घाटी में अमन की कोशिश

बच्चे, बुजुर्ग और महिलाओं की हिफाजत और खुशहाली ही किसी व्यवस्था की सफलता-असफलता का पैमाना है. यह भी सच है कि अमन-चैन पर कहीं आंच आये, तो सबसे ज्यादा असर इन्हीं वर्गों पर होता है. अलगाववादी रुझान के आंदोलनों से जब-तब सुलगनेवाले कश्मीर में भी यही हो रहा है. जुलाई से घाटी में जारी अशांति […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 8, 2016 6:17 AM
बच्चे, बुजुर्ग और महिलाओं की हिफाजत और खुशहाली ही किसी व्यवस्था की सफलता-असफलता का पैमाना है. यह भी सच है कि अमन-चैन पर कहीं आंच आये, तो सबसे ज्यादा असर इन्हीं वर्गों पर होता है. अलगाववादी रुझान के आंदोलनों से जब-तब सुलगनेवाले कश्मीर में भी यही हो रहा है.
जुलाई से घाटी में जारी अशांति से जान-माल का भारी नुकसान हुआ है. उसी वक्त से घाटी में स्कूल भी बंद हैं. तकरीबन तीस स्कूलों को जला कर खाक भी किया गया है. लोगों में दोतरफा डर व्याप्त है. एक तो स्कूलों के बंद होने से वे अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं, साथ ही अभिभावकों को बच्चों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता है.
घाटी के लोगों की इस चिंता को समझते हुए सेना ने वहां एक सराहनीय पहल करते हुए अब वहां ‘स्कूल चलो’ अभियान शुरू किया है. इस अभियान के तहत हर इलाके में शिक्षकों की पहचान करके उन्हें पास के स्कूल अथवा सामुदायिक केंद्र में कक्षाओं को बहाल करने के लिए कहा जा रहा है. इस प्रक्रिया में अभिभावकों का भरोसा हासिल करने की कोशिश की जा रही है. घाटी में जारी उपद्रव के बीच पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत बहुत से प्रदर्शनकारी किशोरों को गिरफ्तार किया गया है. इन्हें तत्काल रिहा करना भी शासन के प्रति लोगों की विश्वास बहाली के लिहाज से एक जरूरी कदम है.
बीते माह पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के नेतृत्व में घाटी की स्थिति की जायजा लेने के लिए गये एक स्वतंत्र समूह ने इसी नजरिये से सरकार से निवेदन किया है कि बच्चों की गिरफ्तारी अवैधानिक है और उनके साथ जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के प्रावधानों के तहत बरताव किया जाना चाहिए, न कि किसी बालिग अपराधी के समान. उड़ी के सैन्य शिविर पर हुए पाकिस्तान प्रेरित आतंकी हमले के बाद के घटनाक्रम में कश्मीर घाटी में जारी अशांति की तेजी और विस्तार में कमी की बात कही जा रही है, लेकिन खुद सेना का मानना है कि वहां हालात अब भी गंभीर हैं.
जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक के राजेंद्र ने कहा है कि घाटी में कम-से-कम 300 उग्रवादी सक्रिय हैं और ये उग्रवादी कभी भी कश्मीर के अलगाववादी रुझान को हवा दे सकते हैं. कश्मीर में रोजमर्रा की जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए उग्रवादियों पर अंकुश रखते हुए लोगों के भरोसे की बहाली के काम करना सबसे ज्यादा जरूरी हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि गिरफ्तार बच्चों की रिहाई और स्कूलों को खोलने के प्रयास से घाटी में अमन-चैन बहाल करने में मदद मिलेगी.

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