ईमानदार अफसरों की कद्र नहीं
लगन और मेहनत से काम करनेवालों को काम करने का मौका ही नहीं दिया जाता है. कोई अपने हक से मिलनेवाली प्रोन्नति के इंतजार में सेवानिवृत्त हो जाता है, तो कभी किसी ईमानदार अफसर को काम करने से रोकने के लिए असमय दूसरे विभाग में स्थानांतरित कर दिया जाता है. जबकि घोटालेबाज अफसर व कर्मचारी […]
लगन और मेहनत से काम करनेवालों को काम करने का मौका ही नहीं दिया जाता है. कोई अपने हक से मिलनेवाली प्रोन्नति के इंतजार में सेवानिवृत्त हो जाता है, तो कभी किसी ईमानदार अफसर को काम करने से रोकने के लिए असमय दूसरे विभाग में स्थानांतरित कर दिया जाता है. जबकि घोटालेबाज अफसर व कर्मचारी वर्षो से एक ही जगह पदस्थापित रहते हैं. अपनी सुविधा के अनुरूप पदस्थापन और स्थानांतरण कराते हैं. क्योंकि यहां प्रोन्नति वरीयता सूची के आधार पर नहीं, बल्कि कौन कितना घूस दे सकता है, इस पर निर्भर करती है. यही कहानी झारखंड के लगभग हर विभाग की है.
घोटालेबाज व चोर नेता-अफसर झारखंड को लूटते जा रहे हैं. घोटालेबाज पैसे के बल पर सुविधापूर्ण जगहों पर राज करते हैं, उन्हें वहां से हिलाने का हिम्मत किसी में नहीं. पिछले दिनों आपके अखबार में छपी एक खबर के अनुसार, कल्याण विभाग के कुछ अफसर करोड़ों का घोटाला कर रहे हैं और छह-छह महीने पर सुविधा अनुसार स्थानांतरण व पदस्थापन करा रहे हैं. उसी तरह एक अन्य खबर में भी एक आदिवासी आइएएस अफसर की यही दुख भरी कहानी थी. यह कहानी राज्य के किसी अन्य विभाग की है. आदिवासी मुख्यमंत्री होते हुए भी आदिवासी/अल्पसंख्यक अफसरों के साथ यदि ऐसा हो रहा है तो इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है! असल में राज्य को वही घूसखोर नेता, अफसर, कर्मचारीगण चला रहे हैं जो वास्तव में झारखंड के हितैषी नहीं हैं. गिने-चुने मंत्रियों के पास ‘पावर’ है, पर शायद उन्होंने प्रतिभा को नजरअंदाज करने की ठान ली है. 13 सालों से तो यही होता आ रहा है, पता नहीं आगे क्या होगा?
साइमन मुंडा, नामकुम, रांची