सांस में समाता जहर

दीवाली के दिन से ही दिल्ली का दम घुट रहा है. फिर भी यदि आप सोच रहे हैं कि दिल्ली आपसे बहुत दूर है, तो आप गलत हैं. धूल और धुएं के गुबार से बना जानलेवा धुंध अब आसपास के जिलों ही नहीं, पाकिस्तान के कुछ इलाकों तक भी फैल चुका है. घने धुंध में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 8, 2016 6:16 AM
दीवाली के दिन से ही दिल्ली का दम घुट रहा है. फिर भी यदि आप सोच रहे हैं कि दिल्ली आपसे बहुत दूर है, तो आप गलत हैं. धूल और धुएं के गुबार से बना जानलेवा धुंध अब आसपास के जिलों ही नहीं, पाकिस्तान के कुछ इलाकों तक भी फैल चुका है. घने धुंध में जो लोग बाहर निकल रहे हैं, उनकी आंखों में जलन और गले में दर्द की शिकायतें आम हैं.
अस्पतालों में पहुंच रहे दमा मरीजों की संख्या दोगुनी हो गयी है. बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर दिल्ली ही नहीं, एनसीआर के ज्यादातर शहरों में भी स्कूल तीन दिन के लिए बंद कर दिये गये हैं. निर्माण कार्यों और डीजल वाले जेनरेटर के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गयी है.
धुंध में घुटते लोगों को राहत दिलाने की गुहार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी है, जिस पर मंगलवार को सुनवाई होनी है. अपनी याचिका में सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायर्नमेंट (सीएसइ) की सुनीता नारायण ने कहा है कि सरकारें सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल के आदेशों पर कारगर तरीके से अमल में विफल रही हैं. सीएसइ ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया था कि दिल्ली में वायु प्रदूषण से हर साल 10 से 30 हजार लोग मारे जा रहे हैं.
सरकारों ने पिछले कुछ दशकों में वाहनों में सीएनजी लगाने और सरकारी बसें बढ़ाने जैसे कुछ कदम जरूर उठाये, पर वे नाकाफी साबित हुए हैं.
उल्लेखनीय है कि गंभीर वायु प्रदूषण से लंदन का कई बार सामना हो चुका है. दिसंबर, 1952 में वहां हालात इतने खराब हो गये थे कि कई हजार लोगों की जान चली गयी. इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने पर्यावरण की शुद्धता के लिए कई कड़े कदम उठाये और 1956 में क्लीन एयर एक्ट पारित किया. चीन में भी बीजिंग जैसे शहर प्रदूषण की गंभीर समस्या से जूझते रहे हैं, लेकिन पिछले वर्षों में सरकार ने कई ठोस कदम उठाये, जिनमें गाड़ियों की संख्या कम करना, कोयले के इस्तेमाल पर रोक की ओर बढ़ाना, कड़े पर्यावरण कानून लागू करना और हवा की गुणवत्ता की नियमित जांच शामिल हैं.
दूसरी ओर, दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि इसका असर न तो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक सीमित रहेगा और न ही निदान कुछ तात्कालिक कदमों से मुमकिन होगा. दिल्ली के लिए जहां यह दूरगामी सोच के साथ कड़े कदमों और पर्यावरण कानूनों पर अमल का वक्त है, वहीं दूर बसे शहरों के लिए समय रहते जागने का.

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