पारदर्शिता की पहल
सूचना का अधिकार कानून के तहत सरकारी संस्थानों के लिए सूचनाएं सार्वजनिक करना और पूछे जाने पर बताना अनिवार्य किया गया है, लेकिन निजीकरण के मौजूदा दौर में सरकारी दायरे से बाहर भी जनहित से जुड़ी सेवा-सुविधा और सामानों का एक बड़ा दायरा है. नियमन के अभाव में यह दायरा अपने बारे में सिर्फ उन्हीं […]
सूचना का अधिकार कानून के तहत सरकारी संस्थानों के लिए सूचनाएं सार्वजनिक करना और पूछे जाने पर बताना अनिवार्य किया गया है, लेकिन निजीकरण के मौजूदा दौर में सरकारी दायरे से बाहर भी जनहित से जुड़ी सेवा-सुविधा और सामानों का एक बड़ा दायरा है. नियमन के अभाव में यह दायरा अपने बारे में सिर्फ उन्हीं सूचनाओं को सार्वजनिक करना चाहता है, जिससे उनके व्यावसायिक हितों को बढ़ावा मिले. ऐसे में निजी क्षेत्र की शिक्षा-चिकित्सा या अन्य सेवा-सामान की गुणवत्ता के बारे में ग्राहक ज्यादातर अंधेरे में रहता है.
जरूरी सूचनाओं के अभाव में वह न तो प्रदान की जा रही सेवा या सामान की कीमत और गुणवत्ता के बारे में ठीक-ठीक तुलना कर पाता है और न ही खराब गुणवत्ता अथवा ऊंची कीमत के औचित्य के बारे में सवाल उठा पाता है. शिक्षा जैसी मूलभूत सेवा में जरूरी सूचनाओं के उपलब्ध न होने की इसी कमी को दूर करने की दिशा में सीबीएसइ ने कदम उठाया है. इस बोर्ड से 18,006 स्कूल संबद्ध हैं, जिनमें सर्वाधिक संख्या (13,657) निजी स्कूलों की है.
इन स्कूलों की मनमानी पर लगाम और उनके कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए सीबीएसइ ने कहा है कि स्कूलों को छात्रों से वसूली जा रही फीस और शिक्षकों को दिये जा रहे वेतन के अलावा स्कूल प्रबंधन, बुनियादी ढांचे, कर्मचारी सहित अन्य कई जानकारियां सार्वजनिक करनी होंगी. ऐसी जानकारियों के सार्वजनिक होने से ही उनके बारे में कोई सवाल उठाना संभव हो सकेगा. देश के ज्यादातर इलाकों में सरकारी स्कूलों की बदहाली के बीच निजी स्कूलों में दाखिले का चलन बढ़ा है, जिसमें सीबीएसइ से संबद्ध स्कूलों का अलग क्रेज है. यह स्थिति शिक्षा को मोटे मुनाफे के धंधे में तब्दील करने में सहायक सिद्ध हुई है.
निजी स्कूल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के नाम पर हर साल फीस बढ़ाते हैं. बड़े शहरों में तो नामांकन के नाम पर डोनेशन के रूप में लाखों रुपये लेना आम बात है. इसकी कोई रसीद भी नहीं दी जाती. नामांकन के बाद पोशाक, किताब, पिकनिक से लेकर स्कूल के बुनियादी ढांचे के विकास-विस्तार तक बहुत सारे मदों में फीस वसूली जाती है.
ऐसे में मध्यवर्गीय परिवारों को बच्चों की पढ़ाई के लिए परिवार के अन्य जरूरी खर्चों में कटौती करनी पड़ती है. अभिभावक निजी स्कूलों की इस मनमानी के खिलाफ एकजुट होते हैं, मामला कोर्ट में जाता है, लेकिन कुछ समय बाद नतीजा सिफर. उम्मीद की जानी चाहिए कि सीबीएसइ का नया निर्देश स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने में कारगर होगा.