सालाना चौथ वसूली

करवा चौथ पर फेसबुकवासियों की पोस्ट से कई नयी बातें जानने को मिलीं. एक तो यह कि अब पुरुष भी पत्नियों की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखने की सोचने लगे हैं. यहां तक कि जो पत्नी उन्होंने कभी देखी भी नहीं या जो उन्हें कभी दिखी भी नहीं, उसके लिए भी. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 21, 2016 12:36 AM

करवा चौथ पर फेसबुकवासियों की पोस्ट से कई नयी बातें जानने को मिलीं. एक तो यह कि अब पुरुष भी पत्नियों की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखने की सोचने लगे हैं. यहां तक कि जो पत्नी उन्होंने कभी देखी भी नहीं या जो उन्हें कभी दिखी भी नहीं, उसके लिए भी. शायद इस खयाल से कि हो सकता है, इसी तरह वह उन्हें दिख जाये. दूसरे, इससे दूसरे की पत्नी के लिए व्रत रखने का भी मार्ग खुलता दिखा. करवा चौथ के व्रत को लोकप्रिय बनाने का इससे बेहतर उपाय कोई नहीं हो सकता.

दूसरी तरफ, यह पुरुषों का स्त्रियों से बदला लेने का उपाय भी हो सकता है. पति द्वारा पत्नी की लंबी उम्र के लिए व्रत न रखे जाने के कारण पत्नी तो जल्दी निकल लेती है, पीछे पति उसके द्वारा अपनी लंबी उम्र के लिए रखे व्रत के कारण दीर्घजीविता के दुष्परिणाम भोगता है. यह देख हो सकता है, अब पतियों ने भी सोचा हो कि अकेले ही क्यों लंबी उम्र की विपदा भुगती जाये. बुढ़ापे के बढ़ते अकेलेपन ने लंबी उम्र के वरदान को वरदान तो रहने नहीं दिया है.

करवा चौथ पर मैं हर साल सोच में पड़ जाता हूं कि यह उत्सव असल में किसने शुरू किया होगा- पुरुषों ने या स्त्रियों ने? आम धारणा के अनुसार पुरुषों ने स्त्रियों को अपने हित में यह व्रत रखने के लिए तैयार किया होगा. सारे व्रत-उपवास स्त्रियों के लिए ही तय किये गये हैं, पुरुषों के हित में. स्त्रियों ने तो तय किये नहीं होंगे, वरना वे एक-आध व्रत पुरुषों के लिए भी निर्धारित करतीं.

लेकिन, मुझे यह धारणा ज्यादा अपील नहीं करती. पुरुष तो सदैव उम्र में अपने से छोटी स्त्रियों से ही शादी करते रहे हैं. निस्संदेह इसके पीछे उनका यही उदात्त विचार रहा होगा कि कम उम्र की होने के कारण पत्नी पति के बाद दिवंगत होगी, जिससे उसकी आजीवन सेवा होती रहेगी. इसलिए पुरुषों द्वारा अपनी लंबी उम्र के लिए स्त्रियों से व्रत-उपवास रखवाना ज्यादा जमता नहीं. मुझे तो लगता है, पुरुषों की चतुराई की काट के लिए स्त्रियों ने स्वयं ऐसे व्रत-उपवासों की कल्पना की होगी और उन्हें यह झांसा दिया होगा कि तुम्हारी जिंदगी मेरे हाथ में है. मैं व्रत करूं, तो तुम्हारी उम्र लंबी हो, वरना पता नहीं क्या हो. इसलिए अपने खुद ही के हित में मुझे प्रसन्न रखो, ताकि मैं व्रत-उपवास कर तुम्हारा कल्याण सुनिश्चित कर सकूं.

इसीलिए करवा चौथ में ‘चौथ’ शब्द चतुर्थी तिथि के बजाय उस चौथ का वाचक ज्यादा लगता है, जो सत्रहवीं-अठारहवीं शताब्दी में राजा-महाराजाओं द्वारा हमले से बचने-बचाने के लिए दिया-लिया जाता था. मराठी में हर महीने वसूली जानेवाली रंगदारी को भी ‘हफ्ता’ कहा जाता है. डरे हुए पतियों से उपहारों के रूप में सालाना वसूली जानेवाली रंगदारी को महिलाएं ‘चौथ’ कहती हों, तो क्या आश्चर्य? रही उनके उपवास की बात, तो उसका मूल अर्थ ‘पास बैठना’ है, ‘उप’ माने ‘पास’ और ‘वास’ माने ‘बैठना’. ‘उपासना’ का भी यही अर्थ है और ‘उपनिषद्’ का भी. पत्नियां करवा चौथ के उपवास में पास बैठती तो हैं, पर पतियों के नहीं, गहने-कपड़े बेचनेवालों के या फिर ब्यूटी-पार्लर वालों के. उनके साथ पति का भी इनके पास बैठना लाजमी ठहरा.

ऐसा ही एक पति करवा चौथ की पूर्वसंध्या को एक पार्लर के स्वागत-कक्ष में बैठा था. तभी भीतर से एक महिला आयी और उसके कंधे को धीरे-से दबाते हुए बोली, ‘आइए, चलते हैं.’ पति पसीने से तरबतर होते हुए बोला, ‘मैं शादीशुदा हूं और यहां पार्लर में मेरी बीवी भी साथ है.’ महिला बोली, ‘अरे, ध्यान से देखो, मैं ही हूं.’

डॉ सुरेश कांत

वरिष्ठ व्यंग्यकार

drsureshkant@gmail.com

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