आर्थिक हालात और चुनाव के बीच संतुलन

वित्त मंत्री चिदंबरम के मन में जरूर रहा होगा कि उनके अंतरिम बजट को यूपीए के दस साल के शासन के मूल्यांकन-पत्र के रूप में देखा-पढ़ा जायेगा. उन पर यह अहसास भी हावी होगा कि अंतरिम बजट से पहले देश की आर्थिक-नीतियों को लेकर हर तरफ से असंतोष का इजहार हो रहा है. चिदंबरम ऐसे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 18, 2014 5:09 AM

वित्त मंत्री चिदंबरम के मन में जरूर रहा होगा कि उनके अंतरिम बजट को यूपीए के दस साल के शासन के मूल्यांकन-पत्र के रूप में देखा-पढ़ा जायेगा. उन पर यह अहसास भी हावी होगा कि अंतरिम बजट से पहले देश की आर्थिक-नीतियों को लेकर हर तरफ से असंतोष का इजहार हो रहा है.

चिदंबरम ऐसे समय में मौजूदा लोकसभा का आखिरी अंतरिम बजट पेश कर रहे थे, जब जीडीपी की वृद्धि-दर बीते दस सालों के निचले स्तर पर है और वित्तीय व चालू खाते का घाटा बेलगाम होने की बात कही जा रही थी. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की स्थितियां अनुमान और अपेक्षा से बहुत पीछे रह गयी हैं और उपभोक्ता-मांग में भी कमी आ रही है. ऐसे में चिदंबरम को अंतरिम बजट के जरिये दोहरी जिम्मेवारी निभानी थी.

उन्हें चालू खाते के घाटे और वित्तीय घाटे को कम करने के उपाय के साथ उपभोक्ता-मांग को बढ़ाने के जतन करने थे, साथ ही इस आलोचना का भी जवाब देना था कि यूपीए का शासन ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ का शिकार रहा है. अंतरिम बजट को सरसरी नजर से देखने पर जान पड़ता है कि उन्होंने अपनी भूमिका बखूबी निभायी है. चिदंबरम ने वित्तीय घाटे को कम करने के अपने निर्धारित लक्ष्य को पूरा किया है. विनिर्माण क्षेत्र को एक्साइज ड्यूटी में छूट देकर उसे बढ़ावा देने की कोशिश की है. इससे कार, फ्रिज, टीवी, मोबाइल आदि सस्ते होंगे और उपभोक्ता-मांग में बढ़ोत्तरी की उम्मीद की जा सकती है.

केंद्रीय योजनाओं के लिए धन केंद्रीय योजना सहायता के जरिये राज्यों के हाथ में देने की बात कही गयी है. अवकाश-प्राप्त और सेवारत सैन्य-अधिकारियों के लिए समान रैंक-समान पेंशन जैसी योजना की घोषणा से भी आबादी के एक महत्वपूर्ण हिस्से को खुश करने की कोशिश की गयी है. इन सारी बातों से रेटिंग एजेंसियां, स्टॉक मार्केट तथा मतदाताओं का एक हिस्सा बजट को लेकर सकारात्मक छवि बनायेगा.

चिदंबरम ने यूपीए को गरीबों का हिमायती सिद्ध करते हुए सेहत, शिक्षा और पोषण के मामले में हासिल उपलब्धियों का भी बखान किया है. हालांकि, इन कोशिशों के बावजूद आर्थिक-मंदी, नीतिगत अकुशलता, भ्रष्टाचार और महंगाई को लेकर यूपीए-2 के बारे में बनी आम धारणा मतदाताओं के मन से मिट पायेगी, इसकी उम्मीद कम ही है.

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