अंतरिम बजट में वोट की जुगत

।। विवेक शुक्ला ।। वरिष्ठ पत्रकार अंतरिम बजट में ऑटो सेक्टर को गति देना इसलिए भी अहम है, क्योंकि इस इंडस्ट्री से देश में लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है. जाहिर है, ऑटो सेक्टर के विकास से नौकरियां भी बढ़ेंगी.महान आर्किटेक्ट एडवर्ड लुटियंस द्वारा डिजाइन किये गये संसद भवन में वित्त मंत्री […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 18, 2014 5:12 AM

।। विवेक शुक्ला ।।

वरिष्ठ पत्रकार

अंतरिम बजट में ऑटो सेक्टर को गति देना इसलिए भी अहम है, क्योंकि इस इंडस्ट्री से देश में लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है. जाहिर है, ऑटो सेक्टर के विकास से नौकरियां भी बढ़ेंगी.महान आर्किटेक्ट एडवर्ड लुटियंस द्वारा डिजाइन किये गये संसद भवन में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अंतरिम बजट पेश करते हुए सैनिकों, अल्पसंख्यकों और ऑटो सेक्टर को रेवड़ियां बांटीं, हालांकि सस्ते घर खरीदने का सपना संजोनेवालों को वे निराश कर गये. लाखों रिटायर पूर्व सैनिकों की लंबे समय से की जा रही एक रैंक, एक पेंशन योजना को लागू करके वित्त मंत्री ने साफ कर दिया कि वे आगामी लोकसभा चुनावों में इस वर्ग का वोट यूपीए के पक्ष में हासिल करने की ख्वाहिश रखते हैं.

देश के रक्षा बजट में दस फीसदी का इजाफा करने के साथ उन्होंने एक रैंक, एक पेंशन की मांग को भी मान लिया. इसके तहत पहले रिटायर हुए किसी खास पद पर रहे सैनिक को वही पेंशन मिलेगी, जो हाल में रिटायर हुए सैनिक को मिलती है. रेवाड़ी की रैली में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि एनडीए सरकार के सत्तासीन होने पर वे एक रैंक, एक पेंशन योजना लागू करेंगे.

माना जा सकता है वित्त मंत्री पर मोदी के वादे का दबाव था. करीब 30 लाख पूर्व सैनिकों को ‘एक रैंक-एक पेंशन’ योजना के लागू होने से लाभ होगा. अगर हर सैनिक पर चार लोग आश्रित मानें, तो वित्त मंत्री के कदम से करीब सवा करोड़ लोगों को लाभ होगा. महत्वपूर्ण है कि कुछ समय पहले रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने कहा था कि पूर्व सैन्यकर्मियों के लिए ‘एक रैंक, एक पेंशन’ स्कीम पूरी तरह लागू करना मुमकिन नहीं है. राज्यसभा में रक्षा मंत्रालय के कामकाज पर बहस के दौरान एंटनी ने यह कहा था.

चिदंबरम ने अल्पसंख्यकों को भी अपनी तरफ खींचने की कोशिश की. अल्पसंख्यक मामलों के विभाग के लिए उन्होंने 3,711 करोड़ रुपये रखे. बीते वित्त वर्ष के बजट में यह राशि 3,511 करोड़ करोड़ रुपये थी. उन्होंने बताया कि अल्पसंख्यक समुदायों को मिलनेवाले ऋण 2004-05 के 4,000 करोड़ रुपये से बढ़ कर 2013-14 में 66,500 करोड़ रुपये हो गये. चिदंबरम ने कहा कि 10 वर्ष पहले देश के 121 जिलों में अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों के 14,15,000 बैंक खाते थे, जबकि मार्च, 2013 के अंत में उनके 43,52,000 बैंक खाते थे.

देश में दिसंबर, 2013 के अंत तक अल्पसंख्यकों को 211,451 करोड़ रुपये के ऋण दिये गये. अब ये दावे वित्त मंत्री के हैं. पर केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य टिसरिग नामग्याल शानू ने हाल ही में बताया था, ‘हमारे पास स्टाफ की भारी कमी है. सिर्फ 50 लोगों का स्टाफ होगा. इतने कम स्टाफ में आप हमसे क्या उम्मीद करते हैं. जो भी मुमकिन होता है, कर देते हैं.’ ‘क्या करते हैं?’ इस सवाल पर कुछ सोचते हुए वे कहते हैं, हमारे काम तो काफी रहते हैं.

हम सरकार को उन लोगों पर कार्रवाई की सिफारिश करते हैं, जिन पर अल्पसंख्यकों के हितों को चोट पहुंचाने के आरोप होते हैं. हमारे सदस्य मुजफ्फरनगर जैसी जगहों का दौरा कर सरकार को सिफारिश भी करते हैं. हमारा सालाना सम्मेलन होता है. इसमें पीएम भी होते हैं. अल्पसंख्यकों के मसलों पर चरचा होती है. जाहिर है, वित्त मंत्री के अल्पसंख्यकों को लेकर दिये आंकड़े अपनी जगह ठीक हो सकते हैं. पर बड़ा सवाल ये है कि क्या सरकार की कोई एजेंसी इस तरफ गौर करती है कि उसकी तरफ से आवंटित राशि का इस्तेमाल किस तरह से हो रहा है?

वित्त मंत्री ने उन लोगों को कुछ नहीं दिया जो कम दामों में शहरों में अपनी छत का सपना देख रहे थे. दुर्भाग्यवश देश में उस इनसान के लिए स्पेस सिकुड़ता जा रहा है, जिसकी आर्थिक हालत पतली है. वित मंत्री अपने बजट प्रस्तावों में उन रीयल एस्टेट फर्मो को रियायतें नहीं दे पाये, जो सस्ते घर बनाने का इरादा रखती हैं या फिर बनाना चाह रही हैं. रीयल एस्टेट सेक्टर के लिए रेगुलेटर की भी घोषणा नहीं की गयी. क्या वे चाहते हैं कि इस क्षेत्र में अव्यवस्था फैली रहे?

हां, वित्तमंत्री की इस बात के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने पिछड़ते जा रहे ऑटो सेक्टर से एक्साइज ड्यूटी को कम करके इसे गति देने की चेष्टा की. वित्त मंत्री ने ऑटो सेक्टर के लिए बड़ी राहत का ऐलान किया और एक्साइज में 4-6 फीसदी की कटौती हुई. इसमें शक नहीं कि देश में आर्थिक उदारीकरण के बाद आइटी, टेलीकॉम और ऑटो सेक्टर में तगड़ी ग्रोथ हुई. देश में मिडिल क्लास के विस्तार के चलते कारों और दूसरे वाहनों की बिक्री बढ़ी.

पर बीते कुछ सालों से ऑटो सेक्टर टैक्स की मार और अर्थव्यवस्था में गिरावट के कारण मुरझा रहा था. अब इसके दोबारा से थर्ड गियर पर चलने की उम्मीद है. इसे गति देना इसलिए भी अहम है, क्योंकि इस इंडस्ट्री से देश में लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है. जाहिर है, ऑटो सेक्टर के विकास से नौकरियां भी बढ़ेंगी. कुल मिलाकर, वित्त मंत्री चिदंबरम ने चुनावी साल में एक चुनावी बजट पेश किया है. देखना यह होगा कि उनकी कोशिश से यूपीए को लोकसभा चुनावों में कितना लाभ होता है.

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