पाक सेना की नयी कमान

लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा ऐसे समय में पाकिस्तानी सेना की बागडोर संभालने जा रहे हैं जब नवाज शरीफ की सरकार और राहील शरीफ की सेना के बीच संबंध तनावपूर्ण हैं. बीते कुछ महीनों से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते भी लगातार बिगड़ते जा रहे हैं तथा नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम उल्लंघन की घटनाओं में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 28, 2016 7:03 AM
लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा ऐसे समय में पाकिस्तानी सेना की बागडोर संभालने जा रहे हैं जब नवाज शरीफ की सरकार और राहील शरीफ की सेना के बीच संबंध तनावपूर्ण हैं. बीते कुछ महीनों से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते भी लगातार बिगड़ते जा रहे हैं तथा नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम उल्लंघन की घटनाओं में तेजी आयी है. संख्या के लिहाज से दुनिया की छठी सबसे बड़ी सेना का मुखिया पाकिस्तान का सबसे ताकतवर सत्ताधारी होता है.
सत्तर सालों के इतिहास में आधा वक्त मुल्क पर मिलिट्री ही काबिज रही है तथा लोकतांत्रिक सरकारें भी सेना के एजेंडे से अलग कुछ कर पाने में ज्यादा कामयाब नहीं रही हैं. पिछले बीस वर्षों से अधिक अवधि में ऐसा पहली बार हुआ है जब अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद सेनाध्यक्ष सेवानिवृत हुआ है. आम तौर पर ये अधिकारी तीन साल की निर्धारित अवधि के बाद सेवा-विस्तार ले लेते हैं. पर्यवेक्षकों का मानना है कि कुछ अधिकारियों की वरिष्ठता को किनारे कर बाजवा जैसे काबिल और अनुभवी, लेकिन चर्चा से दूर रहनेवाले अधिकारी का चयन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इसलिए किया है कि सरकार और सेना के मतभेदों को सुलझाया जा सके. इसी उम्मीद के तहत लेफ्टिनेंट जनरल जुबैर हयात को तीनों सेनाओं के प्रमुखों की समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है.
राहील शरीफ को उनके अराजनीतिक होने के कारण ही 2013 में सेनाध्यक्ष बनाया गया था, पर उन्होंने कभी भी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को चैन से नहीं रहने दिया. पाकिस्तानी तालिबान और कराची के आपराधिक गिरोहों के खिलाफ कार्रवाई तथा सेना के प्रचार तंत्र ने उन्हें जनता में भी खूब लोकप्रिय बनाया है. ऐसे में लेफ्टिनेंट जनरल बाजवा सरकार के नियंत्रण में रहेंगे, यह दावे से नहीं कहा जा सकता है.
यही बात नियंत्रण रेखा पर तनाव और घुसपैठ पर उनके भावी रवैये पर भी लागू होती है. यह मानने का भी कोई कारण नहीं है कि पाकिस्तानी सेना की चिर भारत-विरोधी मानसिकता बाजवा के प्रमुख बनने से बदल जायेगी क्योंकि वे भी उसी मानसिकता की छाया में अपनी सेवाएं देते रहे हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि जनरल बाजवा जनरल शरीफ से किस हद तक अलग साबित होते हैं.

Next Article

Exit mobile version