प्रधानमंत्री के नाम एक पत्र

संदीप मानुधने विचारक, उद्यमी एवं शिक्षाविद् आदरणीय मोदी जी, प्रणाम! देश अनेकों चुनौतियों से जूझ रहा है, और सभी सच्चे भारतीय इन चुनौतियों को अवसरों में परिवर्तित करने हेतु लालायित हैं. आधुनिक राष्ट्र-निर्माण के इस जटिल विषय के सभी पहलुओं को समझने के लिए मैं प्रयासरत हूं. आपका ध्यान सात मुद्दों पर आकर्षित करने का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 17, 2016 6:34 AM
संदीप मानुधने
विचारक, उद्यमी एवं शिक्षाविद्
आदरणीय मोदी जी, प्रणाम!
देश अनेकों चुनौतियों से जूझ रहा है, और सभी सच्चे भारतीय इन चुनौतियों को अवसरों में परिवर्तित करने हेतु लालायित हैं. आधुनिक राष्ट्र-निर्माण के इस जटिल विषय के सभी पहलुओं को समझने के लिए मैं प्रयासरत हूं. आपका ध्यान सात मुद्दों पर आकर्षित करने का मेरा प्रयास है. आज तमाम तकलीफों के बाद भी, करोड़ों भारतीय इस बात से संतुष्ट हैं कि बड़ी कार्रवाई होती दिखी है.
पहला- आपके द्वारा आठ नवंबर को घोषणा के बाद एक ईमानदार उद्यमी, जो इतने वर्षों तक केवल मन मसोस कर रो सकता था, उसे राहत महसूस होने लगी है. पहले, उसे व्हाइट (वैध) में कमा कर, टैक्स भरने के बावजूद, ब्लैक में सरकारी अधिकारियों को अपना वैध हक पाने हेतु विवश होना पड़ता था. न दें, तो एक कदम काम आगे बढ़ाना मुश्किल, यानी महीनों तक परेशानी. अब डर के मारे, इस प्रवृत्ति में सकारात्मक कमी आ सकेगी ऐसा लगता है. हां, शायद सरकारी नौकरियों की तलाश करते परीक्षार्थियों की संख्या भी अब कुछ कम होने लगे, क्योंकि एक बड़ा आकर्षण अब गायब होता दिख रहा है!
दूसरा- विमुद्रीकरण को अपने अंजाम तक ले जाने हेतु जो आवश्यक है, वह आपने घोषित कर ही दिया है- बेनामी संपत्ति (चल/अचल/मूर्त/अमूर्त सब कुछ) पर आप हमला बोलेंगे. बहुत बढ़िया, चूंकि गैर-नकदी वाले कालेधन को ठिकाने लगाने के ये ही स्रोत सबसे ताकतवर होते हैं. जो अनगिनत संपत्तियां अब सरकार पकड़ेगी, उनका प्रत्यक्ष रूप से जन-उपयोग करने की योजना आवश्यक है, ताकि भारत की आबादी अपने असली हक को भोग सके.
अवैध बेनामी आलीशान इमारतों या कोठियों को यदि विद्यालयों, अस्पतालों और उद्यमिता स्टार्टअप्स हेतु इन्क्यूबेशन सेंटर्स में तब्दील किया जा सका, तो तुरंत अंतर महसूस होगा. यह आसान नहीं है. बेनामी संपत्ति बनाना यदि आपने बेहद मुश्किल कर दिया, तो ही आनेवाले वर्षों में आज के आमजन की भागीदारी सार्थक बन सकेगी.
तीसरा- यदि ईमानदार भारतीय व्यापारियों और नागरिकों को बिना नकदी काम करने की आदत नहीं है, तो उसके लिए वे पूर्णतः जिम्मेवार नहीं हैं. जो तकनीकी व्यवस्था और विश्वास, और साथ ही जागरूकता और प्रचार-प्रसार होना चाहिए, उसका नितांत अभाव रहा है.
कई क्षेत्र केवल नकदी पर ही चलते हैं. अब अचानक से सब रुक चुका है. अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से, जो खुशी से मेनस्ट्रीम होना चाहेंगे और कर देना चाहेंगे, उन्हें पूरी मदद करनी चाहिए. राजस्व से संबंधित सारे सरकारी विभागों और अधिकारियों को इस जानकारी और ऑपरेशंस की ट्रेनिंग हेतु मैदान में लाइये. जनता का साथ नोटबंदी के इस कदम के साथ रहेगा, लेकिन उनका दैनंदिन जीवन सुचारु होना जरूरी है.
चौथा- मोदी जी, यदि सही राह दिखाई जाये, तो भारत का आम आदमी चलने को तैयार है.
पूरी तरह से लाचार, शक्तिहीन (केवल चुनावी मौसम छोड़ कर) और कम प्रति-व्यक्ति आय वाले हमारे असंख्य लोग तरक्की चाहते हैं, किंतु हर व्यवस्था में लगे घुन के कारण सैकड़ों कार्यक्रमों की जानकारी और सब्सिडी न तो सही मात्रा में और न ही सही समय पर मिल पाती है. इससे विश्वास डगमगाता है और अच्छे लोग भी व्यवस्था से दूर भागते हैं. आपने अनेकों पारदर्शी पोर्टल बनवा कर एक नयी शुरुआत की है (जैसे गर्व, आदि), तो क्यों न सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ एक निर्णायक जंग हेतु एक ऐसा पारदर्शी पोर्टल बने, जिस पर हर नागरिक शोषण की आहट मिलने पर अपने मोबाइल से जानकारी अपलोड करे, जिस पर कार्रवाई हो?
पांचवा- सारे बड़े भ्रष्टाचार की जड़ और तमाम माफिया के बनने की शुरुआत जिस पावन भूमि से होती है, उसके शुद्धिकरण का समय आ गया है. चुनावी फंडिंग को पूरी तरह से केवल व्हाइट से लेने या/और सरकारी फंडिंग की बाध्यता लाकर आप एक बड़ी चोट इस पाप पर कर सकते हैं.
इस हेतु, एक साथ चुनाव होने अत्यंत आवश्यक हैं, ताकि एजेंसियां पूरा ध्यान और ऊर्जा एक कड़े लक्ष्य के साथ केंद्रित कर सकें. इस पर कानून लाने का यह सही समय है. एक ही समय सभी चुनाव होने से पूरी व्यवस्था बदल सकेगी और कम-से-कम साढ़े चार वर्ष देश असली चुनौतियों पर ध्यान लगा सकेगा. सच्चे अर्थों में अच्छे लोग राजनीति से जुड़ने लगेंगे.
छठवां- जब राष्ट्र-निर्माण का यह यज्ञ प्रारंभ हो ही चुका है, तो एक सुझाव और है. हो सकता है कि बेईमानों में से भी कुछ को ईमान की आहट सुनायी दे गयी हो, ऐसे लोगों के लिए क्यों न एक ऐसा अकाउंट खोल दिया जाये, जिसमें वे अपना कालाधन (पूरा 100 प्रतिशत) जमा कर सकें, बजाय जलाने या नदियों में बहा देने के?
सातवां- ईमानदारों को एक मार और पड़ती रही है- अत्यधिक करों की मार, किंतु बदले में बहुत कम प्रतिसाद. हर स्तर पर लिया जानेवाला प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर दोनों मिला दें (जिसे जीएसटी से युक्तिसंगत बनाया जा रहा है), तो ईमानदार की झोली खाली हो जाती है.
वह भी ठीक होता, यदि सार्वजनिक सेवाएं और वस्तुएं अच्छी गुणवत्ता की मिल पातीं, जो बिलकुल नहीं होता है. यह तो साफ है कि इस महायज्ञ की अंतिम विजय तभी होगी, जब व्हाइट इकोनॉमी में आनेवाले करोड़ों नये लोग अपने करों के बदले मिलनेवाली सुविधाओं और सेवाओं से संतुष्ट हो पायें, अन्यथा असंतोष बड़ा होगा. अर्थात्, सभी सरकारी तंत्रों को- पुलिस, प्रशासन, पीडीएस, सरकारी अस्पताल, सरकारी स्कूल, न्याय व्यवस्था- आदि को अपनी कार्य-प्रणाली और गुणवत्ता में आमूलचूल बदलाव लाने होंगे.
श्रीमान, इस बड़े निर्णय हेतु धन्यवाद! ईमानदार ने कुछ खोया नहीं, बल्कि एक उम्मीद पायी है. सभी वर्गों को साथ लेने से और विश्वास बनाने से इस प्रक्रिया को इतनी गति और समर्थन मिल सकेगा, जितना वाकई में भारत को 21वीं सदी में सशक्त बनाने और चीन की बड़ी चुनौती से निपटने हेतु आवश्यक है. सरकार ने सबसे कड़े निर्णय लेने की प्रतिबद्धता दर्शायी है, अब बस क्रियान्वयन तेजी से और संवेदनशीलता से हो जाये, तो परिवर्तन तय है.

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