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खत्म हो संसदीय गतिरोध
क्या संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र का हश्र वही होनेवाला है, जो बीते साल के सत्रों में हुआ था, खासकर राज्यसभा में? जीवंत लोकतंत्र के पक्षधर किसी भी नागरिक के मन में इस सवाल का उठना लाजिमी है. पिछले साल शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में बार-बार बाधित होती कार्यवाही से खीझ कर आखिरकार इस सदन […]
क्या संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र का हश्र वही होनेवाला है, जो बीते साल के सत्रों में हुआ था, खासकर राज्यसभा में? जीवंत लोकतंत्र के पक्षधर किसी भी नागरिक के मन में इस सवाल का उठना लाजिमी है. पिछले साल शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में बार-बार बाधित होती कार्यवाही से खीझ कर आखिरकार इस सदन के सभापति पद से बोलते हुए उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को कहना पड़ा था कि सदन के सदस्य अपने दिल के भीतर झांकें और राज्यसभा के कद की बेअदबी करनेवाले व्यवहार-बरताव से बाज आयें. किसी मसले पर हंगामा बुरा नहीं, बशर्ते उसकी नीयत सूरत बदलने की हो. बेशक विपक्ष की नजर में नोटबंदी एक बड़ा मसला है. यह स्वीकार करने में भी कोई हिचक नहीं हो सकती कि देश के बड़े हिस्से को नोटबंदी के आकस्मिक निर्णय से परेशानी हुई है. ऐसे में इस मसले पर विपक्षी दलों का रोष अकारण नहीं है, परंतु इस रोष का कोई लक्ष्य भी होना चाहिए.
चाहे विपक्ष सदन में लोगों की परेशानियों को उठाना चाहता हो या फिर सरकार के फैसले के औचित्य पर सवाल उठा कर जवाब-तलब करना चाहता हो, सदन के स्थगित रहने पर दोनों ही स्थिति में उसका मकसद सधता हुआ नहीं दिखता. विपक्ष के पास यह मानने का कोई आधार नहीं है कि लोकसभा में उसकी अपेक्षाकृत कमजोर उपस्थिति के कारण सरकार के फैसले को कारगर तरीके से प्रश्नांकित करना संभव नहीं हो पायेगा. विपक्ष की ताकत उसके संख्याबल के हिसाब से ही नहीं मापी जाती, बल्कि उसके तर्कों की धार और उसके तेवर से भी तय होती है.
अगर विपक्षी दलों के पास नोटबंदी पर ठोस तर्क हैं और उसे विश्वास है कि इनसे लोगों के दुख-दर्द का सीधा-सीधा रिश्ता बनता है, तो फिर उन्हें चाहिए कि अपनी बात रखने का अवसर न खोयें. हंगामा खड़ा करके सदन की कार्यवाही को स्थगित करने से लोगों के बीच यह संदेश भी जा सकता है कि लोकहित के अन्य मसलों को सदन में उठाने या फिर उनसे जुड़े विधेयकों पर होनेवाली जरूरी बहस की अपनी जिम्मेवारी से विपक्ष कन्नी काट रहा है.
लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत में दायित्व-निर्वाह सिर्फ सत्ताधारी खेमे को ही नहीं करना पड़ता, बल्कि विपक्ष को भी सकारात्मक भूमिका निभा कर अपनी साख बचानी और कमानी पड़ती है. उम्मीद की जानी चाहिए कि संसद के सत्र के बाकी बचे दिनों में सरकार और विपक्ष लोकहित की तमाम बातों के लिए एक जवाबदेह माहौल बना पाने में सफल होंगे.
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