दहशत की खूनी धमक
पाकिस्तान के क्वेटा शहर के करीब बलूचिस्तान पुलिस कॉलेज में हुए हमले ने एक बार फिर आतंक के वहशी चेहरे को उजागर किया है. इस वारदात में कम-से-कम 60 लोग मारे गये हैं और सौ से अधिक घायल हैं. पाकिस्तान में इस साल हुआ यह चौथा बड़ा आतंकी हमला है. इससे पहले मार्च में लाहौर […]
पाकिस्तान के क्वेटा शहर के करीब बलूचिस्तान पुलिस कॉलेज में हुए हमले ने एक बार फिर आतंक के वहशी चेहरे को उजागर किया है. इस वारदात में कम-से-कम 60 लोग मारे गये हैं और सौ से अधिक घायल हैं. पाकिस्तान में इस साल हुआ यह चौथा बड़ा आतंकी हमला है.
इससे पहले मार्च में लाहौर में, अगस्त में क्वेटा में और सितंबर में उत्तर-पश्चिमी कबायली इलाके में बड़े फिदायीन हमले हो चुके हैं. क्वेटा की घटना की जिम्मेवारी कथित रूप से इसलामिक स्टेट ने ली है, पर अधिकारियों को लश्कर-ए-झांगवी पर भी शक है.
पहले की घटनाओं की जिम्मेवारी भी एक से अधिक गिरोहों ने ली थी. अब सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान अपनी धरती पर सक्रिय दर्जनों चरमपंथी हिंसक गुटों पर कोई गंभीर कार्रवाई करेगा या फिर अंदरूनी और विदेशी नीति के एक हथियार के रूप में इनका इस्तेमाल जारी रखेगा. भारत में पठानकोट और उड़ी के सैन्य ठिकानों तथा कश्मीर में सुरक्षाबलों के शिविरों पर हुए आतंकी हमलों के तौर-तरीके क्वेटा की घटना से मेल खाते हैं.
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कई हालिया फिदायीन हमलों के पैटर्न भी एक जैसे हैं. आतंक से लड़ने का दावा करनेवाली पाकिस्तानी सेना और सरकार को अब तो यह समझ ही लेना चाहिए कि पड़ोसी देशों के खिलाफ छद्म युद्ध में उग्रवादी विचारधारा से प्रेरित तत्वों का प्रयोग और उन्हें प्रोत्साहित करना आत्मघाती है. लगातार हमलों से त्रस्त पाकिस्तानी जनता को भी अपने हुक्मरानों पर दबाव बनाना होगा.
दक्षिण एशिया में इसलामिक स्टेट को भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में पहले से सक्रिय गिरोहों और कट्टरपंथी संगठनों की वजह से सहूलियत हो रही है. पाकिस्तान के खतरनाक रवैये के कारण आतंकियों को न सिर्फ एक सुरक्षित पनाह मिल रही है, बल्कि उन्हें राजकीय संरक्षण भी प्राप्त है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय लंबे समय से पाकिस्तान को चेतावनी तो देता रहा है, पर वैश्विक कूटनीतिक परिदृश्य के अंतर्विरोधों के कारण उसके विरुद्ध ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है.
क्वेटा में मारे गये लोगों और उनके परिजनों की चीख-पुकार शायद उन प्रभावशाली देशों की अंतरात्मा को झकझोर सके जो पाकिस्तानी शासन के भयानक इरादों को लेकर लापरवाह हैं. आतंकवाद पर एक ठोस समझ बनाने के लिए भारतीय प्रस्ताव बरसों से संयुक्त राष्ट्र में लंबित है. पाकिस्तान में खुलेआम आतंक की पैरोकारी कर रहे सरगनाओं पर पाबंदी की मांग पर भी फैसला बाकी है. दहशतगर्दी के खिलाफ निर्णायक लड़ाई में अब देरी उचित नहीं है. क्वेटा की घटना का यही सबक है.