मौत बांटते अस्पताल

अस्पताल में जीवनदान मिलता है, लोग रोगी होकर आते हैं और स्वस्थ होकर जाते हैं. लेकिन, ओड़िशा के एक प्रमुख अस्पताल में लगी आग ने सदियों से चले आ रहे इस विश्वास को झुठला दिया है. वहां आइसीयू में भर्ती 22 मरीजों को जीवनदान की बजाय मौत मिली. आग लगने की तात्कालिक वजह शार्टसर्किट बतायी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 19, 2016 1:06 AM

अस्पताल में जीवनदान मिलता है, लोग रोगी होकर आते हैं और स्वस्थ होकर जाते हैं. लेकिन, ओड़िशा के एक प्रमुख अस्पताल में लगी आग ने सदियों से चले आ रहे इस विश्वास को झुठला दिया है. वहां आइसीयू में भर्ती 22 मरीजों को जीवनदान की बजाय मौत मिली. आग लगने की तात्कालिक वजह शार्टसर्किट बतायी जा रही है.

राज्य सरकार ने जांच के आदेश दे दिये हैं, तो केंद्र ने भरसक मदद का भरोसा दिया है. लेकिन, मौत के मुंह में समा चुके मरीजों के परिजनों को पहुंची मानसिक और आर्थिक क्षति की भरपाई जांच और मदद के भरोसे से नहीं हो सकती. न ही ओड़िशा या देश में चिकित्सा के इंतजाम ऐसे हैं, जिससे लोगों को भरोसा हो कि दोबारा ऐसी दुर्घटना नहीं होगी. यह त्रासदी ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर में 1,200 बेड वाले एसयूएम अस्पताल में घटी है. राजधानियों के बारे में आम मान्यता है कि वहां गवर्नेंस अपेक्षाकृत दुरुस्त होगा और बड़े अस्पतालों के बारे में तो यह सोचा ही जा सकता है कि वहां सुरक्षा के उपाय चौक-चौबंद होंगे.

लेकिन, इस त्रासदी ने इन दोनों ही मान्यताओं को झुठलाया है. ओड़िशा हाइकोर्ट के हाल के एक आॅर्डर पर गौर करने से यह दुर्घटना और भी त्रासद जान पड़ती है. हाइकोर्ट ने कहा था कि हर अस्पताल में आग से सुरक्षा प्रदान करनेवाली इकाई स्थापित की जाये और अस्पताल के कर्मचारियों को आपदा की स्थिति से निबटने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाये. आशंका यही है कि एसयूएम अस्पताल में हाइकोर्ट के इस आदेश का पालन नहीं हुआ होगा. एसयूएम अस्पताल में लगी आग कोई इकलौती घटना नहीं है. इस साल अगस्त में पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में शार्टसर्किट से आग लगी, जिसमें दो लोगों की मौत हो गयी. बीते साल नवंबर में ओड़िशा के ही कटक में शिशुभवन अस्पताल की आग लगी थी. तब एक नवजात गंभीर घायल हुआ था और लाखों के चिकित्सीय उपकरण खाक हो गये थे. 2011 में कोलकाता के एएमआरआइ अस्पताल की अगलगी की याद अब भी भय की सिहरन पैदा करती है. इसमें 89 लोगों की जान चली गयी थी. अगलगी की वजह थी सुरक्षा-मानकों को धता बता अस्पताल के बेसमेंट में भारी मात्रा में रखी ज्वलनशील सामग्री. चिकित्सा-सुविधा के मामले में दुनिया के शीर्षस्थ देशों से कोसों पीछे भारत के अस्पताल मरीजों के लिए अकालमृत्यु की जगह न बनें, इस दिशा में बगैर समय गंवाये कारगर कदम उठाना जरूरी है. प्रधानमंत्री मोदी ने अस्पताल में मरीजों की मौत की घटना को दिमाग को सुन्न कर देनेवाला बताया है. उम्मीद करनी चाहिए कि वे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के बारे में गंभीरता से सोचेंगे.

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