जे जयललिता: नीतियों ने गढ़ी करिश्माई छवि

!!प्रमोद जोशी ,वरिष्ठ पत्रकार!! फिल्मों के ग्लैमरस संसार से आयीं जयललिता को राजनीति में प्रवेश करने के पहले कई प्रकार के अवरोधों, अपमानों और दुर्व्यवहारों का सामना भी करना पड़ा. शायद उनके अप्रत्याशित व्यवहार के पीछे यह भी एक बड़ा कारण था. पर, उनकी गरीबनवाज छवि ने उनके सारे दोषों को धो दिया. उनके ऐसे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 7, 2016 7:47 AM

!!प्रमोद जोशी ,वरिष्ठ पत्रकार!!

फिल्मों के ग्लैमरस संसार से आयीं जयललिता को राजनीति में प्रवेश करने के पहले कई प्रकार के अवरोधों, अपमानों और दुर्व्यवहारों का सामना भी करना पड़ा. शायद उनके अप्रत्याशित व्यवहार के पीछे यह भी एक बड़ा कारण था. पर, उनकी गरीबनवाज छवि ने उनके सारे दोषों को धो दिया.

उनके ऐसे व्यक्तित्व को विकसित करने में तमिलनाडु की विलक्षण व्यक्ति-पूजा का भी योगदान है. भारतीय राजनीति में बड़े-बड़े कटआउटों की संस्कृति तमिलनाडु में ही विकसित हुई थी, जिसे रोकने का काम भी दक्षिण से आए टीएन शेषन ने ही किया था. इस राज्य में जीवित समकालीन नेताओं, फिल्मी सितारों और खिलाड़ियों के मंदिर बनते हैं. उनकी पूजा होती है. दक्षिण की पुरुष-प्रधान राजनीति में जयललिता जैसा होना भी अचंभा है. उन्होंने साधारण परिवार में जन्म लिया, कठिन परिस्थितियों का सामना किया और एक बार सत्ता की सीढ़ियों पर चढ़ीं, तो चढ़ती चली गयीं.

तमिलनाडु की द्रविड़ राजनीति के केंद्र में ब्राह्मणवादी व्यवस्था का कठोर विरोध बैठा है. और यह धर्मभीरु ब्राह्मण-स्त्री उस ब्राह्मण-विरोधी राजनीति के शिखर पर बैठी, जो नास्तिक भी है. खुद उनका मूल कर्नाटक में था, पर लंबे अरसे से दोनों राज्यों के बीच पानी को लेकर चले आ रहे टकराव में वह कर्नाटक-विरोधी राजनीति का नेतृत्व भी करती रहीं. उनका पूरा जीवन अंतर्विरोधों और विडंबनाओं से भरा रहा. तकरीबन तीन दशक तक जयललिता ने लोहे के दस्ताने पहनकर अपनी पार्टी पर एकछत्र राज किया. अपने विरोधियों का दमन करने में उन्होंने कभी रियायत नहीं बरती. मित्रों और वफादारों को चुनने में भी वे हमेशा अप्रत्याशित रहीं. केवल शशिकला ही ऐसी थीं, जो उनके ‘कृपा-मंडल’ से बाहर जाने के बाद फिर से वापस आयीं, अपने परिवार को छोड़ने के बाद.

जयललिता को पुरातची थलाइवी (क्रांतिकारिणी) बनाने में एमजी रामचंद्रन के राजनीतिक संरक्षण का हाथ था. सिनेमा के दर्शकों के लिए वे मामूली अभिनेत्री थीं. यह संयोग है कि उन्होंने तीन ऐसे अभिनेताओं के साथ काम किया जो बड़े राजनेता भी बने. अपने राजनीतिक गुरु एमजीआर के साथ उनकी 28 फिल्में थीं और 22 फिल्में शिवाजी गणेशन के साथ. इसके अलावा 10-15 फिल्में एनटी रामाराव के साथ भी थी.

वर्ष 1982 में जयललिता ने एमजीआर की सहायता से राजनीति में प्रवेश किया और अन्ना-द्रमुक की सदस्य बनीं और 1983 में उन्हें पार्टी के प्रचार सचिव के रूप में नियुक्त किया गया. अगले साल वे राज्यसभा की सदस्य बनीं. एमजीआर के निधन के बाद उन्होंने पार्टी के भीतर ही अपमान और अभद्रता का एक दौर देखा. उनकी प्रतिस्पर्धी पार्टी द्रमुक के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने भी उनका अपनाम करने में कसर नहीं छोड़ी. इन सब बातों से जनता के मन में उनके प्रति हमदर्दी पैदा हुई.

इतने अपमान और दुर्व्यवहार से उनके मन में काफी कड़वाहट भर गयी थी. उनके व्यक्तित्व में अजब असहिष्णुता पैदा हो गयी. वे किसी प्रकार का विरोध सहन नहीं कर पाती थीं. दूसरी ओर, उनके इर्द-गिर्द के लोगों ने चाटुकारिता का जो मंजर पेश किया वह अनोखा था. वर्ष 1991 में जब वे पहली बार मुख्यमंत्री बनीं, तो उन्होंने राजसत्ता का पूरा इस्तेमाल अपने प्रचार-प्रसार के लिए किया.

इस सरकार का पहला साल पूरा होने पर 1992 में तमिलनाडु के शिक्षामंत्री ने घोषणा की कि हर जिले में श्रेष्ठ शिक्षा देने वाले आदर्श विद्यालय खोले जायेंगे, जिनका नाम जयललिता विद्यालय होगा. कृषिमंत्री ने बताया कि राज्य के कृषि वैज्ञानिकों ने सुगंधित धान की नयी किस्म तैयार की है, इसका नाम ‘जया-जया-92’ रखा गया है. आवास मंत्री ने हर जिले में ‘जया नगर’ बसाने की घोषणा की. शहरों में जया के नाम से स्टेडियम, विवाह मंडप और न जाने क्या-क्या बनाने की घोषणाएं होने लगीं.

जयललिता के चोरों ओर चापलूसों और चाटुकारों का घेरा भी बन गया था. इस तस्वीर का दूसरा पहलू भी है. उनके निधन के बाद तमिलनाडु की जो तस्वीरें सामने आयी हैं, उनमें खासतौर से गरीब स्त्रियों का विलाप नकली नहीं है. लोक-लुभावन राजनीति का श्रीगणेश दक्षिण में हालांकि उनके पहले एनटी रामाराव ने कर दिया था, पर जयललिता ने इसे अपना राजनीतिक हथियार बनाया. उनकी कम-से-कम 18 योजनाओं ने राज्य में गरीबों, स्त्रियों और समाज के दूसरे पिछड़े वर्गों के नागरिकों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी.

वर्ष 1991 में जब वे पहली बार मुख्यमंत्री बनीं, तो उनकी अनोखी पालना (क्रैडल) स्कीम सामने आयी. जयललिता ने कहा, यदि बेटी आपको नहीं चाहिए, तो हमें दे दीजिए. हम उन्हें पालेंगे. इन बेटियों को कहीं फेंकने के बजाय सरकारी आश्रय में देने का रास्ता खुला. आज इनमें से कई लड़कियां 20-25 साल की हो चुकी हैं और पढ़-लिखकर नौकरियों में लग गयी हैं. इस अनोखी ‘बेटी बचाओ’ मुहिम के कारण समाज में बेटियों को संरक्षण देने की इच्छा भी बढ़ी. अब इन अनाथालयों में आने वाली बेटियों की संख्या काफी कम हो गई है.

सन 2006 में अन्ना द्रमुक ने अपने चुनाव घोषणापत्र में ‘थलिक्कु थंगम थित्तम’ (विवाह के लिए स्वर्ण) योजना शुरू करने का वादा किया. यह योजना 2011 में लागू हुई. इसके तहत डिग्री या डिप्लोमा की पढ़ाई पूरी करने वाली गरीब लड़कियों को चार ग्राम सोना और 50,000 रुपए तक नकद देने की व्यवस्था है. जयललिता ने वादा किया था कि इस स्कीम में सोने की मात्रा बढ़ाकर एक गिन्नी के बराबर कर दिया जायेगा.

ट्रांसजेंडर लोगों के लिए विशेष पेंशन योजना ध्यान खींचती है. उनकी सबसे लोकप्रिय स्कीमें ‘अम्मा’ नाम से चलीं. इनमें सबसे पहली थी एक रुपये में थाली. इस स्कीम की तर्ज पर बाद में आंध्र प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में भी सस्ते भोजन की स्कीमें चलीं. वर्ष 2013 में अम्मा पेयजल आया. इस साल फरवरी में गरीब परिवारों को 20 लिटर तक पेयजल देने की स्कीम आयी. अन्ना द्रमुक सरकार ने राज्य के सरकारी और सहायता प्राप्त विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों को मुफ्त ‘अम्मा लैपटॉप’ देने की योजना शुरू की. उत्तर प्रदेश सरकार ने भी इसकी तर्ज पर लैपटॉप स्कीम चलायी है. इसी तरह से ‘अम्मा शिशु किट’ हैं. इनमें सरकारी अस्पतालों में जन्म लेने वाले बच्चों को 16 किस्म के बेबी प्रोडक्ट दिए जाते हैं, जिनकी कीमत तकरीबन 1000 रुपए होती है. ऐसी ही ‘अम्मा नमक’, ‘अम्मा सीमेंट’,‘अम्मा ग्राइंडर-मिक्सी’, ‘अम्मा टेबल फैन’ और किसानों के लिए ‘अम्मा बीज’ जैसी योजनाएं हैं. सस्ते अनाज और सस्ती सब्जियों की व्यवस्था है. जनता के काम करने के लिए सर्विस सेंटर बनाये गये हैं. जनता की सुनवायी के लिए टोल फ्री नम्बर पर शिकायतें दर्ज करने वाले कॉल सेंटर हैं. गांवों में अम्मा कैंप लगाये जाते हैं. अम्मा माइक्रो लोन हैं, ‘अम्मा आरोग्य थित्तम’ के तहत स्वास्थ्य की जांच होती है. स्वास्थ्य बीमा भी है. केवल 10 रुपए के टिकट पर तमिल फिल्में देखने का इंतजाम भी है. इन कार्यक्रमों को उत्तर और पश्चिमी भारत के दूसरे राज्यों में अपनाने की कोशिश भी की गयी है. वर्ष 2013 में जब यूपीए सरकार खाद्य सुरक्षा अधिनियम ला रही थी, तब जयललिता ने कहा था, हमारे राज्य में इससे बेहतर योजना लागू है. यह सच भी था.

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