वित्तीय सेवाओं का उपयोग

िबभाष कृषि एवं आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने गत तीन अक्तूबर को सातवां वार्षिक फाइनेंशियल एक्सेस सर्वे–2016 (एफएएस–2016) जारी किया. यह सर्वे विभिन्न देशों में वित्तीय सेवाओं की उपलब्धता तथा उनके उपयोग संबंधी आंकड़े जारी करता है. यह सर्वेक्षण समय-समय पर जी-20 देशों द्वारा तय किये गये वित्तीय समावेशन सूचकों (फाइनेंशियल इन्क्लूजन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 2, 2016 6:43 AM
िबभाष
कृषि एवं आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने गत तीन अक्तूबर को सातवां वार्षिक फाइनेंशियल एक्सेस सर्वे–2016 (एफएएस–2016) जारी किया. यह सर्वे विभिन्न देशों में वित्तीय सेवाओं की उपलब्धता तथा उनके उपयोग संबंधी आंकड़े जारी करता है. यह सर्वेक्षण समय-समय पर जी-20 देशों द्वारा तय किये गये वित्तीय समावेशन सूचकों (फाइनेंशियल इन्क्लूजन इंडिकेटर्स) के आधार पर किया जाता है. पिछली बार लॉस काबोस में 2012 के शिखर सम्मेलन में इन सूचकों को तय किया गया था. वित्तीय समावेशन को इसके तीन आयामों, वित्तीय सेवाओं की उपलब्धता, उनका उपयोग और वित्तीय प्रोडक्ट एवं सेवाओं के वितरण की गुणवत्ता, के संदर्भ में मापा जाता है.
वित्तीय समावेशन सूचकों को चौबीस वर्गों में रखा गया है, जिनमें मुख्य हैं बालिग जनसंख्या को डिपॉजिट, ऋण और बीमा उत्पादों का उनके सामर्थ्य के दर पर उपलब्धता और उनके द्वारा प्रयोग, बिना नकद लेनदेन, मोबाइल लेनदेन, धन संप्रेषण, एटीएम एवं अन्य सेवा बिंदुओं का प्रसार और उनकी इंटरऑपरेबिलिटी, वित्तीय शिक्षा, सेवाओं के उपयोग में आनेवाली अड़चनें आदि.सब-प्राइम संकट के बाद से दुनिया भर के देशों में वित्तीय समावेशन पर विशेष जोर दिया जाने लगा है, जिससे आम जन की अर्थव्यवस्था में भागीदारी बढ़ा कर इसके आधार को विस्तृत और मजबूत बनाया जा सके.
वर्ष 2015 के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा संकलित एफएएस-2016 आंकड़ों पर नजर डालें, तो पायेंगे कि अलग-अलग देशों में प्रगति अलग-अलग है. भारत में एक लाख जनसंख्या पर बैंक शाखाओं की संख्या जहां 32.88 थी, वहीं ब्रिक्स समूह के अन्य देशों, चीन में 8.45, रूस में 32.88, ब्राजील में 20.67 और दक्षिण अफ्रीका में 10.50 थी. अगर भारत के आसपास के देशों पर नजर डालें, तो पायेंगे कि पाकिस्तान में यह आंकड़ा 10.04, नेपाल में 8.86, बांग्लादेश में 8.37 तथा अफगानिस्तान में 2.25 है. इसी प्रकार एक लाख की जनसंख्या पर भारत में उपलब्ध एटीएम की संख्या 19.71, चीन में 76.37, ब्राजील में 114, दक्षिण अफ्रीका में 69.28 और रूस में 172.97 है.
पाकिस्तान में एक लाख जनसंख्या पर जहां 8.79 एटीएम उपलब्ध हैं, वहीं नेपाल में 8.96, बांग्लादेश में 6.79 तो अफगानिस्तान में मात्र 0.96 एटीएम हैं. यद्यपि वित्तीय सेवाओं की उपलब्धता और विस्तार के कई अन्य पहलू हैं, लेकिन यही दो आंकड़े काफी हैं यह बताने के लिए कि वित्तीय सेवा प्रदान करनेवाले बिंदुओं में भारत और उसके आसपास के देशों में काफी कुछ किया जाना बाकी है.
वित्तीय सेवा बिंदुओं के इस्तेमाल में भी काफी असमानताएं हैं विभिन्न देशों के बीच. जीडीपी के प्रतिशत के आधार पर व्यावसायिक बैंकों में जमा राशि में ही बड़ी असमानताएं हैं. भारत में यह सूचक 65.76 है, तो रूस में 46.21, ब्राजील में 32.97 और दक्षिण अफ्रीका में 43.40 प्रतिशत है.
पाकिस्तान में यह सूचक 30.17, बांग्लादेश में 52.57, नेपाल में 68.85 प्रतिशत है, तो अफगानिस्तान में मात्र 20.10 प्रतिशत है. अगर ॠण की राशि को देखें, भारत में व्यावसायिक बैंकों से दिये गये आउटस्टैंडिंग ऋण जीडीपी का 50.70 प्रतिशत था, जबकि रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के मामले में यह क्रमश: 40.85, 42.5 और 67.55 था. चीन में यही आंकड़ा 99.66 रिपोर्ट किया गया. पाकिस्तान में बैंकों में आउटस्टैंडिंग ऋण जीडीपी के प्रतिशत के रूप में 15.99, बांग्लादेश में 40.85, नेपाल में 51.92 है, तो वहीं अफगानिस्तान में यह मात्र 3.85 है.
इन आंकड़ों और ऊपर के पैराग्राफ में वित्तीय सेवा बिंदुओं को अगर मिला कर देखें, तो साफ नजर आता है कि भारत तथा अन्य पड़ोसी देशों में वित्तीय सेवाओं के विस्तार और लोगों द्वारा उनके उपयोग का स्तर संतोषजनक नहीं है. और खासकर भारत में ही प्रगति बहुत ही धीमी है. भारत में प्रति एक हजार बालिग जनसंख्या पर ऋण खातों की संख्या मात्र 154.49 थी, जबकि ब्राजील में यह संख्या 2255.27 थी. इससे स्पष्ट होता है कि अधिकतर लोगों को बैंकों से अपने व्यवसाय और अन्य जरूरतों के लिए ऋण लेने में मुश्किलें पेश आती हैं.
डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर भी बैंक शाखाओं की तरह इस्तेमाल करनेवालों को विविध सेवा बिंदु और तरीका मुहैया कराता है.डिजिटल वित्तीय सेवाओं का वित्तीय समावेशन के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए इस वर्ष चीन में हुए जी-20 के शिखर सम्मेलन में 2012 से लागू वित्तीय समावेशन सूचकों में कुछ परिवर्तन किये गये हैं. डिजिटल वित्तीय सेवाओं को मजबूत बनाने के उद्देश्य से नकद-विहीन लेनदेन, डिजिटल भुगतान प्रणाली के विस्तार; मोबाइल, इंटरनेट, एवं बैंक कार्ड के इस्तेमाल से लेनदेन तथा डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर जैसे उपायों पर विशेष बल दिया गया है. एफएएस 2016 के आंकड़ों के अनुसार ही भारत में प्रति एक हजार बालिग जनसंख्या पर मोबाइल से लेनदेन की संख्या मात्र 192.71 है, जबकि पाकिस्तान में यह संख्या 3050.44 तथा बांग्लादेश में 10182.48 है. यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि भारत में यद्यपि मोबाइल टेलीफोनी और मोबाइल इंटरनेट में अभूतपूर्व प्रगति हुई है, किंतु वित्तीय सेवा प्रदान करने में इसका उपयोग होना बाकी है.
बैंकों ने भारी संख्या में माइक्रो एटीएम से लैस बिजनेस करेस्पॉन्डेंट्स तैनात किये हैं, लेकिन ज्यादातर माइक्रो एटीएम इंटरऑपरेटेबल नहीं हैं. इसका असर यह हुआ है कि जहां बांग्लादेश में जीडीपी का 10.34 प्रतिशत और पाकिस्तान में 6.84 प्रतिशत मोबाइल के माध्यम से लेनदेन होता है, वहीं भारत में यह मात्र 0.98 प्रतिशत है. अफगान इस मामले में भी बहुत नीचे है, जहां जीडीपी का मात्र 0.05 प्रतिशत लेनदेन मोबाइल से होता है और प्रति एक हजार बालिग जनसंख्या पर मात्र 56.09 लेनदेन मोबाइल के माध्यम से होता है.
वित्तीय सेवाओं की उपलब्धता और उपयोग बढ़ाने के लिए वित्तीय सेवा प्रदाताओं की कार्य प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन, सस्ता और समावेशी इंटरनेट उपलब्ध कराना तथा वित्तीय लेनदेन में इंटरनेट के उपयोग को बढ़ाना किसी भी देश की प्राथमिकता होनी चाहिए.

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