आर्थिक वृद्धि संतोषजनक

मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में यानी जुलाई से सितंबर के बीच देश के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में बढ़ोतरी की दर 7.3 फीसदी रही है. नोटबंदी से नकदी की कमी और अंतरराष्ट्रीय कारणों से रुपये के मूल्य में गिरावट से उपजी चिंताओं के बीच यह संतोषजनक खबर है. पहली तिमाही में जीडीपी की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 2, 2016 6:58 AM
मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में यानी जुलाई से सितंबर के बीच देश के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में बढ़ोतरी की दर 7.3 फीसदी रही है. नोटबंदी से नकदी की कमी और अंतरराष्ट्रीय कारणों से रुपये के मूल्य में गिरावट से उपजी चिंताओं के बीच यह संतोषजनक खबर है.
पहली तिमाही में जीडीपी की दर 7.1 फीसदी रही थी. वर्ष 2014-15 में 7.2, 2015-16 में 7.6 और 2016-17 की दो तिमाहियों में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि दर का कायम रहना वैश्विक अर्थव्यवस्था में कमजोर बढ़ोतरी के मद्देनजर भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती का संकेत है. सितंबर में आठ मुख्य आर्थिक क्षेत्रों में पांच फीसदी की दर से विकास हुआ था, जो अगस्त के 3.2 फीसदी से अधिक था. साथ ही, कृषि क्षेत्र में बेहतर मॉनसून के कारण अच्छा प्रदर्शन रहा है, जिसका असर मौजूदा दर पर पड़ा है.
लेकिन, इस वृद्धि में लोक प्रशासन, रक्षा और अन्य सेवाओं में सरकारी खर्च का अधिक होना भी एक विशेष कारक है. यह खर्च सकल मूल्य वर्द्धन (जीवीए) का 23.8 फीसदी है. यदि इसे अलग कर दें, तो शेष अर्थव्यवस्था की विकास दर 6.2 फीसदी रह जाती है. सरकारी खर्च से अधिक योगदान वित्तीय, बीमा, रियल एस्टेट और पेशेवर सेवाओं का है. पिछली तीन तिमाहियों में निवेश मांग का लगातार ऋणात्मक रहना तथा औद्योगिक विकास का घटते जाना चिंताजनक है. सेवा क्षेत्र में भी बड़ी गिरावट दर्ज की गयी है.
पूरे आंकड़े के अध्ययन से पता चलता है कि सरकारी और निजी उपभोग जीडीपी वृद्धि का 82.2 फीसदी हिस्सा है तथा पूंजी निर्माण का भाग ऋणात्मक है. निर्यात के अनुपात में आयात का बढ़ना भी चिंताजनक है. इन्हीं कारकों से जीवीए पिछली तिमाही के 7.3 से घट कर 7.1 फीसदी हो गया है. जीवीए का निर्धारण संसाधनों की लागत के हिसाब से किया जाता है, जबकि जीडीपी में करों को जोड़ा जाता है और सब्सिडी को निकाल दिया जाता है. दूसरी तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि निजी क्षेत्र का प्रदर्शन अपेक्षा से कम है तथा नोटबंदी और रुपये की कीमत कम होते जाने से इसमें आगे भी कमजोरी की आशंका है. बहरहाल, नवीनतम सूचनाओं से इतना तो संकेत मिलता है कि अर्थव्यवस्था में आधारभूत मजबूती है और उसमें उतार-चढ़ावों के झटकों को बर्दाश्त करने की क्षमता है.
अक्तूबर में सितंबर के मुकाबले वित्तीय घाटा कम रहा है और राजस्व वसूली भी बेहतर है. नोटबंदी से बैंकों के पास भारी मात्रा में पूंजी जमा हो रही है. इससे अर्थव्यवस्था में निवेश की गुंजाइश बढ़ेगी. मैनुफैक्चरिंग सेक्टर, घरेलू मांग और निजी निवेश को बढ़ाने पर समुचित ध्यान देकर नकारात्मक कारकों के असर को काफी हद तक कम किया जा सकेगा.

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