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पर्रिकर के विवादित बोल

नियंत्रण रेखा के आर-पार सैन्य कार्रवाई पर सतही राजनीति का दौर थमता नहीं दिख रहा है. इसे आगे बढ़ाते हुए अब खुद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा है कि पाक-अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शिक्षाओं की प्रेरणा थी. अपने बयान में उन्होंने संघ के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र […]

नियंत्रण रेखा के आर-पार सैन्य कार्रवाई पर सतही राजनीति का दौर थमता नहीं दिख रहा है. इसे आगे बढ़ाते हुए अब खुद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा है कि पाक-अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शिक्षाओं की प्रेरणा थी. अपने बयान में उन्होंने संघ के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अपने जुड़ाव का भी हवाला दिया है.

प्रधानमंत्री मोदी बहुत पहले ही मंत्रियों और नेताओं को इस मसले पर गैरजिम्मेवाराना बयान न देने की हिदायत दे चुके हैं, लेकिन लगता है कि रक्षा मंत्री को ही इसकी परवाह नहीं है. सैन्य कार्रवाई के तुरंत बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष से संबद्ध कुछ नेताओं ने राजनीतिक खींचतान में सेना को घसीटने की कोशिश की थी, लेकिन अब खुद पर्रिकर ही अपनी कथनी से सेना की बहादुरी और हौसले का इस्तेमाल राजनीतिक इरादे से कर रहे हैं. इससे पहले कार्रवाई को हनुमान के लंका प्रकरण से जोड़ने तथा अपनी पार्टी के एक समारोह में अपना ही अभिनंदन कराने जैसे मामलों पर उनकी खूब आलोचना हो चुकी है. उड़ी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक के निर्णय के लिए विपक्ष समेत पूरे देश ने सरकार की सराहना की है. सेना की वीरता और क्षमता सभी के लिए गौरव का विषय है. ऐसे में रक्षा मंत्री द्वारा कही गयी बातें न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे के राजनीतिक इस्तेमाल का उदाहरण है, बल्कि यह हमारे सैनिकों के मनोबल के लिए नकारात्मक भी है.

शासन और प्रशासन के तंत्रों पर दलीय स्वार्थों से प्रेरित राजनीति के दुष्प्रभावों को देश भुगत रहा है. सेना और न्यायपालिका जैसी संस्थाओं के साथ भी यदि ऐसा होने लगे, तो यह निश्चित तौर पर दुर्भाग्यपूर्ण होगा. इस घटनाक्रम से जुड़े पर्रिकर के कुछ अन्य बयानों से भी उनकी अगंभीरता का पता चलता है. सैन्य कार्रवाई के सबूत मांग कर यदि विपक्ष के कुछ नेता सेना पर सवाल उठाते हुए सरकार को घेरने की राजनीति कर रहे हैं, तो फिर पर्रिकर के बयानों को किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए? रक्षा मंत्री एक महत्वपूर्ण पद है और इस पर आसीन व्यक्ति के बयानों पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नजर रहती है. सामरिक, राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टि से भी रक्षा मंत्री की कथनी-करनी बहुत मायने रखती है. उम्मीद है कि पर्रिकर अपनी जिम्मेवारी को बखूबी समझते हुए अपने बयानों पर आत्ममंथन करेंगे और ऐसी कोई भी बात करने से परहेज करेंगे, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और भारतीय सेना के लिए नुकसानदेह हो.

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