डिजिटल इकोनॉमी का सामना
डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री मोबाइल फोन बनानेवाली कंपनी एप्पल के मुख्याधिकारी टिम कुक ने कहा है कि आनेवाले समय में वे भारत को दूसरे चीन में परिवर्तित होते देख रहे हैं. एप्पल की आइफोन की बिक्री में गत वर्ष 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. जबकि चीन में एप्पल मोबाइल फोन की बिक्री में गत […]
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
मोबाइल फोन बनानेवाली कंपनी एप्पल के मुख्याधिकारी टिम कुक ने कहा है कि आनेवाले समय में वे भारत को दूसरे चीन में परिवर्तित होते देख रहे हैं. एप्पल की आइफोन की बिक्री में गत वर्ष 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. जबकि चीन में एप्पल मोबाइल फोन की बिक्री में गत तिमाही में 30 प्रतिशत की गिरावट आयी है. कुक का मानना है कि भारत के नागरिक तेजी से डिजिटल इकोनॉमी में प्रवेश कर रहे हैं. भविष्य में बड़ी संख्या में जनता इंटरनेट का उपयोग करेगी.
18वीं सदी में स्टीम इंजन का निर्माण हुआ था. कोयले की खानों से पानी का निकालना तथा गहराई से कोयले की ट्राॅली को खींचना संभव हो गया था. कोयला निकालने की लागत कम हो गयी और कोयला सस्ता हो गया. शीघ्र ही कपड़ा मिलों ने करघों को स्टीम ईंजन से चलाना शुरू कर दिया. दस गुना कपड़ा बुना जाने लगा, तो कपड़ा सस्ता पड़ने लगा.
इस सस्ते कपड़े का भारत में आयात हुआ, जिसके चलते हमारे जुलाहे बेरोजगार होने लगे. लेकिन, दूसरे आविष्कारों ने रोजगार बनाये. बिजली से ट्यूबवेल चलाये गये और सिंचाई का विस्तार हुआ. बेरोजगार मजदूर खेती में खप गये. उनके घर में बिजली पहुंची, लेकिन वेतन न्यून बने रहे. इस तरह स्टीम इंजन के अाविष्कार ने भारत में जुलाहों को संकट में डाला, फिर उस संकट से उठा कर पूर्ववत् गरीबी के स्तर पर पुनर्स्थापित कर दिया.
डिजिटल इकाेनॉमी का भी लगभग ऐसा ही प्रभाव दिख रहा है. जिस प्रकार स्टीम इंजन ने लोगों का रोजगार छीन लिया, उसी प्रकार फोटो काॅपी मशीन ने टाइपिस्टों का और इमेल ने डाकिये का रोजगार हड़प लिया. जिस प्रकार ट्यूबवेल और ट्रैक्टर ने खेत मजदूरों के नये रोजगार बनाये थे, उसी प्रकार फोटो काॅपी, काॅल सेंटर, मोबाइल डाउनलोड आदि में नये रोजगारों का सृजन हो रहा है. लेकिन, जिस प्रकार खेत मजदूर की आय जुलाहे की आय की तरह न्यून बनी रही, उसी प्रकार मोबाइल हाथ में लिये हुए श्रमिक की आय न्यून बनी हुई है. वहीं बड़ी कंपनियों का प्राॅफिट बढ़ रहा है.
समस्या वैश्विक है. विश्व बैंक ने वर्ल्ड डेवलपमेंट रपट 2016 में कहा है कि डिजिटल इकाेनॉमी से गरीब की तुलना में अमीर को अधिक लाभ हुआ है. विकसित देशों के संगठन आॅर्गेनाइजेशन फाॅर इकाेनाॅमिक कोआॅपरेशन एंड डेवलपमेंट के अनुसार, श्रम बाजार में मध्यम स्तर के रोजगार खत्म हो रहे हैं.
श्रम की आय न्यून बनी हुई है. फैक्ट्रियों में आॅटोमेटिक मशीनों के उपयोग से श्रम की मांग में गिरावट आ रही है. ऐसी ही स्थिति अपने देश में बनी हुई है. एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2011 में देश में 9 लाख रोजगार उत्पन्न हुए थे. उसके बाद से रोजगार सृजन की गति निरंतर गिर रही है. वर्ष 2015 में मात्र 1,35,000 रोजगार उत्पन्न हुए. इस रोजगार हनन में डिजिटल इकोनाॅमी का बड़ा योगदान है. सामान्य श्रमिक की दिहाड़ी अपने स्थान पर टिकी हुई है. उसके जीवन स्तर में सुधार मुख्यतः माल के सस्ते होने से हुआ है, जैसे 800 रुपये में मोबाइल उसे उपलब्ध हो गये हैं.
लेकिन, भूखे पेट उसके लिए मोबाइल किस काम का?
कुछ विद्वान मानते हैं कि जनता को डिजिटल स्किल्स दिला दें, तो वह डिजिटल इकोनॉमी में उन्नत रोजगार पा सकेगी. बीती दो सदियों में अपने देश में शिक्षा का भारी विस्तार हुआ है. लेकिन, शिक्षित बेरोजगारों का बाहुल्य हो गया है, क्योंकि एक कर्मी द्वारा बनाया गया साॅफ्टवेयर 100 टेलीफोन आॅपरेटरों का रोजगार छीन लेता है. अतः डिजिटल स्किल से व्यक्ति विशेष को अवश्य लाभ होगा, परंतु सामान्य श्रमिक को नहीं.
एक नयी प्रकार की अर्थव्यवस्था बन रही है. मुट्ठीभर श्रमिक रोबोटों तथा कंप्यूटरों के द्वारा कारखाने संचालित करेंगे.कारखानों में चंद इंजीनियर ही कार्यरत रहेंगे, जो रोबोट की देखभाल करेंगे. ऐसी कंपनियां पूरी जनता की जरूरतों के कपड़े, जूते, किताबों एवं मोबाइल आदि का उत्पादन करेंगी. आम आदमी के रोजगार सिकुड़ेंगे. एक तरफ अमीरी का जोर है, तो दूसरी ओर बेरोजगारी और मायूसी. यह मायूसी इस समय कम दिख रही है, क्योंकि बेरोजगार भी मोबाइल पर गेम खेल कर मस्त हैं. लेकिन, इस बेरोजगारी का त्रास भी शीघ्र ही हमारे सामने आयेगा.
इस दुरूह स्थिति को स्वर्णिम स्थिति में बदला जा सकता है. उत्पादन के लिए श्रम की जरूरत कम होती जा रही है. मान्यता थी कि व्यक्ति को जीविका के लिए श्रम करना जरूरी है. लेकिन, जब अर्थव्यवस्था को श्रम की जरूरत ही नहीं है, तो श्रमिक श्रम कहां करेगा?
अतः जीविका को श्रम से अलग करना पड़ेगा. कार्ल मार्क्स ने सोचा था कि सोशलिस्ट इकाेनॉमी में श्रम की जरूरत नहीं रह जायेगी. लोग अपनी पसंद का कार्य करेंगे. ऐसे में जरूरत है कि देश के हर नागरिक को जीविका के लिए पर्याप्त आय बिना श्रम के उपलब्ध करा दी जाये. उसकी जीविका की गारंटी हो. इसके बाद उसकी इच्छा है कि वह पार्क में चिड़िया का संगीत सुनेगा या मोबाइल में गेम खेलेगा. यदि जीविका को श्रम से जोड़े रखा गया, तो श्रम के अभाव में जीविका संकट में आयेगी और विस्फोट होगा.