इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान जरूरी

मैंयह लेख सूरत, जो कि भारत का सबसे पुराना और बड़ा शहर है, में अपने पारिवारिक घर से लिख रहा हूं. सूरत शहर का इतिहास सदियों पुराना है और इसे भारतीयों ने बनाया हैै. मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और यहां तक कि नयी दिल्ली जैसे दूसरे शहरों की तरह अंगरेजों ने इस शहर को नहीं बनाया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 6, 2016 1:31 AM
मैंयह लेख सूरत, जो कि भारत का सबसे पुराना और बड़ा शहर है, में अपने पारिवारिक घर से लिख रहा हूं. सूरत शहर का इतिहास सदियों पुराना है और इसे भारतीयों ने बनाया हैै. मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और यहां तक कि नयी दिल्ली जैसे दूसरे शहरों की तरह अंगरेजों ने इस शहर को नहीं बनाया है.
इसकी संपन्नता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली सल्तनत के समय भी यह एक शहर था और मुगल साम्राज्य के समय इस उपमहाद्वीप में सबसे ज्यादा कर राजस्व देनेवाला शहर भी सूरत ही था. वर्ष 1608 में पहली बार ब्रिटिशों का यहां आगमन हुआ, तब जहांगीर के शासनकाल में सूरत एक बड़े और सफल बंदरगाह के रूप में प्रसिद्ध था और व्यापारिक केंद्र था. हालांकि, तीन शताब्दियों के बाद बंदरगाह मुंबई में स्थानांतरित हो गया, लेकिन इसके बावजूद सूरत एक बड़ा शहर था और इसकी प्रसिद्धि पूरे विश्व में थी.
सूरत शहर इतना मशहूर था कि लियो टॉल्स्टॉय ने इसे लेकर ‘द कॉफी हाउस ऑफ सूरत’ नाम की एक लघुकथा भी लिखी थी. आज सूरत विश्व का सबसे बड़ा हीरा पॉलिशिंग केंद्र है (विश्व में जितने भी हीरे पाये जाते हैं, उनमें से दो तिहाई हीरे की पॉलिशिंग सूरत में ही होती है). इतना ही नहीं, यह विश्व का सबसे बड़ा टेक्सटाइल सेंटर भी है. यहां की कुल आबादी लंदन के लगभग बराबर है और यहां की प्रति व्यक्ति आय पूरे भारत में सबसे अधिक है.
इस शहर के बारे में इतनी सारी बातें मैं सिर्फ इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मेरे लिए अब मेरे गृह नगर जाना लगभग असंभव हो गया है. इन दिनों मैं बेंगलुरु में रहता हूं, और वहां से सूरत के लिए कोई उड़ान नहीं है. इसका कारण यह है कि सूरत का एकमात्र हवाई अड्डा काम नहीं कर रहा है. इस शहर के लिए कोई निजी विमान सेवा भी नहीं है. मौजूदा सरकार के सत्ता में आने के कुछ समय बाद ही एक भैंस टहलती हुई सूरत हवाई पट्टी पर आ गयी थी, जिससे एक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उसका जेट इंजन क्षतिग्रस्त हो गया. इस वजह से इस शहर को जोड़नेवाली इस अकेली निजी उड़ान को भी बंद कर दिया गया.
इस बारे में नरेंद्र मोदी के विमानपत्तन मंत्री अशोक गजपति राजू ने कहा था कि हवाई अड्डे की चारदीवारी की दरार से जानवर भीतर आ गया था और उस दीवार के मरम्मत का आदेश दे दिया गया है. लेकिन, इस आश्वासन के बावजूद पिछले दो सालों से एयरलाइनों की दिलचस्पी सूरत में नहीं हुई है. यहां आने के लिए मुझे पहले मुंबई के लिए उड़ान लेनी होती है और फिर वहां से पांच घंटे कार से चल कर मैं सूरत पहुंच पाता हूं.
मुंबई से सूरत की दूरी 300 किलोमीटर है और इन दोनों शहरों को जोड़नेवाली सड़क भारत के सर्वोत्तम हाइवे नेटवर्क, गोल्डेन क्वाॅड्रिलैटरल, का हिस्सा है, जो मुंबई और दिल्ली को जोड़ता है. यहां सवाल यह है कि आखिर क्यों इतनी-सी दूरी को तय करने में पांच घंटे का समय खर्च होता है? तो इसका जवाब यह है कि मुंबई से बाहर निकलते ही फाउंटेन होटल नामक जगह के पास टूटा-फूटा फ्लाइओवर है. इस वजह से यहां दोनों ओर से वाहनों का एक साथ आना-जाना सुरक्षा की दृष्टि से ठीक नहीं है, इसलिए जब एक तरह से वाहन आते हैं, तो दूसरी तरफ जानेवाले वाहनों को अक्सर लगभग एक घंटे तक रुक कर रास्ता खुलने का इंतजार करना पड़ता है. इस हाइवे पर भारी आवागमन रहता है और संभवत: यह भारत का व्यस्ततम हाइवे है. ऐसे में यहां एक तरफ के यातायात रुकने का मतलब है कई किलोमीटर तक लंबा जाम लग जाना.
मैंने जब अपने टैक्सी ड्राइवर से पूछा कि यहां ऐसी स्थिति कब से है, तो उसने कहा कि कम-से-कम चार महीने से यह फ्लाइओवर टूटा पड़ा है और इसके मरम्मत का काम अब तक शुरू नहीं हुआ है. सूरत पहुंचने पर मैंने गौर किया कि एक अन्य फ्लाइओवर, जो पिछली बार टूट गया था और जिसमें 11 लोगों की मृत्यु हो गयी थी, उसकी मरम्मत भी अब तक नहीं हुई है. यह फ्लाइओवर बिल्कुल नया बना था और दो साल पहले इसका एक हिस्सा तब टूट कर नीचे गिर गया था, जब इसको सहारा देने के लिए बनाया गया मचान हटा लिया गया था. दो सालों से इस फ्लाइओवर का एक हिस्सा अब तक नहीं जोड़ा जा सका है और इस कारण सूरत की सबसे महत्वपूर्ण सड़क, अथवा लाइंस, बेकार पड़ी है.
यहां मैं सिर्फ इतना कहने की कोशिश कर रहा हूं कि यह वही रास्ता है, जहां से होकर बुलेट ट्रेन गुजरेगी. यह हाइ स्पीड रेल नेटवर्क अहमदाबाद से शुरू होकर सूरत तक पहुंचेगी, जो कि इस मार्ग का करीब मध्य बिंदु है, और उसके बाद मुंबई जायेगी. अगर आप गौर करें, तो गुजरातियों ने बुलेट ट्रेन की कोई मांग नहीं की है. उन्हें तो सुचारु रूप से काम करनेवाला एक हवाई अड्डा चाहिए, जहां जानवरों को टहलते की अनुमति नहीं हो. उन्हें अच्छा राष्ट्रीय राजमार्ग चाहिए, जिस पर मजबूत फ्लाइओवर बने हों और जो सामान्य यातायात को संभालने की क्षमता रखते हों. वे अपने शहर में ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर चाहते हैं, जो बनने से पहले ही न टूटे और टूट जाने पर वे दो वर्षों तक बिना मरम्मत के ऐसे ही नहीं पड़े रहें.
यहां ऐसे सामान्य नेतृत्व की जरूरत है, जो हमारी आधारभूत चीजों को ठीक रखने का आश्वासन दे सके, न कि किसी ऐसे विलक्षण नेतृत्व की जो बुलेट ट्रेन का सपना दिखाये. मेरे लिए विचारणीय बात यह है कि एक ऐतिहासिक शहर, जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं कि जो लंदन जितना बड़ा है, के विकास को लेकर किस तरह का गैर-जिम्मेवाराना रवैया अपनाया जा रहा है. भारत का एक सफल शहर, जहां की प्रति व्यक्ति आय (2008 में प्रति घर की आय 4.5 लाख रुपये थी) देश में सबसे अधिक है, उस शहर को दूसरे शहर से जोड़नेवाला रास्ता इतना खराब है कि बेंगलुरु से लंदन उड़ान भरने के मुकाबले सूरत पहुंच पाना कहीं अधिक कठिन है.
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
aakar.patel@me.com

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