ नया सीखते हैं. जीवन का व्याकरण खेत-खलिहान में दाखिल होकर खुद ही हल हो जाता है. देखिये न, अब हम शरद ऋतु में दाखिल हो चुके हैं. धान के बाद अब हम खेतों को आलू और अन्य सब्जियों से सजाने की तैयारी में लग गये हैं. बारिश के बाद खेतों की सुंदरता बढ़ गयी है.
दरअसल, धान की खेती भी हम दो तरह से करते हैं. कुछ किसान धनरोपनी पहले करते हैं, जिस वजह से उनके धान को ‘अगता’ कहा जाता है और इसकी कटाई अक्तूबर में हो जाती है. वहीं कुछ किसान एक-दो महीने बाद धनरोपनी करते हैं, जिसकी कटाई दिसंबर तक होती है. ऐसे में त्योहारों के बीच हम किसानी कर रहे लोग खेत में ही उत्सव के रंग में डूब जाते हैं. आप सभी जब इन दिनों त्योहारों के मौसम का आनंद लेने में जुटे हैं, वहीं कृषक समाज आप सभी के डाइनिंग टेबल के लिए सब्जियां उगाने में लगा हुआ है.
शरद ऋतु की शुरुआत से ही सब्जियों के लिए खेत तैयार होने लगता है. वैसे इस मौसम में फूलों की दुनिया भी हमें खूब खिंचती है. इस मौसम में खिलनेवाले फूल हरसिंगार से गांव की दुनिया और भी सुंदर हो जाती है. सड़क के किनारे हरसिंगार के फूल दिख जाते हैं. इसे पारिजात भी कहते हैं. यह एक सुंदर वृक्ष होता है. इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है.
खेत के आल पर एक से बढ़ कर एक वन-फूल देखने को मिलते हैं. साहित्य में तो इस मौसम का खूब वर्णन हुआ है. हाल में ही एक सरकारी स्कूल के शिक्षक से शरद ऋतु को लेकर लंबी बात हुई. उन्होंने साहित्य और किसानी को लेकर अपनी बात में समझाया कि किस तरह कालिदास ने इस मौसम के बारे में लिखा है. दरअसल, कालिदास ने कहा है, ‘यह ऋतु दिग्विजयी यात्रा के लिए विशेष उपयुक्त है, क्योंकि नदियों में पानी कम हो जाने से और मार्ग में कीचड़ सूख जाने से यातायात में सरलता हो जाती है. इसलिए संभवतः इस ऋतु में सबसे अधिक पर्व, उत्सव, मेलों का आयोजन होता है.’
तुलसीदास ने भी ‘रामचरितमानस’ में शरद ऋतु के बहाने राम के मुख से कहलवाया है- ‘बरखा विगत शरद रितु आई, लछिमन देखहु परम सुहाई/ फूले कास सकल महिछाई, जनु बरषा कृत प्रकट बुढ़ाई.’ मास्टर साहेब की बात सुनने के बाद जब अपने खलिहान में धान की तैयारी देखता हूं, तो लगता है हम मौसम के कितने करीब हैं. मौसम हमें वह पाठ पढ़ा देता है, जिसके लिए पहले हमें पन्ना पलटना पड़ता था.
इसी बीच पुराने बरगद के पेड़ पर कुछ ऐसी चिड़ियां दिख जाती हैं, जो हर साल इसी महीने पहाड़ों से आती हैं. मौसम का ज्ञान कोई इन पक्षियों से सीखे. धनकटनी के बाद खेतों में इन चिड़ियों की आवाजाही बढ़ गयी है. अब जब हम आलू के लिए खेत की जुतायी कर रहे हैं, तब मिट्टी के संग इन चिड़ियों की अठखेलियां देखनेवाली होती है. अब तो सुबह-सुबह ओस की बूंदें दिखने लगी हैं. तड़के कुहासे में गांव का बलदेव प्रातकी गाने लगा है. शरद के इस मौसम की कहानी खेत-खलिहान के अलावा अब धीरे-धीरे लोगबाग के चेहरे पर दिखने लगेगी. यही है गाम-घर की दुनिया, यही है मौसम की कहानी. ऐसी ही छोटी-छोटी कहानियों से हमारी किसानी की दुनिया बनती आयी है.
गिरींद्र नाथ झा
ब्लॉगर एवं किसान
girindranath@gmail.com