हम भी दो हजारी हो गये!

वीर विनोद छाबड़ा व्यंग्यकार वाह मोदीजी वाह! पहली बार आपने दिल खुश किया. देश हित में विलंब से लिया गया एक अच्छा फैसला. बैंकों के बाहर पिछले पांच दिन से लगी लंबी लाइनें देख कर हम बहुत प्रसन्न हैं. शायद हम जान ही नहीं सकते थे कि देश में कितने कालाधन रखनेवाले हैं. निर्धन और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 14, 2016 6:33 AM

वीर विनोद छाबड़ा

व्यंग्यकार

वाह मोदीजी वाह! पहली बार आपने दिल खुश किया. देश हित में विलंब से लिया गया एक अच्छा फैसला. बैंकों के बाहर पिछले पांच दिन से लगी लंबी लाइनें देख कर हम बहुत प्रसन्न हैं. शायद हम जान ही नहीं सकते थे कि देश में कितने कालाधन रखनेवाले हैं. निर्धन और निम्न आय वाले और रोज कुआं खोदो और खाओ वालों की संख्या ज्यादा है.

असली तो जाने कहां मौज उड़ाते घूम रहे हैं. उम्मीद है कि वे भी कभी-न-कभी गिरफ्त में आयेंगे ही. बकरे की अम्मा बहुत दिन तक खैर नहीं मना सकती.

मेमसाब ने कई परतों में पैसा छुपा रखा था. हमने कई बार समझाया. चोर भाई लोग तो कई बार घूम कर चले गये. आज वे सब मोदीजी के समक्ष शर्मिंदा हैं. आज पोल खुल गयी. निकल आया ब्लैक मनी. कल हम लंबी लाइन में लगे थे, तो उनमें गृहणियों की संख्या ज्यादा थी. एक साहब मोदीजी के इस नेक कदम की प्रशंसा कर रहे थे. गृहणियों ने उन्हें पकड़ कर पीट दिया. मुद्दत बाद देख रहे हैं कि बीच बाजार सरकार और मोदीजी की जितनी प्रशंसा हो रही है, उससे ज्यादा बुराई हो रही है.

एक साहब कल निराश से मिले. हम भी दो हजारी हो गये. एकबारगी लगा जैसे किसी ने चूरन वाला नकली नोट पकड़ा दिया है. पिछवाड़े नंबर भी गायब है. तर्क क्या है, मालूम नहीं.

आंखें अभ्यस्त नहीं हुई हैं. पूरी मार्केट घूम आये, लेकिन कोई मिला नहीं तोड़नेवाला. हलवाई एक किलो खुरमा पर भी कमबख्त राजी नहीं हुआ. कहने लगा, देख रहे हैं बाजार सन्नाटे में है. बेकरी से पांच सौ का सामान लिया. उसने खाली गल्ला दिखा दिया. उसने सुझाव दिया. कार ले जाकर पेट्रोल पंप से टैंक फुल्ल करा लें. बस इसी काम आयेगा. हमने उसे दो हजार गाली दी. अबे खायेंगे क्या? पेट्रोल! उसने तरस कर हमें एक डबल रोटी उधार पकड़ा दी. हमें लगा भिखारी हो गये हम!

कई आलतू-फालतू सवाल जहन में उठ रहा है कि हम जैसे शरीफ गरीब के लिए यह नोट नहीं छापा गया है. बड़े अमीरों के लिए है. छोटे से ब्रीफकेस में पहले से दोगुनी रकम एक बार में कैरी कर लो. बड़े लोग बड़ी बातें. फिलहाल तो स्टेटस सिंबल है हमारे लिए.

आगे से बोरा ले जायेंगे और बैंक वाले से कह देंगे कि पांच-दस के सिक्कों की रेजगारी दे दो. घंटा-दो घंटा बरबाद कर देंगे गिनने में, लेकिन दो हजार वाला नोट मंजूर नहीं. नहीं टूटने के कारण हम तो पूर्व में एक हजार वाले से भी भिनकते थे. फिर डर यह कि कहीं नकली न हो! कहीं दो हजार वाला नकली निकला, तो डबल चूना. ना बाबा ना. एक बार हम हजार नोट के चक्कर में फंस चुके हैं. पूरे पांच नोट थे. बाजार पहुंचे तब पता चला. बड़ी मुश्किल से बैंक वाला माना. वह भी तब, जब हमने शोर मचाया कि इस बैंक में नकली नोट मिलते हैं.

मैनेजर ने बैंक की इज्जत दावं पर लगी देख नोट बदल दिया.

लीजिये अब प्लास्टिक के नोट की बात हो रही है. भक्त लोग बता रहे हैं कि कई विकसित देशों में प्लास्टिक के पतले नोट चलते हैं. इनसे बहुत फायदा है. क्लोनिंग नहीं हो पाती है. पुड़िया बना कर जेब में नहीं रखा जा सकता. फुरहैरी बना कर कान से मैल भी नहीं निकाली जा सकती. भीग जाये तो भी गम नहीं. हमें भी यह आइडिया अच्छा लगा.

लेकिन कुछ दिक्कतें हैं.

हम तो आम तौर पर पर्स में मोड़ कर रुपये रखते हैं. प्लास्टिक नोट को पतलून में रखने की बजाय शर्ट की जेब में रखना होगा. दरजी से नोट के साइज की जेबें शर्ट के बाहर और शर्ट के भीतर भी लगवानी पड़ेंगी. पुराने जमाने के लालाजी बनियान के भीतर चोर जेब बनवाते थे. जेबकतरों से बचे रहते थे और मंगतों से भी.

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