Loading election data...

भरोसे के सहारे बढ़ता देश

जेब खाली, पेट भी खाली. घर में आटा-तेल सब खत्म. दिनभर लाइन में लगने की हिम्मत नहीं हो रही थी. ‘रहिमन’ वे नर मर चुके, जे कहुं मांगन जाहिं- बचपन से ही इस लकीर का फकीर मन उधार मांगने को भी तैयार न था. लेकिन ‘नोट की चोट’ का दर्द अब सहा भी नहीं जा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 16, 2016 12:36 AM

जेब खाली, पेट भी खाली. घर में आटा-तेल सब खत्म. दिनभर लाइन में लगने की हिम्मत नहीं हो रही थी. ‘रहिमन’ वे नर मर चुके, जे कहुं मांगन जाहिं- बचपन से ही इस लकीर का फकीर मन उधार मांगने को भी तैयार न था. लेकिन ‘नोट की चोट’ का दर्द अब सहा भी नहीं जा रहा था. पत्नी का प्रेशर अलग. एक निश्चय किया, आधी रात को निकलूंगा- एक ऐसे एटीएम की खोज में, जो कैशलेस न हो. अलार्म को रात दो बजे की ड्यूटी पर तैनात कर दिया. लेकिन, खाली पेट नींद कहां! यह भाषणों में ही अच्छा लगता है कि ‘गरीब चैन की नींद सो रहे हैं.’

खैर, रात ढाई बजे मैं पांडव नगर (दिल्ली) की मुख्य सड़क पर था. चंद कदम दूर पहले एटीएम का ही स्क्रीन ऑन देख ‘मिशन सक्सेसफुल’ का भरोसा जाग गया. लेकिन, कार्ड डालने पर निकली ‘अनेबल टू डिस्पेंस’ की पर्ची ने अरमानों पर पानी फेर दिया.

बाहर निकलते ही उसने उत्सुकता से पूछा- ‘भाई साहब, निकला?’ सामने था तीस-बत्तीस साल का नौजवान. कैजुअल ड्रेस, बायें हाथ में एटीएम कार्ड और दायें में जलती सिगरेट. आधी रात में ‘कैश युक्त एटीएम की खोज’ मिशन के लिए हमें एक साथी मिल गया. एक से भले दो. मैंने उससे कहा- चलो, शायद आगे निकले.

पैदल सफर की चुप्पी तोड़ने की पहल मैंने ही की- ‘सरकार को ऐसे किसी कदम से पहले कुछ तो तैयारी करनी चाहिए थी’. उसने जोर की कश लगायी और चालू हो गया- देखो जी, काम तो बड़ा जोरदार किया है मोदी ने. पहले तैयारी करते, तो कालाधन वाले सतर्क हो जाते. देश में कालाधन इतना है, कालाधन उतना है, यह सब तो हम वर्षों से सुन रहे हैं. क्या किसी सरकार ने हाथ डालने की हिम्मत दिखायी? अब देश के इतने बड़े रोग का ऑपरेशन हो रहा है, तो देशवासियों को कुछ दिन दर्द तो सहना ही पड़ेगा.है कि नहीं?

मैंने कहा- लेकिन, बिना खाये कितने दिन तक रहेंगे भाई? आधी रात में अपनी नींद खराब करके सड़क पर भटकना पड़ रहा है.

उसने हैरानी के साथ पूछा- आप आधी रात तक सो चुके हैं? मैं तो दो बजने के इंतजार में फिल्म देख रहा था. अब यही तो फर्क है सोचने का. आप दर्द महसूस कर रहे हैं, मैं इंज्वाय कर रहा हूं. दिन में ऑफिस से छुट्टी ली. मॉल जाकर राशन ले आया. पड़ोस की दुकान में भले न हो, मॉल में तो एटीएम से पेमेंट हो ही रहा है न. मुझे तो पूरा भरोसा है कि कालाधन और फर्जी नोट का इलाज हो जाये, तो भारत दुनिया का सबसे विकसित देश बन सकता है. अब कुछ दिनों की तकलीफ में वर्षों का सुकून मिले तो क्या बुरा है?

बातों-बातों में हम दोनों तीन किलोमीटर के दायरे में स्थित 16 ‘कैशलेस’ एटीएम चेक कर चुके थे. अब न तो यह निर्रथक खोज जारी रखने की इच्छा बची थी और न ही कोई नकारात्मक बात करके उसके गहरे भरोसे को तोड़ना चाहता था. देश के लिए दर्द सहने के उसके जज्बे की तारीफ कर मैंने विदा ली. घर लौट कर ऑफिस के दोस्तों को मैसेज किया- यदि किसी के पास हो, तो कल सौ के कुछ नोट उधार देना.

कभी किसी से उधार न मांगने का मेरा संकल्प दम तोड़ चुका है. लेकिन, मन दुआ कर रहा है- सबसे विकसित देश बनने का युवाओं का भरोसा कभी न टूटे. हमारी नयी पीढ़ी का यह भरोसा एक-न-एक दिन हमारे देश की बुनियादी समस्याओं का हल तलाश लेगा, यह उम्मीद मुझमें अभी बाकी है.

रंजन राजन

प्रभात खबर से जुड़े हैं

ranjan.rajan@prabhatkhabar.in

Next Article

Exit mobile version