खुले आकाश में खिला हुआ चांद
रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार भौगोलिक, भाषाई, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक दृष्टियों से पूर्वोत्तर राज्य देश के अन्य राज्यों की तुलना में कहीं अधिक भिन्न और विशिष्ट है. वरिष्ठ कथाकार असगर वजाहत के साथ 17 नवंबर की रात गुवाहाटी से शिलांग जाते हुए खुले, स्वच्छ आकाश में खिले हुए चांद को देखना वह प्रीतिकर अनुभव था, जो अब […]
रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
भौगोलिक, भाषाई, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक दृष्टियों से पूर्वोत्तर राज्य देश के अन्य राज्यों की तुलना में कहीं अधिक भिन्न और विशिष्ट है. वरिष्ठ कथाकार असगर वजाहत के साथ 17 नवंबर की रात गुवाहाटी से शिलांग जाते हुए खुले, स्वच्छ आकाश में खिले हुए चांद को देखना वह प्रीतिकर अनुभव था, जो अब हिंदी प्रदेश के कस्बों, नगरों में प्राप्त नहीं होता.
‘विकास’ की आंधी पूर्वोत्तर राज्यों से अभी दूर है. सांस्कृतिक दृष्टि से भारत के अन्य राज्यों से भिन्न असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा और मिजोरम को पहली बार त्रिपुरा के एक पत्रकार ज्योति प्रसाद सैकिया ने ‘सेवन सिस्टर्स’ कहा था और अब सिक्किम को इस सात बहनों का भाई कहा जाता है. पूर्वाेत्तर राज्यों की जनसंख्या लगभग पांच करोड़ है. भारतीय आबादी का सात प्रतिशत जनसंख्या घनत्व 150 प्रति किमी है. तीन भाषा-परिवारों- इंडो आर्यन (भारतीय आर्य), चीनी-तिब्बती और ऑस्ट्रो-एशियाटिक से यहां से यहां की भाषाएं संबद्ध हैं, जिनमें अधिकतर भाषाएं चीनी-तिब्बती परिवार से संबंध रखती है.
विश्वविद्यालयों का कार्य समय-समय पर अपने समय की चुनौतियों और बदलते परिदृश्य पर सार्थक विचार-विमर्श करना है. केवल रट्टा लगानेवाले तोता रटंत और जड़, निष्प्राण पाठ्यक्रमों से कोई विश्वविद्यालय जीवित नहीं रहता. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी-विश्वविद्यालय, वर्धा एवं पूर्वाेत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी (18-19 नवंबर, 2016) ‘पूर्वाेत्तर भारत की भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के बदलते परिदृश्य’ का महत्व उन राष्ट्रीय संगोष्ठियों की तुलना में कहीं अधिक भिन्न और विशिष्ट है, जो केवल कवि, लेखक, विधा विशेष और साहित्य केंद्रित होती हैं. एक साथ भाषा, साहित्य और संस्कृति पर सुचिंतित विचार अब कम ही होते हैं. भारत में लगभग 1500 भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें केवल 24 भाषाएं अनुसूची में उल्लिखित हैं.
1971 की जनगणना के अनुसार, सात पूर्वाेत्तर राज्यों में 220 भाषाएं बोली जाती हैं. 2001 की जनगणना में 100 भाषाएं ऐसी हैं, जिनके बोलनेवालों की संख्या कम-से-कम दस हजार है. इन 100 भाषाओं में से 61 भाषाएं पूर्वोत्तर क्षेत्र के आठ राज्यों में बोली जाती हैं. पूर्वाेत्तर राज्यों में कार्यालयी भाषाएं, असमी, बांग्ला, बोडो, अंगरेजी, खासी, गारो, कॉक बरोक और मणिपुरी हैं. शेष भाषाओं को सरकारी संरक्षण कम प्राप्त है. वैविध्य का सौंदर्य पूर्वोत्तर राज्यों में आज भी मौजूद है.
अदिति स्वामी ने कई वर्ष पहले अपने सुचिंतित लेख ‘दि एलिएनेटेड सेवन सिस्टर्स’ में विस्तार से भारतीय राज्य के इन राज्यों के प्रति व्यवहार की चर्चा की थी. उनकी यह शिकायत थी कि राष्ट्रगान में ये राज्य कहीं नहीं हैं.
अन्ना हजारे और बाबा रामदेव भी भूख हड़ताल को मीडिया ने जितना ‘कवरेज’ दिया, उतना इरोम शर्मिला को नहीं दिया. इतिहासकार झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और बेगम हजरत महल को जितना महत्व देते हैं, उसका शतांश भी रानी गाइदिनल्यू (जन्म: 26 जनवरी, 1915- निधन: 17 फरवरी, 1993) को नहीं देते. सोलह वर्ष की अवस्था में चार हजार सशस्त्र नागा सिपाहियों के साथ इस रानी ने अंगरेजों से लड़ाई लड़ी थी.
पूर्वाेत्तर राज्यों में जो सांस्कृतिक, जातीय चेतना आज भी कायम है, उससे हिंदी भाषियों को सीख लेनी चाहिए. तीन-चार जिलों में बोली जानेवाली भाषाओं पर जैसा गंभीर अध्ययन वहां हो रहा है, वह प्रेरणादायी है. हिंदी प्रदेश के अधिकतर विश्वविद्यालय लकवाग्रस्त हो चुके हैं. हिंदी के प्रोफेसरों को भाषा और साहित्य से कम अनुराग है. भूमंडलीकरण के दौर में भाषा, संस्कृति और साहित्य में हो रहे बदलावों को लेकर न वे संवादरत हैं और न चिंतित. निष्क्रिय माहौल समाप्त नहीं हो रहा है. पूर्वोत्तर राज्यों के विश्वविद्यालयों के हिंदी विभागों के पाठ्यक्रम वहां के जीवन, समाज, भाषा और संस्कृति-साहित्य से कम संबंधित हैं.
बड़ी बात यह है कि वे भाषा, साहित्य और संस्कृति के बदलते परिदृश्य कोलेकर चिंतित हैं. पूर्वाेत्तर राज्यों की भाषा, साहित्य और संस्कृति के बदलते परिदृश्य को लेकर शिलांग के ‘नेहू’ का हिंदी विभाग चिंतित और सक्रिय है. क्या हिंदी राज्यों में भाषा, साहित्य और संस्कृति का परिदृश्य बदल नहीं रहा है? कितने हिंदी विभागों के लिए यह चिंता और विमर्श का विषय है? बादल छा रहे हैं, लेकिन हमारी आंखें उसे नहीं देख रही हैं. अब कम खुला, स्वतंत्र सोच है. खुले आकाश में खिले हुए चांद का अपना सौंदर्य होता है, जिसे अब हम कम देख पाते हैं, कम दिखा पाते हैं.