26/11 का कड़वा सच
तरुण विजय राज्यसभा सांसद, भाजपा यदि कोई 26/11 को भुला दे, तो उसे संवेदनशील भारतीय से कुछ कम ही जाना जायेगा. दस पाकिस्तानी समुद्री मार्ग से मुंबई आये और 28 घंटे तक रक्तरंजित तबाही मचाये रखी. 168 से अधिक लोग मारे गये, 600 घायल हुए. फिर भी हमने क्या सबक सीखा? जब-जब कोई भारतीय आतंकवाद […]
तरुण विजय
राज्यसभा सांसद, भाजपा
यदि कोई 26/11 को भुला दे, तो उसे संवेदनशील भारतीय से कुछ कम ही जाना जायेगा. दस पाकिस्तानी समुद्री मार्ग से मुंबई आये और 28 घंटे तक रक्तरंजित तबाही मचाये रखी. 168 से अधिक लोग मारे गये, 600 घायल हुए. फिर भी हमने क्या सबक सीखा? जब-जब कोई भारतीय आतंकवाद का शिकार होता है, तब-तब 26/11 जिंदा हो उठता है.
कसाब अकेला नहीं था. वे दस लोग थे. हवा से नहीं आये थे. उनके मुंबई में ठिकाने और मददगार थे. पूरा अमला- हाफिज सईद से लेकर डेविड हैडली तक के जेहादी जिस युद्ध को अंजाम देने के लिए दिन-रात एक किये हुए थे, वह जब हुआ, तो वे अपने ही कुछ भारतीय थे, जिन्होंने कहा कि यह हमला अमेरिकी एजेंसी की मिलीभगत से यहूदी संगठनों और आरएसएस ने करवाया है. हमसे बढ़ कर भारत पर युद्ध थोपनेवालों की सुरक्षा ढाल और क्या हो सकती थी?
जिस हमले में दस देशों के और नागरिक मारे गये, जिस हमले ने भारत को सुरक्षा प्रतिरोधात्मक तैयारियों की धज्जियां उड़ा दी, तो इसने यह भी बताया कि देशभक्ति की पराकाष्ठा छूनेवाले सहायक पुलिस सब इंस्पेक्टर तुकाराम ओम्बले, एनएसजी कमांडो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, हवलदार गजेंद्र सिंह जैसे जांबाज भी थे, जिन्होंने नेताओं और मीडिया की निर्लज्ज संवेदनहीनता की परवाह न करते हुए एक आतंकवादी को जिंदा पकड़ा और बाकी को मौत की नींद सुलाया. यह भी इस घटना ने बताया कि रंगे हाथ पकड़े गये कसाब को सजा देने में देश की अदालतों को थका देनेवाले चार साल लगे.
जो अदालत कालेधन के खिलाफ जंग में जुटे लोगों की पंक्तियाें में दंगे भड़कने का डर देखती है, उसे देश पर हमला करनेवालों को सजा देने में हुए विलंब में कोई गलत बात नहीं दिखती.
26/11 इस बात का भी प्रमाण है कि यह देश अपने समाज को रक्तरंजित करनेवालों के प्रति बेपरवाह ही रहता है. हमले में पुलिस की नाकामयाबी, गुप्तचर एजेंसियों की विफलता, मीडिया के शोर मचानेवाले पत्रकारों की मूर्खता से कराची में बैठे ‘हैंडलरों’ को मनचाही सूचना का लाभ, सीसीटीवी का शहरों में लगाने में ही तीन साल लग जाना और देश पर आक्रमण करनेवालों के प्रति राजनीतिक एकजुटता का नितांत अभाव, इन सबका आज तक कोई उत्तर नहीं दे पाया. बल्कि पाकिस्तान को यदि सबक सिखाने का प्रयोग होता है, तो उसका ही मजाक उड़ाने लग जाते हैं वे, जिन्हें संभवत: अपना राजनीतिक लाभ अधिक महत्वपूर्ण लगता है.
26/11 इस बात का भी साक्षी है कि जो देश अपने वीरों को स्मरण नहीं करता, अपने सैन्य बलों को सम्मान और सुविधाएं नहीं देता, उसका कोई भविष्य नहीं होता. माना कि देश की जनता को पानी, सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य चाहिए, पर उससे भी बड़ी एक बात होती है और वह है देश की आत्मा. जैसे मनुष्य का मन होता है, वैसे ही राष्ट्र का भी मन होता है. यदि देश का मन बुझ जाये, तो सब विकास और सुविधाओं के होते हुए भी देश सुरक्षित नहीं रह सकता.
ऐसे कितने विद्यालय या विवि होंगे, जिनमें देश के लिए जान देनेवाले परमवीर चक्र विजेताओं के चित्र लगे हों. इनमें क्रिकेटरों के पोर्ट्रेट जरूर मिल सकते हैं. उनके नाम पर सड़क और संस्थान मिल सकते हैं, लेकिन किसी प्रांत में क्या, किसी पाठ्य-पुस्तक में किसी परमवीर चक्र विजेता, 26/11 के शहीदों की जीवनी पढ़ायी जाती है?
क्या मुंबई के किसी मार्ग के किनारे पर 26/11 के नायकों की मूर्ति, चित्र या नाम खुदा होगा? क्या मुंबई के ताज के पास, गेटवे ऑफ इंडिया के सामने 26/11 के शहीदों का पत्थर होगा, जहां हम फूल चढ़ा सकें? जो लोग बाघा सीमा पर मोमबत्तियां जलाते हैं या सेना पर शाब्दिक हमले करने में शर्म नहीं करते, क्या वे कभी देश पर जान कुर्बान करनेवालों के घर उनका हाल पूछने जाते हैं?
देशभक्ति के नारे और गीत तब तक खोखले रहेंगे, जब तक हम सैन्य बलों का सम्मान एक सामान्य सामाजिक शिष्टाचार में शामिल नहीं करते. ट्रेन में सैनिक खड़े-खड़े सफर करता है- हम सिकुड़ कर उसे बैठने लिए भी नहीं कहते. आज तक शहीद सैनिक के परिवार को दी जानेवाली राशि पर एक नीति नहीं बनी. राज्य सरकारें अपने-अपने हिसाब से अलग-अलग राशियां और प्रोत्साहन योजनाओं का लाभ देती हैं. किसी राज्य ने यह अादेश जारी नहीं किया है कि भले ही सांसद, विधायक को जिलाधिकारियों द्वारा दिये जानेवाले प्रोटोकॉल में कमी आ जाये, लेकिन एक सैनिक यदि किसी कार्यवश उनके पास जाये, तो उसे प्राथमिकता दी जाये.
अमेरिका या चीन का सामान्यजन अपने देश की सुरक्षा और सैनिकों के प्रति सम्मान में सर्वोच्च भावना दर्शाता है. यह भाव भारत में भी जगे, तो 26/11 को सही जवाब दे दिया समझा जायेगा. हमारी राजनीतिक अभीप्साएं, चुनावी जीत-हार, बड़े पदों की होड़- सबकुछ सुरक्षा के आगे छोटी होनी चाहिए. देश की सुरक्षा के लिए राजनीतिक एकता ही 26/11 के दिन की मांग है. यह संभव बनाना ही शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.