गुड़िया की शादी
गुड़िया ने गोटा और सलमे सितारे लगा लाल रंग का लहंगा पहन रखा था. वैसी ही ओढ़नी थी. मीतू की मम्मी ने मीतू की चुन्नी से ये कपड़े तैयार किये थे. उसका हार, मांग टीका, करधनी, नथ और पायलें भी मीतू की पुरानी टूटी हुई मालाओं से तैयार की गयी थीं. आज मीतू की गुड़िया […]
गुड़िया ने गोटा और सलमे सितारे लगा लाल रंग का लहंगा पहन रखा था. वैसी ही ओढ़नी थी. मीतू की मम्मी ने मीतू की चुन्नी से ये कपड़े तैयार किये थे. उसका हार, मांग टीका, करधनी, नथ और पायलें भी मीतू की पुरानी टूटी हुई मालाओं से तैयार की गयी थीं. आज मीतू की गुड़िया की शादी थी. आंगन में दरी बिछी थी. छोटा मंडप भी सजा था.
उसके चारों ओर आम के पत्तों के वंदनवार लटके थे. बारात जहां से आनेवाली थी, वहां सुंदर रंगोली बनायी गयी थी. मीतू की सहेलियां आयी हुई थीं. मम्मी-पापा ने सबके लिए खाना बनाया था. गरमागरम जलेबियां भी थीं. गुड़िया को देने के लिए भी छोटा किचेन सेट, सोफा, गैस, सिलाई मशीन, पंखा, साइकिल, कार, कपड़ों की अलमारी आदि छोटे-छोटे खिलौने मेज पर सजे थे.
बारात आ गयी थी. मम्मी और अड़ोस-पड़ोस की चाची, ताई ने ढोलक बजा कर गीत गाने शुरू कर दिये थे. बरना, बरनी के अलावा गालियां भी गायी जा रही थीं. मीतू दौड़-दौड़ कर सबको अपनी सजी-धजी गुड़िया को दिखा रही थी. और सबसे पूछ रही थी- सुंदर लग रही है न मेरी गुड़िया. बिल्कुल परी जैसी.
दूल्हे राजा बने गुड्डे मियां भी कोई कम न थे. सुनहरी अचकन और चूड़ीदार पजामा पहने थे. कमर पर लकड़ी से बनी नन्हीं तलवार लटकाये हुए, वे कपड़े के घोड़े पर सवार थे. कपड़े के घोड़े को चुनमुन ने अपने हाथ में उठा रखा था. गुड्डा उसका जो था. शादी कराने का काम पड़ोस के चाचा ने संभाल रखा था. थाल में नारियल, सिंदूर, पान, सुपारी, चावल, घी सब रखा था. फेरे की पूरी तैयारी थी. जब शादी हो गयी और गुड़िया की विदाई की बारी आयी, तो मीतू का कलेजा मुंह को आ गया. क्या उसे अपनी गुड़िया चुनमुन को देनी पड़ेगी? चुनमुन के पास गुड्डा तो पहले से ही है, अब गुड़िया भी हो जायेगी. वह क्यों दे अपनी गुड़िया. मीतू अड़ गयी कि चाहे जो हो, वह अपनी गुड़िया नहीं देगी. जब वह किसी के भी समझाने से नहीं मानी, तो सब चुनमुन को समझाने लगे कि कोई बात नहीं है, तू अपना गुड्डा मीतू को दे दे. उसकी मम्मी ने कहा कि वह उसके लिए कपड़े से दूसरा गुड्डा बना देंगी. मगर चुनमुन भी अड़ गयी. मीतू क्या लाट साहब है कि ऐसे ही सेंतमेत में उसका गुड्डा ले ले, और वह अपना गुड्डा लेकर भाग गयी. बेचारी गुड़िया अपने ससुराल नहीं जा सकी.
पहले के जमाने में इसी तरह गुड़ियों की शादी घरों में होती थी. बहुत रोमांचक शादी होती थी. घरों में ही कपड़ों से गुड़िया बना कर सजा-संवार दी जाती थी. उनकी शादी करा कर एक तरह से लड़कियों को विवाह का महत्व समझाया जाता था, क्योंकि तब लड़कियों के लिए जीवन की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण घटना विवाह ही होती थी. इस बहाने उन्हें परिवार चलाने की शिक्षा-दीक्षा भी बचपन से दी जाती थी.
लेकिन, अब समय बदल गया है. घूंघट, नथ और पायल पहननेवाली गुड़ियों की जगह बाजार में मिलनेवाली प्लास्टिक की गुड़िया और नीली आंख वाली स्कर्ट पहने बार्बी डाॅल घर-घर की लड़की के पास दिखाई देने लगी है. इसकी शादी नहीं होती. हां, इसका ब्वॉयफ्रेंड केन जरूर बाजार से खरीद कर लाया जा सकता है.
घर में बने कपड़े की गुड़िया अब कहीं दिखाई नहीं देती, न ही कहीं गुड़ियों की शादी ही होती है. शायद आज की बच्चियों को यह पता भी न हो कि कभी गुड़ियों की शादी भी हुआ करती थी. पढ़ने, लिखने, शिक्षा, आत्मनिर्भरता के सामने वैसे भी लड़कियों के जीवन से शादी अब पहले नंबर से आखिरी नंबर पर चली गयी है. यह एक अच्छी बात भी है.
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
kshamasharma1@gmail.com