पुराने विमानों का कहर

बंगाल के सुकना में चीता हेलीकॉप्टर की दुर्घटना ने सेना के छोटे वायुयानों के जर्जर काफिले की ओर फिर से ध्यान खींचा है. बुधवार को हुए इस हादसे में तीन अधिकारी मारे गये हैं और एक सैनिक जख्मी हुआ है. हालांकि इस घटना के कारणों का पता जांच के बाद ही चल पायेगा, पर यह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 2, 2016 6:58 AM

बंगाल के सुकना में चीता हेलीकॉप्टर की दुर्घटना ने सेना के छोटे वायुयानों के जर्जर काफिले की ओर फिर से ध्यान खींचा है. बुधवार को हुए इस हादसे में तीन अधिकारी मारे गये हैं और एक सैनिक जख्मी हुआ है. हालांकि इस घटना के कारणों का पता जांच के बाद ही चल पायेगा, पर यह सवाल तो उठता ही है कि आखिर सेनाओं को दो ईंजनोंवाले आधुनिक यानों की जगह एक ईंजनवाले चीता हेलीकॉप्टरों के उपयोग की मजबूरी क्यों है. इनमें 1960 के दशक की तकनीक है और ऑटोमैटिक डिजिटल नियंत्रण तंत्र भी नहीं है.

जुलाई में वायुसेना का एक मालवाहक एएन-32 दुर्घटनाग्रस्त हुआ था जिसके मलबे आज तक नहीं बरामद हुए हैं और न ही उसमें सवार 29 लोगों का पता चल पाया है. इस मालवाहक में दो ईंजन तो होते हैं, पर इसमें प्रयुक्त तकनीक पुरानी है. मिग श्रेणी के लड़ाकू विमान दुर्घटनाओं के लिए कुख्यात हैं और उनके रख-रखाव में भी समस्याएं आती हैं. इसी साल जून में एक मिग-27 दुर्घटनाग्रस्त हुआ था. पिछले कुछ सालों में सेना के तीस विभिन्न श्रेणियों के विमान हादसों में तबाह हो चुके हैं. ऐसी स्थिति में सैनिकों का अमूल्य जीवन और धन का निवेश हमेशा खतरे में रहते हैं. विभिन्न सरकारों द्वारा समय पर निर्णय न लेने और सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एअरोनॉटिक्स का निराशापूर्ण कामकाज के साथ रक्षा सौदों में घपले जैसे कारणों से मौजूदा संकट पैदा हुआ है.

फरवरी, 2009 में तय हुआ था कि पांच सालों में हिंदुस्तान एअरोनॉटिक्स 187 हेलिकॉप्टर बनायेगा. पर, ऐसा हो नहीं सका है. रिपोर्टों की मानें, तो 50 फीसदी से अधिक सेना के वायुयान 30 साल से भी ज्यादा पुराने हैं. सेना के पास मंजूर क्षमता से 30 फीसदी कम छोटे यान हैं. सरकार ने विदेशी सहयोग से देश के भीतर हेलीकॉप्टरों के निर्माण की योजना बनायी है, पर अभी इस दिशा में शुरुआत नहीं हो सकी है.

पिछले दशक में विभिन्न कारणों से 197 नये हल्के यान खरीदने की योजना तीन बार रद्द की जा चुकी है. रूस के साथ हुए समझौते के तहत 60 हल्के यान आयात किये जाने हैं, जबकि शेष का उत्पादन आगामी नौ वर्षों में देश के भीतर किया जायेगा. देश में उत्पादन पर जोर जरूरी है, पर विदेशों से आवश्यक यानों और संबंधित उपकरणों की खरीद में बेमानी रुकावट ठीक नहीं है. अब किसी भी तरह की देरी आत्मघाती है और सरकार को संकट से निकलने की त्वरित पहल करनी चाहिए.

Next Article

Exit mobile version