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वीजा पर तकरार

ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे की भारत यात्रा से दोनों देशों के लिए खास नतीजों की गुंजाइश नहीं दिखती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साझे भविष्य में शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए भारतीय छात्रों के लिए पढ़ने और शोध करने के अधिक अवसर उपलब्ध कराने की आवश्यकता पर बल दिया है, लेकिन थेरेसा मे […]

ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे की भारत यात्रा से दोनों देशों के लिए खास नतीजों की गुंजाइश नहीं दिखती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साझे भविष्य में शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए भारतीय छात्रों के लिए पढ़ने और शोध करने के अधिक अवसर उपलब्ध कराने की आवश्यकता पर बल दिया है, लेकिन थेरेसा मे ने वीजा नीति में किसी सुधार का भरोसा नहीं दिया है.
भारत आते समय उन्होंने कहा था कि यह नीति समुचित रूप से कारगर है और अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और चीन के लोगों को निर्गत वीजा से अधिक संख्या में वीजा भारतीयों को दिये गये हैं. जब मे कैमरुन सरकार में गृह विभाग का काम संभाल रही थीं, तभी उन्होंने नियम बनाया था कि छात्रों को पढ़ाई पूरी कर अपने देश लौट जाना होगा.
इसके बाद से ब्रिटिश विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों का नामांकन 50 फीसदी गिर गया है. वर्ष 2010 में जहां 68,238 भारतीय छात्रों को वीजा मिला था, वहीं इस साल महज 11,864 वीजा दिये गये हैं. ब्रिटेन में दूसरा सबसे बड़ा रोजगार सृजित करनेवाला तथा तीसरा सबसे बड़ा विदेशी निवेश करनेवाला देश होने के नाते भारत को मे सरकार की नीतियों से नाराज होना स्वाभाविक है. यूरोपीय संघ से अलग होने की प्रक्रिया शुरू होने के साथ ब्रिटेन को भारत के सहयोग की आवश्यकता भी है.
मे के इस दौरे का बड़ा उद्देश्य व्यापारिक संबंधों को मजबूत करना है और इस संबंध में कुछ सकारात्मक पहलें भी हुई हैं. उन्होंने भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए 500 मिलियन पौंड का कोष बनाने के साथ वाणिज्यिक वीजा को आसान बनाने और मुक्त व्यापार समझौता कराने का वादा किया है. इस दौरे में करीब 83 हजार करोड़ रुपये के व्यापारिक करार भी हो रहे हैं. उनके प्रस्तावों का भारत ने स्वागत किया है और अपनी चिंताएं भी स्पष्ट कर दी हैं.
अब निर्णय लेने की जिम्मेवारी प्रधानमंत्री थेरेसा मे पर है. अब सवाल यह उठता है कि कठोर आप्रवासन नीतियों और आप्रवासियों की संख्या घटाने की पक्षधर रहीं प्रधानमंत्री मे के रवैये में क्या कोई बदलाव आयेगा? ब्रिटेन की घरेलू राजनीति को देखते हुए इसकी उम्मीद फिलहाल नजर नहीं आ रही है, लेकिन यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के बाद की समस्याओं से निपटने के लिए नीतियों को नरम बनाने का दबाव भी उनके ऊपर होगा. पर, इतना जरूर है कि इस विवादित मसले पर शीर्ष स्तर पर दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ है.

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