चुनाव सुधार जरूरी
देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त नसीम जैदी ने चुनाव से संबंधित कानूनों में बदलाव और जन प्रतिनिधित्व कानून की समीक्षा पर जोर दिया है. चुनावी प्रक्रिया में समस्याओं को देखते हुए लंबे समय से जरूरी सुधारों की मांग उठती रही है, परंतु इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है. बीते कुछ दशकों […]
देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त नसीम जैदी ने चुनाव से संबंधित कानूनों में बदलाव और जन प्रतिनिधित्व कानून की समीक्षा पर जोर दिया है. चुनावी प्रक्रिया में समस्याओं को देखते हुए लंबे समय से जरूरी सुधारों की मांग उठती रही है, परंतु इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है.
बीते कुछ दशकों से जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करने की जरूरत रेखांकित की जाती रही है. सभी राजनीतिक दल भी मौजूदा चुनौतियों का सामना करने के लिए समुचित समीक्षा और सुधार के पक्ष में बोलते रहते हैं, पर सत्ता पक्ष या विपक्ष के रूप में इस मसले पर कोई पहल करने में विफल रहे हैं. कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो मुख्यधारा की ज्यादातर पार्टियां चुनाव जीतने और अपने वर्चस्व को मजबूत करने के लिए धन-बल, अपराधी तत्वों और पैसे के सहारे मीडिया का बेजा इस्तेमाल करती हैं. मतदाताओं को रिझाने के लिए पैसे और सामान बांटने की खबरें आम हो चुकी हैं.
करोड़ों रूपये की जब्ती के असंख्य उदाहरण हैं. ऐसी प्रवृत्तियों पर लगाम लगा पाना आयोग के लिए भी एक सीमा से बाहर कठिन है क्योंकि उसके पास पर्याप्त अधिकार नहीं हैं. सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार और कालेधन की समस्या की जड़ में राजनीति में पैसे और अपराध का बढ़ता बोलबाला ही है. कदाचार और बेईमानी से चुनाव जीतनेवाले राजनेता सबसे पहले अपने खर्च की भरपाई की जुगत लगाते हैं. ऐसी स्थिति में सुशासन और जन कल्याण की प्राथमिकताएं हाशिये पर चली जाती हैं तथा भ्रष्टाचार का अंतहीन सिलसिला राष्ट्रीय जीवन के हर क्षेत्र को अपने चंगुल में ले लेता है.
समय-समय पर चुनाव आयोग द्वारा भेजे गये सुझावों का अध्ययन विधि आयोग ने भी किया है और 47 सुझावों को कानूनी जामा पहनाने के प्रस्ताव भी सरकार को भेजे गये हैं जिन पर कानून मंत्रालय का टास्क फोर्स विचार कर रहा है. लेकिन, इसे लापरवाही कहें या राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, सरकार इन मसलों पर समुचित त्वरा दिखा पाने में असफल रही है. राजनीतिक पार्टियों को मिलनेवाले चंदे और चुनावी खर्च का ब्योरा देने में पारदर्शिता नहीं है. पार्टियों के हिसाब-किताब की जांच करने के साथ आयोग का जिम्मा साफ-सुथरा चुनाव कराना भी है.
अगर इसे सुनिश्चित करने के लिए उसके पास पर्याप्त अधिकार नहीं होंगे, तो चुनावी प्रक्रिया में शुचिता स्थापित कर पाना संभव नहीं होगा. साफ-सुथरे चुनावों और राजनीतिक पारदर्शिता से ही लोकतंत्र को वैधता मिलती है. ऐसे में महत्वपूर्ण चुनावी सुधारों को लागू कराना बहुत जरूरी है ताकि लोकतांत्रिक भारत भ्रष्टाचार और आपराधिक माहौल से मुक्त होकर विकास और समृद्धि की ओर अग्रसर हो सके.