Loading election data...

येदियुरप्पा का बरी होना

कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के लिए यह दीपावली उनके राजनीतिक जीवन की शायद सबसे बड़ी खुशखबरी लेकर आयी है. सीबीआइ की विशेष अदालत ने उन्हें और उनके परिजनों को रिश्वत के ऐसे मामले में बरी कर दिया है, जिसके चलते उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था. फैसले के बाद येदियुरप्पा ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 27, 2016 6:32 AM
कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के लिए यह दीपावली उनके राजनीतिक जीवन की शायद सबसे बड़ी खुशखबरी लेकर आयी है. सीबीआइ की विशेष अदालत ने उन्हें और उनके परिजनों को रिश्वत के ऐसे मामले में बरी कर दिया है, जिसके चलते उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था.
फैसले के बाद येदियुरप्पा ने ट्वीट किया- ‘सत्यमेव जयते’. निश्चित रूप से किसी देश की न्यायिक व्यवस्था की सबसे बड़ी पूंजी यही हो सकती है कि याची को लगे कि वहां हमेशा सच्चाई की जीत होती है. लेकिन, येदियुरप्पा पर आरोप लगने से लेकर उनके आरोप मुक्त होने तक का घटनाक्रम देश की न्यायिक प्रणाली की कुछ विडंबनाओं को भी सामने ला रहा है.
हाल के दशकों में ऐसे कई मामले सामने आये हैं, जब बड़े नेताओं पर पद का दुरुपयोग कर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप लगे, वे दागी माने गये, कुर्सी गंवायी, जेल गये, लेकिन लंबी अदालती कार्यवाही के बाद आरोपमुक्त होकर फिर पद पर काबिज हो गये. ऐसे प्रकरणों से आम जनमानस में गहरे पैठी इस धारणा को बल मिलता है कि ‘बड़े लोगों के हाथ कानून के हाथ से लंबे होते हैं’.
कर्नाटक में 2008 में बनी पहली भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा पर आरोप था कि उन्होंने खनन लाइसेंस देने में पद का दुरुपयोग किया, जिसके लिए 2010 में उनके परिवार और फैमिली ट्रस्ट को 40 करोड़ रुपये की रिश्वत दी गयी थी.
तत्कालीन लोकायुक्त न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े ने इस मामले में 2011 में येदियुरप्पा पर अभियोग लगाया था, जिसमें उन्हें तीन सप्ताह तक जेल में भी रहना पड़ा था. आरोप खारिज करवाने के लिए येदियुरप्पा ने हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन नाकाम रहे. उलटे सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सीबीआइ जांच कराने के आदेश दिये थे.
सीबीआइ ने 2012 में दाखिल चार्जशीट में येदियुरप्पा और 12 अन्य लोगों को दोषी पाया था. लेकिन, सीबीआइ की ही विशेष अदालत ने येदियुरप्पा ही नहीं, उनके दो बेटों और दामाद के अलावा नौ अन्य लोगों को भी आरोपों से बरी कर दिया है. 2018 में होनेवाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह भाजपा के लिए भी बड़ी खुशखबरी है.
लेकिन, इससे उपजे कुछ सवाल अपनी जगह कायम रहेंगे. मसलन, यदि येदियुरप्पा निर्दोष हैं, तो उनके राजनीतिक और निजी जीवन में मचे उथल-पुथल के लिए दोषी कौन है? लोकायुक्त और सीबीआइ ने जिन साक्ष्यों को आरोप लगाने के लिए पर्याप्त माना, अदालत में वे संविधान की कसौटी पर खरे क्यों नहीं उतर पाये? ऐसे सवालों से आंख मिला कर ही देश की न्याय प्रणाली अपनी साख और मजबूत कर सकती है.

Next Article

Exit mobile version