यूपी और आयातित नेता

अपने नेताओं पर ऐतबार ना हो, तो आप बाहर से नेताओं का आयात करते हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा इस वक्त यही कर रही है. पहले सपा से स्वामी प्रसाद मौर्य को लाये, उसके बाद बसपा से ब्रजेश पाठक और अब कांग्रेस से रीता बहुगुणा जोशी जी आयीं. क्या फायदा होगा, इससे भाजपा को? मेरे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 26, 2016 7:01 AM
अपने नेताओं पर ऐतबार ना हो, तो आप बाहर से नेताओं का आयात करते हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा इस वक्त यही कर रही है. पहले सपा से स्वामी प्रसाद मौर्य को लाये, उसके बाद बसपा से ब्रजेश पाठक और अब कांग्रेस से रीता बहुगुणा जोशी जी आयीं. क्या फायदा होगा, इससे भाजपा को?
मेरे ख्याल से नुकसान ही होनेवाला है. एक तो राज्य में उनका अंदरूनी कलह जगजाहिर है. यही वजह है कि केशव मौर्य को ये सामने आ कर कहना पड़ा कि पार्टी अभी मुख्यमंत्री का चेहरा पेश नहीं करेगी. वो कर भी नहीं सकते हैं. क्योंकि, पार्टी कैडर में सिर फुटौव्वल की नौबत आ जाती. आयातित नेताओं के बल पर क्या चुनावी बैतरणी को पार किया जा सकता है? कतई नहीं. जो लोग दशकों से पार्टी के साथ हैं, उनमें बगावत होना तो लाजिमी है. पूरे देश में भाजपा विकास का डंका पीटती है, मगर यूपी में वो राम संग्रहालय की बात करती है, तो कभी सर्जिकल स्ट्राइक का पोस्टर लगवाती है.
भरपूर कार्यकर्ताओं के होते हुए दूसरे पार्टी के नेताओं को शॉल ओढा कर स्वागत करना यह दरसाता है कि पार्टी को खुद पर भरोसा नहीं रहा. मैं तो एक कदम आगे जा कर कहूंगा कि कहीं रीता बहुगुणा पार्टी के लिए किरण बेदी न बन जाएं.
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी

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