बैंड, बाजा और बारात

वीर विनोद छाबड़ा व्यंग्यकार बंदा जब कभी विवाह मंडप सजा देखता है, तो साठ और सत्तर के दशक की गलियों में पहुंच जाता है. मोहल्ले में लड़की की शादी है. पूरा मोहल्ला उमड़ पड़ा है. तजुर्बेकार ताऊ चार दिन पहले ही मैनेजरी की भूमिका में दिखता है. सब ताऊ से ही पूछते हैं- जी कुछ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 28, 2016 7:02 AM

वीर विनोद छाबड़ा

व्यंग्यकार

बंदा जब कभी विवाह मंडप सजा देखता है, तो साठ और सत्तर के दशक की गलियों में पहुंच जाता है. मोहल्ले में लड़की की शादी है. पूरा मोहल्ला उमड़ पड़ा है. तजुर्बेकार ताऊ चार दिन पहले ही मैनेजरी की भूमिका में दिखता है. सब ताऊ से ही पूछते हैं- जी कुछ काम बताओ.

गली के लड़कों ने परसों से ही स्कूल से छुट्टी ले रखी है. पतंगी कागज की रंग-बिरंगी झंडियां चारों ओर बंध रही हैं. स्वागत बारात के लिए पाठशाला का मैदान तय है. तंबू तन रहे हैं. बिजली की झालरें भी लग रही हैं. दरियां भी बिछ रही हैं.

लावां-फेरे के लिए मंडप घर के विशाल और खुले आंगन में सज रहा है. भोजन के लिए साठ थालियांे का सेट कल्याण समिति से आया है. हर थाल में तीन कटोरियां, गिलास और चम्मच. सब स्टील का है.

जो बंदा गिन के लाया है, वही गिन के वापस भी करेगा. इसका कोई चार्ज नहीं होता था. बस श्रद्धा स्वरूप 51 या अधिक से अधिक 101 का दान. बड़े-बड़े पतीले और कड़ाहियांे का तो हलवाई ने जुगाड़ किया है. वह पड़ोसी मोहल्ले का है. भरोसेमंद है. अपना समझ कर काम करता है. भाव तय नहीं होता. जो खुशी हो, दे देना. अरे, बेटी की शादी है. आपकी हो या मेरी. लड़के की होती तो दिल खोल कर ईनाम मांगता.

छत पर लाऊडस्पीकर बज रहा है- सैयां झूठों का बड़ा सरताज निकला…… झूम झूम कर नाचो आज, गाओ खुशी के गीत.…..

इधर ताऊ हर तीन-चार घंटे पर कामों की समीक्षा करते हैं. जहां कमी देखी या सुस्ती पायी, तो वहीं जम कर लथेड़ दिया.

सब्जीमंडी से लोग लौट आये हैं. औरतें अपने घरों से निकल पड़ीं और चाकू-छुरी लेकर आलू-प्याज और गोभी काटने पर जुट गयीं. कुछ को मटर और कुछ को गाजरें दे दी गयीं.

बारात आने में दो घंटे बाकी हैं. बर्तन धोकर और कायदे से सजा दिये गये हैं. लीजिये आ गयी बारात. गैस-बत्ती की रोशनी में नाचते-गाते बाराती. पूरा मोहल्ला छतों पर चढ़ कर बड़े कौतुहल से देख रहा है. खाने पर बाराती बैठ गये हैं. हम लोग छोटी-छोटी बाल्टियां, चौघड़े-दोघड़े में सब्जी रसेदार-सूखी, रायतादान, रोटी तंदूर-तवा, पूड़ी, गाजर हलवा या गुलाब जामुन लिये कुर्सी-कुर्सी जाते हैं. इसरार करते हैं- एक रोटी और लीजिये न, गोभी-आलू तो आपने लिया ही नहीं, ये मीठा कहां चखा आपने?…

इस बीच ताऊ उत्पादन, प्रेषण और वितरण पर बराबर नजर रखते हैं. कहीं कोई रुकावट न आये, कमी न होने पाये. हम लोगों ने भोजन नहीं किया. लड़की वालों के घर भला कुछ खाया जाता है?

यों भी काम में कुछ इस कदर डूबे रहे कि भूख ही मर गयी है. लावां-फेरे शुरू. ताऊ खोपड़ी पर सवार हैं. पाठशाला के कमरों में चारपाइयां, गद्दे और तकिये लगाओ. ठंड के दिन हैं. चाय पिलाते रहो. पतीला नहीं उतरना है.

तारों की छांव तले डोली उठी- छोड़ बाबुल का घर मोहे पी के नगर आज जाना पड़ा.….. रिश्तेदारों, दुल्हन की सहेलियों और आस-पड़ोस की महिलाओं को रोते देख हमारे आंसू भी छलक आये. ताऊ की हिदायत याद है. ध्यान रहे कि कोई दहाड़ें न मारे. दूल्हा पक्ष में गलत मेसेज जायेगा न. दुल्हन विदा हो गयी. लेकिन, अभी हमें घर नहीं लौटना, फैला हुआ समेटना है. जो जहां से आया, वापस करो. और फिर अगली शादी का इंतजार…

हम मेमोरी लेन से लौटते हैं. मिल कर काम करना, खिलाना-पिलाना. एक-दूसरे के प्रति छलकता प्यार. क्या सुख था! पता ही नहीं चला कि कब ये सुख वेटरों और इवेंट मैनेजरों के हाथों में खिसक गया.

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