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हिंदू उत्तराधिकार कानून स्पष्ट हो
महिलाओं की संपत्ति पर लैंगिक विषमता दूर करने के उद्देश्य से हिंदू उत्तराधिकार कानून 2005 पारित किया गया, जिसमें पुत्री को पिता की संयुक्त संपत्ति पर पुत्र के सामान जन्म से अधिकार दिया गया, वहीं कर्नाटक उच्च न्यायालय ने फूलवती के केस में निर्णय दिया कि संबंधित संपत्ति में पिता या पुत्री का जन्म या […]
महिलाओं की संपत्ति पर लैंगिक विषमता दूर करने के उद्देश्य से हिंदू उत्तराधिकार कानून 2005 पारित किया गया, जिसमें पुत्री को पिता की संयुक्त संपत्ति पर पुत्र के सामान जन्म से अधिकार दिया गया, वहीं कर्नाटक उच्च न्यायालय ने फूलवती के केस में निर्णय दिया कि संबंधित संपत्ति में पिता या पुत्री का जन्म या मरण कभी भी हो 9/9/2005 से पुत्री, पुत्र के बराबर की हिस्सेदार होगी.
दिनांक 2/11/2015 को फूलवती के केस में यह निर्णय दे दिया कि पिता और पुत्री का जीवित होना जरूरी है इस कानून में हकदार होने के लिए. प्रत्येक न्यायालय और वकील कानून की व्याख्या अपने-अपने हिसाब से कर रहे हैं. इस स्थिति में सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि जीवित किसको रहना जरूरी है या जीवित होना आवश्यक है या नहीं है.
सुचित्रा झा, अधिवक्ता, देवघर
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